मै और मेरी मुनिया
तुम कहते हो बड़े गर्व से ,
मै अच्छा और मेरी मुनिया
कोई की परवाह नहीं है ,
कैसे,क्या कर लेगी दुनिया
पैसा नहीं सभी कुछ जग में ,
ना आटा ,या मिर्ची ,धनिया
सबका अपना अपना जीवन,
राजा ,रंक ,पुजारी,बनिया
कोई भीड़ में नहीं सुनेगा,
रहो बजाते,तुम टुनटुनिया
उतने दिन अंधियारा रहता ,
जितने दिन रहती चांदनियां
तन रुई फोहे सा बिखरे ,
धुनकी जब धुनकेगा धुनिया
ये मुनिया भी साथ न देगी,
जिस दिन तुम छोड़ोगे दुनिया
मदन मोहन बहेती'घोटू'
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*कवित्त*
*1-गुंजन अग्रवाल ‘अनहद’*
*1*
*श्याम रंग **चहूँ ओर**, **भीग गयो पोर**- पोर**,*
*अंग**- अंग राधिका के**, **दामिनी मचल उठी।*
*प्रेम की पिपास...
12 घंटे पहले
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (02-03-2013) के चर्चा मंच 1172 पर भी होगी. सूचनार्थ
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना |
जवाब देंहटाएंलाजवाब प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंaap sabka bahut bahut dhanywaad
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