घोटू के पद
मेरो दरद न जाने कोई
हे री मै तो ,अति पछताती ,मेरो दरद न जाने कोई
घायल की गति,घायल जाने ,और न जाने कोई
मंहगाई काटन को दौड़त,निसदिन जनता रोई
खानपान के दाम बढ़ गए ,मंहगी गेस रसोई
रेल किराया ,बहुत बढ़ गया ,पिया मिलन कब होई
सत्ता में जिनको बैठाया ,फिकर क़ा रे नहीं कोई
'घोटू'अब तो तब निपटेंगे ,फीर चुनाव जब होई
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
पुस्तक चर्चा : 'एक अकेला पहिया' : दुःख एवं प्रेम की अनुभूति — रणजीत पटेल
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*पुस्तक: *एक अकेला पहिया (नवगीत-संग्रह)
ISBN: 978-93553-693-90
कवि: अवनीश सिंह चौहान
प्रकाशन वर्ष : 2024
संस्करण : प्रथम (...
1 घंटे पहले
बढिया रचना
जवाब देंहटाएंआज के हालात पर बहुत ही सार्थक पद.
जवाब देंहटाएंमोल बहु काटन को दौड़त, निसदिन गहनीयाँ रोई ।
जवाब देंहटाएंबाल पाल सब मोल रुले रुली मोल रसोई ।।
बढे सुल्क सूल से लागे सब कारे कारज होई ।
सासन में जिनको बैठारे सब कारे धन के जोई ।
सकल दल के झंडे जराएं अबके ऐसन होरी होई ।।
चुपेचाप घर में नाही बैठोगे
जवाब देंहटाएंऔर निपटा नापटी करते रहोगे
तो रसोई किधर से चलेगी ?? ......
dhanywaad
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल गुरूवार (07-03-2013) के “कम्प्यूटर आज बीमार हो गया” (चर्चा मंच-1176) पर भी होगी!
सूचनार्थ.. सादर!