हर दिन होली
खाना पीना ,मौज मनाना,मस्ती और ठिठौली है
अपनी तो हर रात दिवाली,और हर एक दिन होली है
रोज सुबह जब आँखें खुलती,तो लगता है जनम हुआ
रात बंद जब होती आँखें,तो लगता है मरण हुआ
यादों के जब पत्ते खिरते,लगता है सावन आया
अपनों से मिलना होने पर ,ज्यों बसंत हो मुस्काया
ऐसा लगता फूल खिल रहे ,जैसे कोयल बोली है
अपनी तो हर रात दिवाली,और हर एक दिन होली है
दुःख के शीत भरे झोंकों से,ठिठुर ठिठुर जाता तन है
और जब सुख की उष्मा मिलती ,पुलकित हो जाता मन है
जब आनंद फुहार बरसती,लगता है सावन आया
दीप प्रेम के जला किसी ने,होली का रंग बरसाया
लगता जीवन के आँगन में,जैसे सजी रंगोली है
अपनी तो हर रात दिवाली,और हर एक दिन होली है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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(*Shalini kaushik law classes*)
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16 घंटे पहले
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