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सोमवार, 1 जुलाई 2024

स्वजनों से 


मेरे  सारे रिश्तेदारों 

प्यारे संगी साथी यारों 

मैं अब अस्सी पार हो रहा 

व्यथित और बीमार हो रहा 

गिरती ही जाती सेहत है 

चलने फिरने में दिक्कत है

 बीमारी तन तोड़ रही है 

याददाश्त संग छोड़ रही है

मैं और मेरी पत्नी साथी 

हर सुख दुख में साथ निभाती 

लेकिन वह भी तो वृद्धा है 

पर उसकी मुझ में श्रद्धा है 

जैसे तैसे कष्ट सहन कर 

मेरी सेवा करती दिनभर

 बेटी बेटे दूर बसे हैं 

अपने झंझट में उलझे हैं 

बना रखी है सब ने दूरी 

अपनी अपनी है मजबूरी 

भले शिथिल हो गए अंग है 

लेकिन जीने की उमंग है 

भले साथ ना देती काया 

पर न छूटती मोह और माया 

हटता नहीं मोह का बंधन 

सबसे मिलने को करता मन 

आना जाना मुश्किल है अब 

व्यस्त काम में रहते  है सब 

लेकिन मेरी यही अपेक्षा 

वृद्धो की मत करो उपेक्षा 

भूले भटके जब भी हो मन 

दिया करो हमको निज दर्शन 

तुम्हें देख मन होगा हलका 

दो आंसू हम लेंगे छलका 

शिकवे गिले दूर हूं सारे 

सुन दो मीठे बोल तुम्हारे 

तुमको छू महसूस कर सकूं 

तुम्हें निहारूं और ना थकू 

थोड़ा समय निकालो प्यारो 

मेरे सारे रिश्तेदारों 


मदन मोहन बाहेती घोटू

होली का त्यौहार 


आओ आओ मनाए सब यार 

 प्यार से होली का त्यौहार 

रंगों के संग खुशियां बरसे 

उड़े अबीर गुलाल 

मनाए होली का त्यौहार 


यह प्यारा त्योंहार रंगीला 

हर कोई है नीला पीला 

धूम मच रही है बस्ती में 

झूम रहे हैं सब मस्ती में 

आपस में कोई भेद नहीं है 

जीवन का आनंद यही है

 ले पिचकारी सभी कर रहे 

रंगों की बौछार 

मनाएं होली का त्यौहार


रात होलिका दहन किया था 

बैर भाव को फूंक दिया था 

प्रभु नाम का जीता था जप

हार गया था हिरनाकश्यप

जीत गया प्रहलाद भक्त था

प्रभु भक्ति में अनुरक्त था

लिया प्रभु ने उसके खातिर

नरसिंह का अवतार 

मनाएं होली का त्योंहार 


मदन मोहन बाहेती घोटू

रविवार, 30 जून 2024

संबोधन 


बेटे को *बिटुवा* कहते तो अच्छा लगता है 

बेटी को *बिटिया* कहने से प्यार उमड़ता है 

यह मेरे *वो *है कहकर पत्नी शर्माती है लेकिन पति की *वो* होने से वह घबराती है 

कहो पिताजी को पापा तो लगता अपनापन 

माताजी को *मां* कहना है ममता का बंधन बड़े भाई को *भैया* कहना चाचा को *चाचू* 

और बहन को *दीदी* कहना दादा को *दादू *

यह कुछ संबोधन है जो परिवार बनाते हैं और आपके रिश्तों में अपनापन लाते हैं सदा पिता को *आप* लगा संबोधित करते हैं 

पर मां को* तू *,ईश्वर को भी* तू* ही कहते है

बूढ़े बाबा खुश होते *अंकलजी *कहने पर 

हो जाती नाराज पड़ोसन *आंटी जी* कहने पर 

*सुनते हो जी *का संबोधन पति का होताअक्सर 

 किंतु पुकारा जाता है अब नाम एक दूजे का लेकर 

संबोधन में आदर देने नाम आगे *जी* *साहब *लगाते 

पत्नी के भ्राता साला ना वह है *साले साहब* कहाते 

नाम तुम्हारा ही लेकर हरदम जाता तुम्हें पुकारा 

नाम ही है पहचान तुम्हारी नाम बिन  ना अस्तित्व तुम्हारा 


मदन मोहन बाहेती घोटू

बॉयफ्रेंड गर्लफ्रेंड 


बॉयफ्रेंड जब बन जाता पति 

गर्लफ्रेंड बन जाती श्रीमती 


फंस कर चक्कर में गृहस्थी के 

सब रोमांस फुर्र हो जाता 

इश्क मोहब्बत इलू वाला 

सपना चूर-चूर हो जाता 

ना तो होता पहले जैसा 

मिलना जुलना गिफ्टें लाना 

घर में रोज पकाओ खाना 

बंद हुआ होटल में जाना 

रोज-रोज की तू तू मैं मैं 

से अक्सर ही बात बिगड़ती

 बाय फ्रेंड जब बन जाता पति 


गर्लफ्रेंड जब बनती पत्नी 

एक पराई बनती अपनी 


सजा धजा सा मेकअप वाला 

 रूप नज़र अब ना आता है 

ना रहते हो नाज़ और नखरे 

असली चेहरा दिख जाता है 

मिलन औपचारिक ना रहता है 

उसमे अपनापन आ जाता 

व्यस्त काम में रहती दिनभर 

फूलों सा चेहरा मुरझाता 

पर आहार प्यार का पाकर 

बदन छरहरा बनता हथनी 

गर्लफ्रेंड जब बनती पत्नी


मदन मोहन बाहेती घोटू

नींव के पत्थर 


एक विशाल इमारत बनकर 

गौरव से तुम उठा रहे सर 

टिके हुए तुम जिसके ऊपर 

हम हैं उसी नींव के पत्थर 


हम घुट घुट कर सांस ले रहें 

नाम तुम्हारा दीवारॉ पर 

इतना सारा बोझ तुम्हारा 

उठा रहे अपने कंधों पर 


है इसमें ही हर्ष हमारा 

सदा रहे उत्कर्ष तुम्हारा 

फहराए तुम्हारा परचम  

आते वर्षों वर्ष तुम्हारा 


है कोशिश हमारी हरदम 

भूकंपों से बचे रहो तुम 

देखे तुमको लोग सराहें 

ऐसे सुन्दर सजे रहो तुम 


दिन-दिन करते रहो तरक्की 

हम तो यही चाहते हैं बस 

हैं इतनी सी पर आकांक्षा 

दे दो हमको भी थोड़ा यश


मदन मोहन बाहेती घोटू

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