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मंगलवार, 9 अक्टूबर 2018

निर्मल आनंद 

मेरे मन में जो उलझे थे ,
छंद सभी स्वछन्द होगये 
दुःख पीड़ा से मुक्त हो गए ,
एक निर्मल आनंद हो गए 
कवितायेँ सब ,सरिताएं बन ,
बही ,हुई विलीन सागर में 
लगा उमर का ताप ,भाव सब ,
 बादल बने ,उड़े  अंबर में 
ऐसी दुनियादारी बरसी ,
चुरा सभी जज्बात ले गयी 
जिन्हे समय की हवा बहा कर ,
इत उत  अपने साथ ले गयी 
अब तो बस, मैं हूँ और मेरी ,
काया दोनों मौन पड़े है 
जहाँ वृक्ष ,पंछी कलरव था ,
कांक्रीट के भवन खड़े है 
मैं खुद बड़ा अचंभित सा हूँ ,
इतना क्यूँ बदलाव आ गया 
मेरे  हँसते गाते मन में ,
क्यों बैरागी भाव छा  गया 
मै तटस्थ हूँ ,लहरें आती, 
जाती मुझको फर्क न पड़ता 
इस उच्श्रृंखल चंचल मन में ,
क्यों आ छायी है नीरवता 
मोह माया से हुई विरक्ति ,
हुआ कभी ना पहले ऐसा 
क्या यह आने वाली कोई ,
परम शांति का है संदेशा 
बस अब तो ये जी करता है ,
अंतरिक्ष में ,मैं उड़ जाऊं 
मिले आत्मा ,परमात्मा से ,
परमशक्ति से मैं जुड़ जाऊं 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

भटकाव 

जिधर ले गयी हवा 
बस उसी तरफ बहा 
मैं तो बस बादल बन ,
यूं ही भटकता रहा
  
न तो अंबर में ही रहा 
न ही धरती पर बहा 
मैं तो बस बीच में ही ,
यूं ही लटकता रहा 

जहाँ मिली शीतलता 
बरसा रिमझिम करता 
सौंधा  सा , माटी में,
मिल कर महकता रहा 

यहाँ वहां ,कहाँ कहाँ 
सुख दुःख ,सभी सहा 
कभी आस ,कभी त्रास 
बन कर खटकता रहा 

मैं तो बस जीवन में 
यूं ही भटकता रहा 

घोटू 
सुंदरता 


सुंदरता ,
न तन के रंग  में होती है 
न किसी अंग में होती है 
वो तो बस ,आपके ,
मन की तरंग में होती है 
विचारों की सादगी  और 
जीने के ढंग में होती है 
लक्ष्य की लगन ,उत्साह 
और उमंग में होती है
मिलजुल कर मनाई हुई , 
खुशियों के रंग में होती है 
अपने  अच्छे और सच्चे ,
मित्रों के संग में होती है 

घोटू 

सोमवार, 8 अक्टूबर 2018

कैसे कैसे लोग 
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यह ऐसा है ,वह वैसा है
उसके बारे में मत पूछो,वह कैसा है
सदा चार की बातें करनेवाले,
     जब सदाचार की  बातें करते है
            तो कैसे लगते है?

कुछ विष इसके खिलाफ उगला
कुछ विष उसके खिलाफ उगला
जब जब जिसकी भी बात चली,
कुछ विष उसके खिलाफ उगला
  साँस साँस में जिसके विष का वास रहे
      वो विश्वास की बातें करते है
            तो कैसे लगते है?

जरुरत पर इसके चरण छुए
मतलब पर उसके चरण छुए
जब जब भी जिससे काम पड़ा
हरदम बस उसके चरण छुए
    सदा चरण छूने वाले कुछ चमचे
       जब सदाचरण की  बातें करते है
           तो कैसे लगते है?

मदन मोहन बहेती 'घोटू'
मकई  का भुट्टा और कॉर्न 

जबसे मकई का भुट्टा ,
अमेरिकन कॉर्न बन गया है 
गर्व से तन गया है 
देसी मकई की धानी ,
अब 'पॉपकॉर्न 'बन कर इतराने लगी है 
उसकी पौबारह हो गयी है क्योंकि ,
नयी जनरेशन भी उसे चाव से खाने लगी है 
अमरीकन कॉर्न के दाने 
हो गए है मोतियों से सुहाने 
कभी रोस्ट कर ,कभी उबाल कर ,
मसाला मिला कर खाये जाते है 
पिज़्ज़ा पर बिखराये जाते है 
इन्ही से  'कॉर्न फ्लेक्स 'बनाया जाता है 
जो की एक सेहतमंद नाश्ता कहलाता है 
और तो और ,नए नए बोर्न 
बेबी कॉर्न ,
भी मोहते सबका मन है 
स्नेक्स और सब्जी के रूप में ,
सबका प्रिय भोजन है 
मक्का की राबड़ी भी ,
अब विदेशी स्वाद के अनुरूप बन गयी है 
वो अब स्वीटकॉर्न सूप बन गयी है 
मकई का भुट्टा ,
कितने ही विदेशी रंग में रंग जाए मगर 
अंगारों पर सेक ,नीबू नमक लगा कर 
खाने का मज़ा ही कुछ और होता है 
तृप्त मन का पौर पौर होता है 
और मक्का की रोटी ,
सरसों के साग और गुड़ के साथ  
देती है गजब का स्वाद 
हम हिन्दुस्थानियों को इससे बड़ा प्यार है 
इसके आगे अमेरिकन कॉर्न से बने ,
सब के सब व्यंजन बेकार है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

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