हम भी खुश और अगला भी खुश
कई बार ऐसा होता कुछ
हम भी खुश और अगला भी खुश
मैं भगवन को शीश नमाता
श्रद्धा से परशाद चढाता
वो ना खाते , मैं ही खाता
पत्नी को भी शीश नमाता
सारी तनख्वाह उसे थमाता
उससे ले घर कर चलाता
वह समझे, वो ही है सब कुछ
मैं भी खुश और पत्नी भी खुश
प्रभु जी का गुणगान करूं मैं
कीर्तन भजन तमाम करूं मैं
श्रद्धा सहित प्रणाम करूं मैं
मैं पत्नी के भी गुण गाता
सास ससुर को शीश नमाता
ढेर प्यार पत्नी का पाता
वह न्योछावर करती सब कुछ
मैं भी खुश और पत्नी भी खुश
बच्चे सारे आए जिद पर
नई लगी ,देखे वह पिक्चर
पैसे मिले, गए खुश होकर
अब घर में मैं और पत्नी थी
सजी धजी और बनी ठनी थी
तन्हाई में मौज मनी थी
बहुत ही मज़ा आया सचमुच
हम भी खुश और बच्चे भी खुश
मदन मोहन बाहेती घोटू