जीवन व्यापन
उमर हमारी ज्यों ज्यों बढ़ती
वैसे जीवन अवधि घटती
यह अटल नियम है प्रकृति का,
पकती है फसल, तभी कटती
बचपन , यौवन,वृद्धावस्था
ये ही तो है जीवन का क्रम
हंसते गाते, सुख में, दुख में,
जैसे तैसे कटता जीवन
यह नहीं कदापि आवश्यक
जीवन पथ कंटक हीन रहे
बाधाएं सब को ही मिलती,
कितना ही कोई प्रवीण रहे
हो राह अगर जो कंकरीली
चलते हैं तो चुभते पत्थर
हो राह अगर कीचड़ वाली,
बढ़ते हैं पांव मगर धस कर
चलना पड़ता है संभल संभल
लड़ना है मुश्किल से हर क्षण
हंसते गाते, सुख में, दुख में
जैसे तैसे कटता जीवन
कुछ लोग मौज काटा करते,
डूबे रहते हैं मस्ती में
कुछ की कट जाती उम्र यूं ही
उलझे रह करके गृहस्थी में
अपना अस्तित्व बचाने को
करना पड़ती है मार काट
चाहे अनचाहे तत्वों से
करनी पड़ती है सांठगांठ
रहना पड़ता संघर्षशील ,
है सरल नहीं जीवन व्यापन
हंसते गाते ,सुख में ,दुख में
जैसे तैसे कटता जीवन
है प्यार कभी, तकरार कभी
इंकार कभी , इकरार कभी
तुम बूढ़े हुए ,बदल जाता
अपनों का भी व्यवहार कभी
अपने-अपने सब कामों में
हो जाते अपने सभी व्यस्त
और तरह तरह के रोग हमें
करने लगते हैं बहुत त्रस्त
जर्जर होता चंदन सा तन
और पल-पल विव्हल होता मन
हंसते गाते ,सुख में ,दुख में ,
जैसे तैसे कटता जीवन
मदन मोहन बाहेती घोटू