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रविवार, 23 जुलाई 2023

जीवन व्यापन 


उमर हमारी ज्यों ज्यों बढ़ती
वैसे जीवन अवधि घटती 
यह अटल नियम है प्रकृति का,
पकती है फसल, तभी कटती 
बचपन , यौवन,वृद्धावस्था 
ये ही तो है जीवन का क्रम 
हंसते गाते, सुख में, दुख में,
जैसे तैसे कटता जीवन 

यह नहीं कदापि आवश्यक 
जीवन पथ कंटक हीन रहे 
बाधाएं सब को ही मिलती,
 कितना ही कोई प्रवीण रहे 
 हो राह अगर जो कंकरीली 
 चलते हैं तो चुभते पत्थर 
 हो राह अगर कीचड़ वाली,
 बढ़ते हैं पांव मगर धस कर 
 चलना पड़ता है संभल संभल 
 लड़ना है मुश्किल से हर क्षण 
 हंसते गाते, सुख में, दुख में 
 जैसे तैसे कटता जीवन 
 
कुछ लोग मौज काटा करते,
 डूबे रहते हैं मस्ती में 
 कुछ की कट जाती उम्र यूं ही 
 उलझे रह करके गृहस्थी में 
 अपना अस्तित्व बचाने को 
 करना पड़ती है मार काट 
 चाहे अनचाहे तत्वों से 
 करनी पड़ती है सांठगांठ 
 रहना पड़ता संघर्षशील ,
  है सरल नहीं जीवन व्यापन 
  हंसते गाते ,सुख में ,दुख में 
  जैसे तैसे कटता जीवन 
  
है प्यार कभी, तकरार कभी 
इंकार कभी , इकरार कभी
तुम बूढ़े हुए ,बदल जाता 
अपनों का भी व्यवहार कभी 
अपने-अपने सब कामों में 
हो जाते अपने सभी व्यस्त 
और तरह तरह के रोग हमें 
करने लगते हैं बहुत त्रस्त
जर्जर होता चंदन सा तन 
और पल-पल विव्हल होता मन 
हंसते गाते ,सुख में ,दुख में ,
जैसे तैसे कटता जीवन

मदन मोहन बाहेती घोटू 
बदनसीबी 

जिससे करी थी हमने मोहब्बत थी बेपनाह 
उस बेमुरव्वत में हमें लेकिन किया तबाह 
हमराह मिली ऐसी की गुमराह कर दिया ,
कर नहीं पाई  संग हमारे जरा निभाह
दो-चार दिन में ही हमें गुलाम कर दिया 
मां-बाप को हमारे है गुमनाम कर दिया

घोटू 
पति की फरमाइश 

खातिर में साले साहब की जुटती हो जिस तरह,
हम पर भी मेहरबानी कुछ दिखला दिया करो

करती हो तुम दामाद की जितनी आवाभगत पकवान थोड़े हमको भी चखवा दिया करो 

बच्चों पर लुटाती हो जैसे लाड प्यार तुम ,
हम पर भी इनायत कभी फरमा दिया करो 

हम भी तुम्हारे शौहर हैं,कोई गैर तो नहीं ,
थोड़ी तवज्जो हम पर भी बरसा दिया करो

मदन मोहन बाहेती घोटू
पसंद अपनी अपनी ,ख्याल अपना-अपना 

मैं पत्नी से बोला तुम लगती अच्छी हो 
भोली भाली सीधी और मन की सच्ची हो  
तुम्हारा चेहरा खिलता हुआ गुलाब है 
तुम्हारे होठों में सबसे महंगी शराब है 
तुम्हारी चंचल आंखें बिजलियां गिराती है 
तुम्हारे गालों की रंगत मदमाती है 
तुम्हारी मुस्कान ,प्यार की परिभाषा है 
तुम्हारे शरीर को भगवान ने खुद तराशा है 
तुम्हारी चाल में हिरणी सी चपलता है 
तुम्हारी हर बात में अमृत बरसता है 
तुम कनक की छड़ी हो लेकिन कोमल हो 
तुम सुंदर अति सुंदर और चंचल हो 
तुम्हारा प्यार अनमोल है हीरे जैसा 
अब तुम मुझे बता दो मैं तुम्हें लगता हूं कैसा 
पत्नी बोली कि बतलाऊं मैं सच सच 
तुम बड़े प्यारे हो *आई लव यू वेरी मच *
तुम गोलगप्पे की तरह स्वाद से भरे हो 
तुम मन को ललचाते ,स्वादिष्ट दही बड़े हो 
पापड़ी चाट की तरह चटपटे और स्वाद हो 
मुंबई की भेलपूरी की तरह लाजवाब हो 
आलू टिक्की की तरह कुरकुरे और लजीज हो पाव भाजी की तरह मनभाती  चीज हो 
प्यार से भरा हुआ गरम गरम समोसा हो 
मन को सुहाता हुआ इडली और डोसा हो
मुझे ऐसे भाते हो जैसे बारिश में पकोड़े 
जलेबी से रस भरे पर टेढ़ेमेढ़े हो थोड़े 
रसगुल्ले गुलाबजामुन से मीठे और रसीले हो 
मूंग दाल हलवे की तरह पर थोड़े ढीले हो
रसीली इमरती की तरह सुंदर बल खाते हो 
आइसक्रीम की तरह जल्दी पिघल जाते हो राजस्थान का प्यार भरा दाल बाटी चूरमा हो 
मैं तुम्हें बहुत चाहती हूं तुम मेरे सूरमा हो 
अब आप समझ ही गए होंगे अपनी चाहत 
अलग अलग तरीके से प्रकट करते हैं सब 
अपने ढंग से अपना प्यार बतलाता है हर जना पसंद अपनी अपनी  ,ख्याल अपना अपना

मदन मोहन बाहेती घोटू 

गुरुवार, 13 जुलाई 2023

अपना अपना घर 

तुमने अपने मां-बाप का घर,
 जो कि तुम्हें अपना घर लगता था,
 एक दिन छोड़ दिया क्योंकि ,
 तुम्हें मेरे साथ मिलकर 
अपना घर बसाना था
 
हमारे बच्चों ने भी हमारा घर ,
जो कि उनका भी उतना ही अपना था 
शादी के बाद छोड़ दिया क्योंकि 
उन्हें अपने पत्नी के साथ 
अपना घर बसाना था

  ये अपना घर छोड़ने का सिलसिला ,
  सभी के साथ उम्र भर चलता है
  हम अपनापन भूल कर ,
  अपना घर छोड़ देते हैं  
  अलग से अपना घर बसाने को 

कितने ही अपने अक्सर
हो जाते है पराये क्योंकि 
उन्हें अपने ढंग से जीने के लिए,
अपना अलग अस्तित्व बनाना होता है 
  
  हमारा यह शरीर भी तो 
  हमारी आत्मा का अपना ही घर है 
  जिसे  एक दिन किसी और शरीर में
  अपना घर बसाने को,
अपना घर छोड़ कर जाना होता है

मदन मोहन बाहेती घोटू 


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