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बुधवार, 16 जनवरी 2019

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रविवार, 6 जनवरी 2019

धूप 

कुछ गरम गरम सी धूप 
कुछ नरम नरम सी धूप 
कुछ बिखरी बिखरी धूप 
कुछ निखरी निखरी धूप 

कुछ तन सहलाती धूप 
कुछ मन बहलाती धूप 
कुछ छत पर छाती धूप 
कुछ आती जाती धूप 

कुछ जलती जलती धूप 
कुछ ढलती ढलती  धूप 
कुछ चलती चलती  धूप 
कुछ यूं ही मचलती धूप 

कुछ चुभती चुभती धूप 
कुछ बुझती बुझती धूप 
कुछ उगती उगती धूप 
कुछ मन को रुचती धूप 

कुछ सर पर चढ़ती धूप 
कुछ पाँवों पड़ती   धूप 
कुछ आँखों गढ़ती धूप 
कुछ रूकती ,बढ़ती धूप 

कुछ रूपहरी सी धूप 
कुछ सुनहरी सी धूप 
कुछ दोपहरी सी धूप 
तो कुछ ठहरी सी धूप 

कुछ सुबह जागती धूप 
कुछ द्वार लांघती  धूप 
खिड़की से झांकती धूप 
संध्या को भागती  धूप 

कुछ शरमाती सी धूप 
कुछ मदमाती सी धूप 
कुछ गरमाती सी धूप 
कुछ बदन तपाती धूप 

कुछ भोली भोली धूप 
कुछ रस में घोली धूप 
सब की हमजोली धूप
करे आंखमिचोली धूप 

कुछ केश सुखाती धूप 
मुँगफलिया खाती धूप 
कुछ मटर छिलाती धूप 
कुछ गप्प लड़ाती  धूप 

कुछ थकी थकी सी धूप 
कुछ पकी पकी सी धूप 
कुछ छनी छनी सी धूप 
कुछ लगे कुनकुनी धूप 

कुछ खिली खिली सी धूप  
मुश्किल से मिली सी धूप 
कुछ चमकीली  सी धूप 
सत रंगीली  धूप सी धूप 


मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 

शनिवार, 5 जनवरी 2019

फोकटिये 

हम तो फोकटिये है यार,हमको माल मुफ्त का भाता 

धूप सूर्य की ,मुफ्त कुनकुनी ,खाते है सर्दी में 
और बरगद की शीतल छैयां ,पाते है गर्मी में 
बारिश में रिमझिम का शावर है हमको नहलाता 
हम तो फोकटिये है यार ,हमको माल मुफ्त का भाता 

जब वृक्षों पर कुदरत देती ,मीठे फल रस वाले 
पत्थर फेंक तोड़ते उनको ,खाते खूब मज़ा ले 
 माल मुफ्त का देख हमारे मुंह में पानी आता 
हम तो फोकटिये है यार ,हमको माल मुफ्त का भाता 

हम उस मंदिर में जाते ,परशाद जहाँ पर मिलता 
मुफ्त सेम्पल चखने वाला ,स्वाद जहाँ पर मिलता 
भंडारे और लंगर छखना ,हमको बहुत सुहाता 
हम तो फोकटिये है यार हमको माल मुफ्त का भाता 

श्राद्धपक्ष में पंडित बन कर ,मिले दक्षिणा ,खाना 
शादी में बाराती बन कर, मुफ्त में मौज उड़ाना 
उस रैली में जाते ,फ्री में जहाँ खाना मिल जाता    
हम तो फोकटिये है यार ,हमको माल मुफ्त का भाता 

घोटू 
धूप 

कुछ गरम गरम सी धूप 
कुछ नरम नरम सी धूप 
कुछ बिखरी बिखरी धूप 
कुछ निखरी निखरी धूप 

कुछ तन सहलाती धूप 
कुछ मन बहलाती धूप 
कुछ छत पर छाती धूप 
कुछ आती जाती धूप 

कुछ जलती जलती धूप 
कुछ ढलती ढलती  धूप 
कुछ चलती चलती  धूप 
कुछ यूं ही मचलती धूप 

कुछ चुभती चुभती धूप 
कुछ बुझती बुझती धूप 
कुछ उगती उगती धूप 
कुछ मन को रुचती धूप 

कुछ सर पर चढ़ती धूप 
कुछ पाँवों पड़ती   धूप 
कुछ आँखों गढ़ती धूप 
कुछ रूकती ,बढ़ती धूप 

कुछ रूपहरी सी धूप 
कुछ सुनहरी सी धूप 
कुछ दोपहरी सी धूप 
तो कुछ ठहरी सी धूप 

कुछ सुबह जागती धूप 
कुछ द्वार लांघती  धूप 
खिड़की से झांकती धूप 
संध्या को भागती  धूप 

कुछ शरमाती सी धूप 
कुछ मदमाती सी धूप 
कुछ गरमाती सी धूप 
कुछ बदन तपाती धूप 

कुछ भोली भोली धूप 
कुछ रस में घोली धूप 
सब की हमजोली धूप
करे आंखमिचोली धूप 

कुछ थकी थकी सी धूप 
कुछ पकी पकी सी धूप 
कुछ छनी छनी सी धूप 
कुछ लगे कुनकुनी धूप 

कुछ खिली खिली सी धूप  
मुश्किल से मिली सी धूप 
कुछ  रंगरंगीली  धूप 
है कई रूप की धूप 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '  
 

मंगलवार, 1 जनवरी 2019

बालिग़ उमर -प्यार रस डूबो 

बालिग़ हो गयी सदी बीसवीं ,लगा उसे उन्नीस बरस है 
निखरा रूप,जवानी छायी, हुई अदा ज्यादा दिलकश है  
बात बात पर किन्तु रूठना ,गुस्सा होना और झगड़ना ,
बच्चों सी हरकत ना बदली ,रहा बचपना जस का तस है 
तन के तो बदलाव आ गया ,किन्तु छिछोरापन कायम है ,
नहीं 'मेच्यूअर 'हो पाया मन ,बदल नहीं पाया, बेबस है 
बाली उमर गयी अब आयी ,उमर प्यार छलकाने वाली ,
कभी डूब कर इसमें देखो ,कितना मधुर प्यार का रस है 

घोटू 

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