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मंगलवार, 23 अक्टूबर 2018

मुसीबत ही मुसीबत
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मौलवी ने कहा था खैरात कर,
रास्ता है ये ही जन्नत के लिये
वहां जन्नत में रहेंगी हमेशा,
हूरें हाज़िर तेरी खिदमत  के लिये
ललक मन में हूर की ऐसी लगी,
आ गये हम मौलवी की बात में
सोच कर जन्नत में हूरें मिलेगी,
लुटा दी दौलत सभी खैरात में
और आखिर वो घडी भी आ गयी,
एक दिन इस जहाँ से रुखसत हुए
पहुंचे जन्नत ,वेलकम को थी खड़ी,
बीबी बन कर हूर,खिदमत के लिये
हमने बोला यहाँ भी तुम आ गयी,
हो गयी क्या खुदा से कुछ गड़बड़ी
अरे जन्नत में तो मुझ को बक्श दो,
इस तरह क्यों हो मेरे पीछे पड़ी
बोली बीबी मौलवी का शुक्र है,
दिया जन्नत का पता मुझको  बता
कहा था उसने की तू खैरात कर,
पांच टाईम नमाज़ें करके    अता
बताया था होगी जब जन्नत नशीं,
हूर बन कर फरिश्तों से खेलना
मुझको क्या मालूम था जन्नत में भी,
पडेगा मुझको ,तुम्ही को झेलना

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

गृह लक्ष्मी


गृह लक्ष्मी

नहीं कहीं भी कोई कमी है
मेरी पत्नी,गृहलक्ष्मी है
जीवन को करती ज्योतिर्मय
उससे ही है घर का वैभव
जगमग जगमग घर करता है
खुशियों से आँगन भरता है
दीवाली की सभी मिठाई
उसके अन्दर रहे समाई
गुझिये जैसा भरा हुआ तन
रसगुल्ले सा रसमय यौवन
और जलेबी जैसी सीधी
चाट चटपटी ,दहीबड़े सी
फूलझड़ी सी वो मुस्काती
और अनार सा फूल खिलाती
कभी कभी बम बन फटती है
आतिशबाजी सी लगती है
आभूषण से रहे सजी है
प्रतिभा उसकी ,चतुर्भुजी है
दो हाथों में कमल सजाती
खुले हाथ पैसे बरसाती
मै उलूक सा ,उनका वाहन
जाऊं उधर,जिधर उनका मन
इधर उधर आती जाती है
तभी चंचला कहलाती है
मेरे मन में मगर रमी है
नहीं कहीं भी कोई कमी है
मेरी पत्नी,गृह लक्ष्मी है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रविवार, 21 अक्टूबर 2018

बुढ़ापे का प्रणय निवेदन 


तुम भी बूढी हो गयी हो ,और मैं भी हुआ बूढा 
चलो अब मिल कर करें हम ,एकता का स्वप्न पूरा 

कुछ हमारे,कुछ तुम्हारे,ख़्वाब कितने ही अधूरे 
वक़्त ने बेबस बनाया ,कर नहीं  हम  पाये पूरे 
अगर हमतुम जाएँ जो मिल,कर उन्हें साकार देंगे
और हमारी विवशता को ,एक नया  आकार देंगे 
अकेलापन, मन कचोटे ,काटती तन्हाईयाँ है 
ढक रही मन का उजाला ,भूत की परछाइयां है 
हमारी मजबूरियों का ,किया सबने बहुत शोषण 
आओ मिल कर,प्यार का हम ,करें पौधा ,पुनर्रोपण 
और फिर सिंचित करेंगे ,फलेगा जीवन अधूरा 
चलो अब मिल कर करें हम ,एकता का स्वप्न पूरा 

तुम्हारे मन में हिचक है ,लोग जाने क्या कहेंगे 
काम लोगों का यही है ,वो तो बस कहते रहेंगे 
क्या किसी ने कभी आकर ,हाल भी पूछा तुम्हारा 
बुढ़ापे की विवशता में ,क्या तुम्हे देंगे सहारा
 दूसरों की बात छोडो ,तुम्हारे परिवार वाले    
ढूंढते मौका है तुमको, किस तरह घर से निकाले 
जिंदगी के बचे कुछ दिन ,मिले बोनस में हमें है 
एक दूजे ,संग मिल कर ,अब ख़ुशी से काटने है 
नहीं तो  होगा हमारा ,बुढ़ापे में ,बहुत कूड़ा 
चलो अब मिल कर करें हम ,एकता का स्वप्न पूरा 
 तुम भी बूढी हो गयी हो ,और मैं भी हुआ बूढा 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

शुक्रवार, 19 अक्टूबर 2018

डांडिया 

आओ 
हम रहें मिलजुल कर 
नहीं चलायें लाठियां ,एकदूजे पर 
सोच बड़ी करें 
लाठियां छोटी करे 
क्योंकि छोटी होने पर लाठियां 
बन जाती है डांडिया 
और डांडिया का खेल 
बढ़ाता है आपसी मेल 
माँ दुर्गा का यही आदेश है 
विजयदशमी का यही सन्देश है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

बुधवार, 17 अक्टूबर 2018

चुनाव का चक्कर 

पहले चुनाव के नेताजी ,तुम करते  हाथी के वादे 
जीता  चुनाव तो वो वादे ,रह जाते चूहे से आधे 
कोई ऋण माफ़ करा देगा ,कोई सड़कें बनवा देगा 
दे देगा बिजली कोई मुफ्त ,कोई पेंशन दिलवादेगा 
कोई देगा सस्ता गल्ला ,कोई दो रूपये में खाना 
कोई साईकिल ,टीवी बांटे ,कोई को साडी दिलवाना 
मांगे किसान, दो बढ़ा दाम ,खेती की लागत ज्यादा है 
कैसे घर खर्च चलाएं हम ,जब होता नहीं मुनाफा है 
तुम दाम बढाते फसलों के ,मंहगी बेचो ,मंहगी खरीद 
तो जनता चिल्लाने लगती है,भूखे मरने लगते गरीब 
करने उत्थान गरीबों का ,बैंकों से कर्ज दिला देते 
अगले चुनाव में वोटों हित ,तुम कर्जा माफ़ करा देते 
ऐसे लुभावने मन भावन ,वादे हर बार चुनावों में 
आश्वासन देकर हरेक बार ,फुसलाया इन नेताओं ने 
एक बात बताओ नेताजी ,ये पैसा कहाँ  से लाओगे 
तुम सिर्फ  टेक्स की दरें बढ़ा ,हम से ही धन निकलाओगे 
है पात्र छूट का निम्न वर्ग ,वो ही सब लाभ उठाएगा 
और उच्च वर्ग ,कर दंदफंद ,पैसे चौगुने कमायेगा 
बस बचता मध्यम वर्ग एक ,हर बार निचोड़ा जाता है 
करता वो नहीं टेक्स चोरी,सर उसका फोड़ा जाता है 
तुमने चुनाव के वक़्त किये  जिन जिन सुविधाओं के वादे 
सबकी छोडो,गलती से भी,यदि पूर्ण पड़े करना आधे 
भारत की अर्थव्यवस्था पर ,कितना बोझा पड़ सकता है
ऋण भी जो लिया विदेशो से ,कितना कर्जा चढ़ सकता है 
तुम सत्ता में काबिज होने ,क्यों जनता को भरमाते हो 
सत्ता पा भूल जाओगे सब ,क्यों झूठे सपन दिखाते हो 
और जीते तो सब भूल गए ,जब रात गयी तो गयी बात 
हम कुर्सी पर ,अब तो होगी ,अगले चुनाव में मुलाकात 
बन रामभक्त ,शिव भक्त कभी ,पहने जनेऊ बनते पंडित 
कह हो आये कैलाश धाम करते अपनी महिमा मंडित 
तुम बहुत छिछोरे छोरे हो ,तुम्हारा पप्पूपन न गया 
करते हो बातें अंटशंट ,तुम्हारा ये बचपन न गया 
और बनने भारत का प्रधान ,तुम देख रहे हो दिवास्वपन 
वो कभी नहीं पूरे होंगे ,करलो तुम चाहे लाख यतन 
आरक्षण आंदोलन करवा ,तुम हिन्दू मुस्लिम लडवा दो  
तुम घोल जहर प्रांतीयता का ,दंगे और झगड़े करवादो 
यूं गाँव गाँव मंदिर मंदिर ,क्या होगा शीश झुकाने से 
ठेले पर पीकर चाय ,दलित के घर पर खाना खाने से 
तुम सोच रहे इससे होगी ,बारिश तुम पर वोटों  वाली
है जनता सजग तुम्हारे इन झांसों में ना आने वाली 
वह समझ गयी है तुम क्या हो ,हो कितने गहरे पानी में  
तुम ऊल  जुलूल बना बातें ,बकते रहते नादानी में 
है जिसे देश से प्रेम जरा ,वो भला देश का सोचेगा  
कोई भी समझदार तुमको ,भूले से वोट नहीं देगा 
तुम जीत गए यदि गलती से ,दुर्भग्य देश का क्या होगा 
चमचे मलाई चाटेंगे सब ,और बचे शेष का क्या होगा 
मैं सोच सोच ये परेशान ,कि मेरे वतन का क्या होगा 
हर शाख पे उल्लू बैठेंगे ,तो मेरे चमन का क्या होगा 

घोटू  

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