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गुरुवार, 30 अगस्त 2018

मैं डॉग लवर हूँ 

मैं भी कुत्ते सा भौंका करता अक्सर हूँ 
                             मैं डॉग लवर हूँ 
मैं कुत्ते सा, मालिक आगे पूंछ हिलाता 
रोज रोज ही ,सुबह घूमने  को मैं  जाता 
स्वामिभक्त श्वान सा ,मेरी बात निराली 
मैं भी पूरे घरभर की करता  रखवाली 
झट जग जाता,श्वान सरीखी निद्रा रखता 
मैं हूँ घर में ,कोई अजनबी ,नहीं फटकता 
खड़े कान रहते ,चौकन्ना रहता हरदम 
बंधे गले में, पट्टे से   सामजिक बंधन  
हो जब अपनी गली. स्वयं को शेर समझता 
हड्डी डालो ,खुद का खून ,स्वाद ले चखता 
रोटी कोई डाल दे ,रखता नहीं सबर हूँ 
                              मैं डॉग लवर हूँ 
   
घोटू 
ओरंज कॉउंटी -अपना घर 

एक साथ हम रहें सभी मिल ,भाई भाई 
जैसे सोलह फांक ,संतरे बीच समाई 
ये ओरंज काउंटी है ,ये है अपना घर  
दिन दिन इसे बनाना है अब सबसे बेहतर  

हमे त्यागनी होगी सबको निज हठधर्मी 
बात बात, करना विवाद और गर्मागर्मी 
एक  दूजे के दोष नहीं ,ढूंढें  अच्छाई 
झूंठ न टिकता ,सदा जीतती है सच्चाई 
देना यही संदेशा हमको है अब घर घर  
दिन दिन इसे बनाना है अब सबसे  बेहतर  

अपने 'मैं 'को त्याग जब तलक 'हम 'ना होंगे 
तब तक बैरभाव और झगड़े  कम ना होंगे 
ध्यान सफाई का सबको मिल रखना होगा 
और सुरक्षा की कमियों को ढकना होगा 
हराभरा हो महके अपना प्यारा परिसर 
दिन दिन इसे बनाना है अब सबसे बेहतर 

यहीं कटेगी उमर ,यहीं जीना मरना है 
इसीलिये इस परिसर में खुशियां भरना है 
बच्चे सब मिल खेले कूदे ,नाचे,  गाये 
हंसीखुशी सब मिल ,सारे त्योंहार मनायें 
दिल से दिल मिल ,आपस में हो प्रेम परस्पर 
दिन दिन इसे बनाना है अब सबसे बेहतर 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
औरतों  का जादू 

ना जाने ,सभी औरतों को ,ये कैसा जादू आता है 
जो मर्द किसी की ना सुनता ,बीबी के काबू आता है 

वह थोड़ा पुचकारा करती ,सहला थोड़ा बहलाती है 
फिर इतना काबू कर लेती ,ऊँगली पर उसे नचाती है 
वह इतना खौफजदा रहता , सब रौब दफ़ा हो जाता है 
ये एक बार की बात नहीं ,ये हरेक दफा  हो  जाता  है 
बीबी जब हुकम चलाती है तो हाकिम भी घबराता है 
ना जाने सभी औरतों को ,ये कैसा जादू आता  है 

एजी,ओजी,के चक्कर में ,फौजी हथियार डाल देता 
पत्नी की बात न टाल सके,औरों की बात टाल देता 
जाता है रोज रोज दफ्तर ,मेहनत करता है महीने भर 
अपनी कमाई सारी पगार ,पत्नी हाथों पर देता धर 
नित खर्चे को पत्नी आगे ,वह हाथ अपने फैलाता है 
ना जाने सभी औरतों को ,ये कैसा जादू  आता है 

पत्नी का मूड नहीं बिगड़े ,परवाह उसे सबसे ज्यादा 
पत्नी पसंद के वस्त्र पहन ,पत्नी पसंद खाना खाता 
कंवारेपन का उड़ता पंछी ,पिंजरे में बंद तड़फता है 
गलती से भी वो इधर उधर ,ना ताकझांक कर सकता है 
था कभी शेर ,अब हुआ ढेर ,भीगी बिल्ली बन जाता है 
ना जाने सभी औरतों को ,ये कैसा जादू  आता है  

जो बात जरा सी ना मानी ,तो बस समझो कि मुश्किल है 
ना चाय ,नाश्ता ना खाना ,कुछ भी तो ना पाता मिल है 
वह अश्रुबाण चला कर जब ,आँखों से मोती  बरसाती 
रखने ना देती हाथ तुम्हे ,और चिढ़ा चिढ़ा कर तरसाती 
फिर हार मान बेचारा पति ,उसके चरणों झुक जाता है 
ना जाने सभी औरतों को ,ये कैसा जादू आता  है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  


मंगलवार, 28 अगस्त 2018

दर्द बदलते रहते है 
 

मन माफिक काम बनाने को ,सन्दर्भ बदलते रहते है 
होती है अलग अलग वजहें ,पर दर्द बदलते  रहते है 

उनके दो पुत्र हुए दोनों, थे अति कुशाग्र और पढ़े लिखे 
अच्छी सी मिली नौकरी तो ,भागे विदेश,घर नहीं  टिके 
है पिता वृद्ध , संतान मगर ,करती ना उनकी देख भाल 
बस यदा कदा ,कर दूरभाष ,वो पूछा करते हालचाल 
उनके मन में यह पीड़ा है ,एक पुत्र नलायक रह जाता 
जो रहता साथ बुढ़ापे में ,और उन्हें सहारा दे   पाता 
अपने जब पास नहीं रहते ,हमदर्द बदलते रहते है 
होती है अलग अलग वजहें ,पर दर्द बदलते रहते है  

उनकी पत्नी सीधी ,कर्मठ ,परिवार निभाने वाली है 
पर उनके मन में पीड़ा है ,वो गौरवर्ण ना ,काली है 
उनके सब मित्रों की पत्नी ,है सुन्दर,गौरी और स्मार्ट 
फैशन की पुतली ,बनीठनी ,बातों का आता उन्हें आर्ट 
पर उनके पति भी पीड़ित है ,लुटते है फैशन के मारे 
पत्नी रसोई तक में घुसे  ,है बहुत दुखी वो  बेचारे 
पत्नी कहती ,वैसा करते ,सब मर्द बदलते रहते है 
होती है अलग अलग वजहें ,पर दर्द बदलते रहते है 

वो सरकारी सेवा में थे ,ऊंचे ओहदे के अफसर थे 
थे कार्य कुशल और रौबीले ,सब करे उनका आदर थे 
थे बहुत अधिक ईमानदार ,रिश्वत से उनको नफरत थी 
ना गलत काम करते कोई ,सच्चाई जिनकी आदत थी 
जब हुए रिटायर ,महीनों तक पेंशन की फ़ाइल गयी अटक
कुछ ले देकर के मुश्किल से ,उनको मिल पाया ,अ पना हक़ 
जब खुद पर गुजरा करती है ,आदर्श बदलते रहते है 
होती है  अलग अलग वजहें ,पर दर्द बदलते रहते है 

थे  इन्द्रासन पर इंद्रदेव ,मन में न तनिक संतोष उन्हें 
वे  घिरे अप्सराओं से रहते ,कर सोमपान ,ना होंश उन्हें 
उनके मन में यह पीड़ा थी ,है वो की वोही अप्सरायें 
होती ना तृप्त लालसा थी ,नित स्वाद बदलना वो चाहें 
इसलिये तोड़ सब मर्यादा ,हो गए काम के अभिभूत 
धर गौतम भेष,अहिल्या का,छुप कर सतीत्व ,ले लिया लूट 
मन चाहा पाने ,बड़े बड़ों के ,कृत्य बदलते रहते है 
होती है अलग अलग वजहें ,पर दर्द बदलते रहते है 

मदन मोहन बाहेती ' घोटू '

सोमवार, 27 अगस्त 2018

केरल की त्रासदी पर 

देख तड़फता निज बच्चों को ,रोया तू भगवान तो होगा 
तूने इतना दर्द दिया है ,इसका कोई निदान  तो होगा 

तेरा अपना देश कहाता ,सुंदरता थी,हरियाली थी 
गाँव गाँव में समृद्धि थी ,गली गली में खुशहाली थी 
जिसकी एक बाजू सागर की ,लहरें उछल उछल धोती थी 
नारियल,केले और मसाले ,की घर घर  खेती होती थी 
वहां भला क्यों इतना ज्यादा ,अतिवृष्टि कर ,जल बरसाया 
वहां जलप्रलय सा लाकर के ,तूने सितम इस तरह ढाया 
क्या वो तेरे बंदे ना थे ,  क्यों थी  उनसे  यूं नाराजी 
नदियां उमड़ी ,बाढ़ आ गयी ,सभी तरफ छायी बर्बादी 
कीचड़ कीचड़ गाँव हो गए ,सड़क हो गयी टुकड़े टुकड़े 
कितने घर बरबाद  हो गए ,कितने घर में छाये दुखड़े 
कोई की माँ ,कोई बेटा ,कोई डूबा ,कोई बह गया 
कितनो का अरमान संजो कर, बनवाया आशियां ढह गया 
इनकी पीड़ा देख प्रभु तू ,खुद भी परेशान तो होगा 
तूने इतना दर्द दिया है  ,इसका कोई निदान तो होगा 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

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