दर्द बदलते रहते है
मन माफिक काम बनाने को ,सन्दर्भ बदलते रहते है
होती है अलग अलग वजहें ,पर दर्द बदलते रहते है
उनके दो पुत्र हुए दोनों, थे अति कुशाग्र और पढ़े लिखे
अच्छी सी मिली नौकरी तो ,भागे विदेश,घर नहीं टिके
है पिता वृद्ध , संतान मगर ,करती ना उनकी देख भाल
बस यदा कदा ,कर दूरभाष ,वो पूछा करते हालचाल
उनके मन में यह पीड़ा है ,एक पुत्र नलायक रह जाता
जो रहता साथ बुढ़ापे में ,और उन्हें सहारा दे पाता
अपने जब पास नहीं रहते ,हमदर्द बदलते रहते है
होती है अलग अलग वजहें ,पर दर्द बदलते रहते है
उनकी पत्नी सीधी ,कर्मठ ,परिवार निभाने वाली है
पर उनके मन में पीड़ा है ,वो गौरवर्ण ना ,काली है
उनके सब मित्रों की पत्नी ,है सुन्दर,गौरी और स्मार्ट
फैशन की पुतली ,बनीठनी ,बातों का आता उन्हें आर्ट
पर उनके पति भी पीड़ित है ,लुटते है फैशन के मारे
पत्नी रसोई तक में घुसे ,है बहुत दुखी वो बेचारे
पत्नी कहती ,वैसा करते ,सब मर्द बदलते रहते है
होती है अलग अलग वजहें ,पर दर्द बदलते रहते है
वो सरकारी सेवा में थे ,ऊंचे ओहदे के अफसर थे
थे कार्य कुशल और रौबीले ,सब करे उनका आदर थे
थे बहुत अधिक ईमानदार ,रिश्वत से उनको नफरत थी
ना गलत काम करते कोई ,सच्चाई जिनकी आदत थी
जब हुए रिटायर ,महीनों तक पेंशन की फ़ाइल गयी अटक
कुछ ले देकर के मुश्किल से ,उनको मिल पाया ,अ पना हक़
जब खुद पर गुजरा करती है ,आदर्श बदलते रहते है
होती है अलग अलग वजहें ,पर दर्द बदलते रहते है
थे इन्द्रासन पर इंद्रदेव ,मन में न तनिक संतोष उन्हें
वे घिरे अप्सराओं से रहते ,कर सोमपान ,ना होंश उन्हें
उनके मन में यह पीड़ा थी ,है वो की वोही अप्सरायें
होती ना तृप्त लालसा थी ,नित स्वाद बदलना वो चाहें
इसलिये तोड़ सब मर्यादा ,हो गए काम के अभिभूत
धर गौतम भेष,अहिल्या का,छुप कर सतीत्व ,ले लिया लूट
मन चाहा पाने ,बड़े बड़ों के ,कृत्य बदलते रहते है
होती है अलग अलग वजहें ,पर दर्द बदलते रहते है
मदन मोहन बाहेती ' घोटू '