बढ़ती हुई उम्र
बढ़ती हुई उमर में अक्सर ,ऐसे हाल नज़र आते है
मुंह पोपला सा लगता है, पिछले गाल नज़र आते है
कभी फूल सा महकाता मुख,लगता मुरझाया,मुरझाया
छितरे श्वेत बाल गालों पर ,काँटों का हो जाल बिछाया
या तो सर गंजा होता या उड़ते बाल नज़र आते है
बढ़ती हुई उमर में अक्सर ,ऐसे हाल नज़र आते है
कभी चमकती थी जो आँखें,अब लगती धुंधलाई सी है
बाहुपाश वाले हाथों पर ,आज झुर्रियां छाई सी है
यौवन का धन जब लुट जाता ,सब कंगाल नज़र आते है
बढ़ती हुई उमर में अक्सर ,ऐसे हाल नज़र आते है
तन कर चलने वाला ये तन,हो जाता अशक्त,ढीला है
लाली लिए कपोलों का रंग ,अब पड़ने लगता पीला है
थोड़े बेढब और बेसुरे ,हम बदहाल नज़र आते है
बढ़ती हुई उमर में अक्सर ,ऐसे हाल नज़र आते है
फिर भी कोई सुंदरी दिखती,तो मन मचल मचल जाता है
मुई आशिक़ी नहीं छूटती ,तन कितना ही ढल जाता है
याद जवानी के बीते दिन,,गुजरे साल नज़र आते है
बढ़ती हुई उमर में अक्सर ,ऐसे हाल नज़र आते है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'