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बुधवार, 6 मई 2015

फ्लर्टिंग

 
             फ्लर्टिंग
                   १
मज़ा लैला और मजनू सी,मोहब्बत में नहीं आता
मज़ा मियां और बीबी की ,सोहबत में नहीं  आता
चुगे या ना चुगे चिड़िया ,रहो तुम डालते दाना ,
मज़ा जो आता फ्लर्टिंग में ,कहीं पर भी नहीं आता
                           २
तुम्हारी हरकतों से वो,अगर जो थोड़ा हंसती है
कर रहे फ्लर्ट तुम उससे ,भली भांति समझती है
हंसी तो फंस गयी है वो,ग़लतफ़हमी में मत रहना ,
मज़ा उसको भी आता है ,वो टाइम पास करती है
                             ३
देख कर हुस्न मतवाला ,तुम्हारी बांछें जाती खिल
लिया जो देख बीबी ने ,बड़ी हो जाएगी   मुश्किल
जवानी देखते उसकी ,बुढ़ापा  अपना भी देखो ,
कहेगी जब तुम्हे अंकल,जलेगा फिर तुम्हारा दिल
                           ४
ये तुम्हारा दीवानापन ,ज़माना ताकता  होगा
फलूदा होगी इज्जत जो,गये पकड़े,पता होगा
बड़ा छुप छुप के मस्ती में ,इधर तुम मौज लेते हो,
उधर घर में तुम्हारे भी ,पड़ोसी झांकता होगा
                         ५
लड़कियां ना  करती  ,सीटियां यों बजाने से
रहो तुम मारते लाइन ,यूं ही पगले , दीवाने से 
मिठाई की दुकानो में ,सिरफ़ तकने से क्या होगा ,
भरेगा पेट तुम्हारा  ,रोटियां घर की  खाने से
                      ६
रहो तुम नाचते यूं ही,वो हंस हंस कर मज़ा लेगी
करोगे कोई ख्वाइश तो ,अंगूठा वो दिखा  देगी
लड़कियों को पटाने का ,बड़ा सिंपल तरीका  है,
उसे मत लिफ्ट दो बिलकुल ,वो खुद ही घास डालेगी
 
मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सरोकार

            सरोकार

हमारी शक्शियत से,अदब से ,पढाई से ,
नहीं है,जिसको ज़रा सा भी सरोकार नहीं
उन्होंने इसलिए है किया नापसंद हमें ,
हमारे  पास में बँगला नहीं है,कार नहीं
हमारा कोई अकाउंट' फेस बुक 'में नहीं,
न ही  लेटेस्ट डिज़ाइन का पास मोबाईल
इस तरह पुराने ढचरे के कोई इन्सां संग,
जिंदगी काट नहीं पाएंगे ,होगी मुश्किल 
न तो पिज़्ज़ा ,नहीं बर्गर ,न  खाना होटल में ,
नहीं है शौक हमको महफ़िलों में पीने का
नहीं आता थिरकना  हमको डी जे की धुन पर ,
बड़ा ही दकियानूसी है तरीका जीने का
कहा हमने कि तुम आटा भी गूंध ना पाती ,
पका के घर में रोटी किस तरह खिलाओगी
एक चलता है तेज,दूसरा धीमा पहिया ,
गृहस्थी की भला गाडी क्या चला पाओगी
ऐसी शादी से तो हम अच्छे कंवारे ही है ,
ऐसी बीबी की हमें कोई भी दरकार नहीं
सिर्फ अपने ही मतलब की सोच रखती हो,
अपने घरवालों से है जिसको सरोकार नहीं

घोटू

साहसी इंसान

            साहसी इंसान

स्कूल  में पढ़ी  ,एक कविता  ,
'अबु बेन एडम 'नामक व्यक्ति की कहानी थी
बड़ी ही सुहानी थी
वो एक रात देखता है कि एक फरिश्ता ,
एक फेहरिस्त बना रहा था
खुदा जिनसे प्यार करता है,
उनके नाम गिना रहा था
अबु ने उससे पूछा ,
क्या उसमे उसका भी नाम कहीं लिखा है
फरिश्ता बोला ,
अभी तक तो नहीं दिखा है
तब 'अबु'उस फ़रिश्ते से फ़रियाद करता है
मेरा नाम उस फेहरिस्त में जरूर शामिल करना ,
जो खुदा के बन्दों से प्यार करता है
दूसरी रात उसको फिर वो फरिश्ता नज़र आया,
और अपने साथ एक नयी फेहरिस्त लाया
अबु ने देखा,नयी  फेहरिस्त में ,
सबसे ऊपर उसका की नाम था
खुदा उससे करता है प्यार ,
जो उसके बन्दों से करता है प्यार ,
ये पैगाम था
 एक रात मैंने भी सपने में देखा ,
एक फरिश्ता साहसी लोगों की ,
एक फेहरिस्त बना रहा था
और उसमे मेरा नाम ,
सबसे ऊपर आरहा था 
मैंने पूछ ही लिया ,फ़रिश्ते भाई
न तो मैंने लड़ी है आजादी की लड़ाई
न ही साहस का कोई काम किया है,
और न एवरेस्ट पर की है चढ़ाई,
नहीं कोई विशेष करतब दिखलाया 
फिर मेरा नाम इस फेहरिस्त  में ,
सब से ऊपर  कैसे आया ?
फ़रिश्ते ने समझाया
शादी करके ,पत्नी के साथ
जो बन्दा निभा ले पूरे  बरस पचास
और फिर भी उसके चेहरे पर मुस्कान है
खुदा की नज़रों में ,
सबसे साहसी वो ही इंसान है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

साडू भाई

              साडू  भाई

एक ही कुए से,बाल्टी भर भर के ,
     प्यास को जिन्होंने ,अपनी बुझाया है
एक ही चूल्हे से,लेकर के अंगारा,
    सिगड़ियां अपनी को,जिनने  जलाया है
एक ही चक्की का,पिसा हुआ आटा और ,
      एक  हलवाई की ही,  खाते मिठाई    है         
एक ही दूकान पर,ठगे गए दो ग्राहक,
       आपस में   कहलाते, वो साडू भाई    है

घोटू

मंगलवार, 5 मई 2015

औरतों के मज़े

            औरतों के मज़े

औरतें ,महिला होने का , मज़ा लेती हमेशा है ,
        वो 'लेडीज फस्ट 'कह कर के,सदा 'प्रिफरेंस 'पाती है
आदमी पिसता है दिन भर,कमाई कर के लाता है ,
        मज़े से घर में बैठी ये ,मौज मस्ती  मनाती    है
रिज़र्व सीटें इलेक्शन में,बसों में भी अलग सीटें,
              रेलवे में अलग डिब्बा ,मर्द जिसमे न घुस पाता
मर्द के साथ हर डब्बे में वो कर सकती है ट्रेवल ,
          काम कोई हो ,लेडीज़ को,दिया प्रिफरेंस है  जाता
शान से वस्त्र मर्दों के ,पहन कर  वो है  इतराती ,
           आदमी वस्त्र औरत के,पहन लेकिन नहीं पाता
 हमेशा औरतें ही तो ,कहांती घर की है रानी ,
           उम्र भर आदमी पिसता ,मगर नौकर ही कहलाता
आदमी वर्षों मेहनत कर,पढाई कर ,बने  डाक्टर ,
           औरतें ब्याह डाक्टर को,कहाया करती डाक्टरनी
अगर है वो जो फूहड़ तो ,बड़ा ही अव्यवस्थित घर,
            मगर घर स्वर्ग बन जाता ,सुशीला गर जो हो घरनी
औरतें कितनी भी काली,है 'फेयर सेक्स'कहलाती ,
             सुदर्शन गोरे पुरुषों संग ,नहीं इन्साफ होता है
वो हमको घूर कर देखें,ज़माना कुछ नहीं कहता ,
             नज़र भर देख भी लें हम,तो कहते पाप होता है
खुदा  ने मर्दों को दाढ़ी दी,शेविंग की मुसीबत दी ,
              और औरत के गालों को,बड़ा चिकना बनाया है
किधर से भी पकड़ लो तुम ,हमेशा वार करता है ,
            उनके हथियार बेलन ने ,सितम मर्दों पे  ढाया है
पुरुष को कोई बिरला ही ,देवता कहने वाला है,
             औरते तो हमेशा  ही ,कहाया करती है देवी
विष्णुजी और ब्रह्मा के ,बहुत कम लोग पूजक है,
           लक्ष्मी,सरस्वतीजी की ,मगर दुनिया सभी सेवी
  न  जाने कौन सा हुनर ,दिया है भर विधाता ने ,
           औरतों के इशारों पर, आदमी नाच  करता  है
भले ही शेर बन के डांटता है सबको दफ्तर में ,   
           मगर घर पर ,बना बिल्ली,सदा बीबी से डरता है
पड़ गयी जो भी पल्ले है ,निभानी पड़ती है सबको ,
                  भले सीधी  या टेढ़ी हो,भले गोरी हो या काली
हज़ारों रूप है उसके ,कभी माँ है ,कभी बहना ,
               कभी घरवाली है या फिर ,लुभाती बन के वो साली

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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