एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

सोमवार, 14 अक्टूबर 2013

पति परिभाषा

           पति परिभाषा
                    १
जो कोल्हू के बैल सा,जुता  रहे दिन  रात
बस हाँ में हाँ मिलाता ,सभी मानता बात
सभी मानता बात,करे खर्चा,  बन भोला
बीबी  करे  खरीद , उठाता  फिरता   झोला
कह 'घोटू'कवि  फिर भी जो रहता मुस्काता 
 इस दुनिया में ,एसा प्राणी ,पति कहलाता
                    २
जो सहमा सहमा रहे ,तीन करे ना पांच
पत्नीजी के इशारों ,पर करता हो    नाच
पर करता हो  नाच  ,बड़ा ही सीधा सादा
'बादशाह'है दफ्तर में पर घर में 'प्यादा'
'घोटू' चारा खाकर  दूध दिए जो जाता
 गाय सरीखा सीधा प्राणी ,पति कहलाता

घोटू

रविवार, 13 अक्टूबर 2013

चॉदनी रात में खूले आसमान में
विचरण करते चॅाद केा देख रहा था
कितना निश्‍चल कितना शांत
चला जा रहा है अपने रस्‍ते
पर प्रकाश से प्रकाशमान पर
ना ईष्‍या ना कुंठा,ना हिनता
प्रकाश दाता के अस्‍त पर
बन कर प्रतिरूप उसका
अंधेरे केा दूर कर उजाले के
लिये सदैव लालाइत,प्रत्‍यनशील
भले रोक ले आवारा बादल
भले छुपा ले प्रकाश उसका
मगर फिर भी प्रत्‍यन कर
बाहर आकर पुन: प्रकाशमान
धरती केा,अंबंर केा,मानव को
अंहकार भी नही शीतलता पर
अलंकार पर,उदहरणो पर
अपनी चादनी पर,
दूसरे केा सुख देकर खुश
मगर ईश्‍वर की सर्वश्रेष्‍ठ रचना
धंमडी,ईष्‍यावान,लेाभी
स्‍वार्थ के वशीभूत
मॅा'बाप केा भी भूलते
जिसके प्रकाश से प्रकाशमान है
आखिर ईश्‍वर की सर्वश्रेष्‍ठ रचना
मानव क्‍यों है अपने कर्तव्‍य
अपने धर्म से भटक रहा है
क्‍यों नही चाद से सबक लेत
पर प्रकाश से प्रकाशमान 
हेाकर भी रौशनी दिखाने का
ईष्‍ठा कुठा घुमड दूर भगाने का
कठिन राहेा से भी गुजरते हुए
अखंड खुद को सुधारने का
 अखंड खुद को सुधाराने का

हे माता ,नव रूप तुम्हारे

         हे माता ,नव रूप तुम्हारे

मैंने पाया ,यह नव जीवन ,रह नौ महीने गर्भ तुम्हारे
                                        हे माता ! नव रूप तुम्हारे
तुमने सही ,वेदना पीड़ा  ,और मुझे लायी धरती पर
'जन्मदायिनी' रूप तुम्हारा ,है माँ ,सहनशील और सुन्दर
रखा मुझे चिपटा छाती से ,दूध पिला कर ,पाला ,पोसा
'पालनकर्ता'रूप तुम्हारा,है माँ  सबसे भव्य ,अनोखा
मुझको पकड़ा अपनी उंगली ,उठना और चलना सिखलाया
'पथ प्रदर्शनी'रूप लिए माँ,जीवन पथ में ,मुझे बढ़ाया
फिर पढ़ना लिखना सिखलाया ,तुमने 'ज्ञान दायिनी'बन कर
छोटी सीखें दे सिखलाया ,तुमने भले बुरे का अंतर
 इस जीवन में जब भी मुझको,दुःख और पीड़ा ने तडफाया
तुमने'ममता मूर्ती 'बन कर ,मेरे घावों को सहलाया
परेशानियाँ जब भी आई,चिंताओं ने जब भी घेरा
सब चिंताएं हर ली तुमने,'चिता पुर्णी 'रूप है तेरा
देत्य  रूप धर,जब बाधाएं ,आयी मेरे ,प्रगति पथ पर
तूने उन सब को संहारा ,सिंह वाहिनी 'दुर्गा 'बन कर
बड़ा हुआ तो ,सही समय पर ,तूने मेरा ब्याह कर दिया
माँ तो थी ही,पर अब तूने ,'सासू माँ 'का रूप धर  लिया
साथ समय के,घर में आये ,तेरे पोता पोती  अपने
पूर्ण किये 'दादी माँ' बन कर,माता! तूने सारे सपने
अब तो बेटे से भी ज्यादा ,पोता  पोती लगे दुलारे
                                     हे माता ! नव रूप तुम्हारे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

दस्तक

              दस्तक
पहले थी मौसम में गर्मी
भूल गए हम शर्मा शर्मी
मौज और मस्ती थी हरदम
रहते थे स्वच्छंद पड़े हम
पर जब आई कहीं से आहट
हमने  चादर ओढी झटपट
समझ गए ,बाहर निकले जब
सर्दी  ने    आकर दी दस्तक
एसा ही होता है जीवन
यौवन है  गर्मी का मौसम
सर्दी का मौसम आता तब
जब कि बुढापा ,देता दस्तक

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

गुल्लक फोड़ दो

         गुल्लक फोड़ दो

उसूलों से करता हूँ मै ,कोई समझौता नहीं ,
                     और मेरा उसूल है ,सब उसूलों को तोड़ दो
दो दिलों को मिलाने से बढ़के कोई पुण्य  ना,
                     उलटा सीधा करो कुछ भी ,दो दिलों को जोड़ दो 
तुम्हारे मुश्किल दिनों में ,जिनने थामा हाथ था ,
                     उनके मुश्किल दिनों में मत ,हाथ उनका छोड़ दो
मुसीबत में काम आये ,बचाए थे इसलिए ,
                          आज पैसों की जरुरत पड़ी,गुल्लक    फोड़ दो 

घोटू

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-