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रविवार, 18 नवंबर 2012

पत्नी-पीड़ित -पति

           पत्नी-पीड़ित -पति 

सारी दुनिया में ले  चिराग ,
यदि निकल ढूँढने जाए आप
              मुश्किल से ही मिल पायेगा ,
               पत्नी पीड़ित पति सा प्राणी
                  ये बात नहीं है  अनजानी
चेहरे पर चिंतायें होगी ,
             माथे पर शिकन पड़ी होगी
मुरझाया सा मुखड़ा होगा ,
             सूरत कुछ झड़ी झड़ी होगी
सर पर यदि होंगे बाल अगर ,
              तो अस्त व्यस्त ही पाओगे ,
वर्ना अक्सर ही उस गरीब ,
            की   चंदिया  उडी उडी होगी
 रूखी रूखी बातें करता ,
             सूखा सूखा आनन  होगा
निचुड़ा निचुड़ा ,सुकड़ा सुकड़ा ,
              ढीला ढीला सा तन होगा
आँखों में चमक नहीं होगी ,
              कुछ कुछ मुरझायापन  होगा 
यदि बाहर से हँसता भी हो,
              अन्दर से रोता मन होगा
बिचके जो बातचीत में भी,
                कुछ कहने में शरमाता हो
पत्नी की आहट पाते ही ,
                  झट घबरा घबरा जाता हो
चौकन्ना श्वान सरीखा हो,
                    गैया सा सीधा सीधा  हो
पर अपने घर में घुसते ही ,
                     भीगी बिल्ली बन जाता हो
दिखने में भोला भोला हो
जिसके होंठो पर ताला हो
                      बोली हो जिसकी दबी दबी ,
                    और हंसी हँसे जो खिसियानी
                       मुश्किल से ही मिल पायेगा ,
                        पत्नी पीड़ित पति सा प्राणी
उस दुखी जीव को देख अगर ,
                   जो ह्रदय दया से भर जाए         
उसकी हालत पर तरस आये,
                  मन में सहानुभूति  छाये
शायद तुम उससे पूछोगे ,
                 क्यों बना रखी है ये हालत ,
हो सकता है वो घबराये ,
                 उत्तर देने में   कतराये
तुम शायद पूछो क्या ऐसा ,
                  जीवन लगता है जेल नहीं
चेहरे पर चिंताएं क्यों है,
                    क्यों है बालों में तेल  नहीं
सूखी सी एक हंसी हंस कर ,
                     शायद वह यह उत्तर देगा ,
पत्नी पीड़ित ,होकर जीवित ,
                     रह लेना कोई खेल नहीं
मै खोया खोया रहता हूँ,
                       मुझको जीवन से मोह नहीं
सब कुछ सह सकता ,पत्नी से ,
                        सह सकता मगर बिछोह नहीं
शायद मेरी कमजोरी है ,
                            कायरता भी कह सकते हो,
लेकिन अपनी पत्नीजी से ,
                            कर सकता मै  विद्रोह   नहीं   
 कैसे साहस कर सकता हूँ 
उनके बेलन से  डरता हूँ
                         पत्नी सेवा है धर्म मेरा ,
                           पत्नीजी है घर की रानी
                          मुश्किल से ही मिल पायेगा ,
                           पत्नी पीड़ित पति सा प्राणी
ऐसे पत्नी पीड़ित पति की भी,
                     काफी किस्मे होती है 
कितने  ही आफत के मारों ,
                     की गिनती इसमें होती है
कोई के पल्ले बंध जाती,
                      जब बड़े बाप की बेटी है,
तो छोटी छोटी बातों में ,
                      भी तू तू मै  मै  होती है
कोई की पत्नी कमा  रही,
                      तो पति पर रौब चलाती है
कोई सुन्दर आँखों वाली है ,
                       पति को आँख दिखाती  है
कोई का पति दीवाना है ,
                        कोई के पति  जी दुर्बल है ,
पति की कोई भी कमजोरी का ,
                        पत्नी लाभ  उठाती है
कुछ ख़ास किसम के पतियों संग ,
                        एसा भी चक्कर होता है
पति विरही ,तडफे ,पत्नी को ,
                      पर प्यारा पीहर होता है
कोई की पत्नी सुन्दर है,
                    सब लोग घूर कर तकते है 
कुछ शकी किस्म के पतियों को,
                      अक्सर ये भी डर  होता है 
  कोई की पत्नी रोगी है
  कोई की पत्नी ढोंगी  है
                 कोई की पत्नी करती है ,
                  अक्सर अपनी ही मन मानी
                मुश्किल से ही मिल पायेगा ,
                पत्नी पीड़ित पति सा प्राणी
                  ये बात नहीं है अनजानी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

नुक्सान

            नुक्सान

मेरी शादी नयी नयी थी
मेरी बीबी छुई मुई थी
सीधी सादी भोली भाली
एक गाँव की रहने वाली 
ससुर साहब ने पाली भैंसे
बेचा दूध,कमाए पैसे
अरारोट ,पानी की माया
बचा दूध तो दही बनाया
मख्खन,छाछ ,कड़ी बनवायी
घर पर सब्जी कभी न आयी
तो भोली बीबी को लेकर
मैंने बसा लिया अपना घर
तरह तरह की बात बताता
ताज़ी ताज़ी सब्जी  लाता
एक दिवस ऑफिस से लौटा
आते ही बीबी ने टोका
तुम्हे ठगा सब्जी वाले ने
धोखा  खूब दिया साले ने
 सब्जी तुम लाये थे जो भी
हाँ हाँ क्या थी,पत्ता गोभी
छिलके ही छिलके निकले जी
गूदे का ना पता चले जी
मैंने छिलके फेंक दिये  है 
सारे पैसे व्यर्थ गये  है
सुन कर बहुत हंसी सी आई
पत्नीजी ने कभी न खायी
थी सब्जी पत्ता गोभी की
वह ना उसकी माँ दोषी थी 
कंजूसी से काम हो गया
पर मेरा नुक्सान हो गया

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शनिवार, 17 नवंबर 2012

मात शारदे!

   मात  शारदे!

मात शारदे !
मुझे प्यार दे
वीणावादिनी !
नव बहार  दे
मन वीणा को ,
झंकृत कर दे
हंस वाहिनी ,
एसा वर दे
सत -पथ -अमृत ,
मन में भर दे
बुद्धिदायिनी ,
नव विचार दे
मात  शारदे!
ज्ञानसुधा की,
घूँट पिला दे
सुप्त भाव का ,
जलज खिला दे
गयी चेतना ,
फिर से ला दे
डगमग नैया ,
लगा पार दे
मात शारदे !
भटक रहा मै ,
दर दर ओ माँ
नव प्रकाश दे,
तम हर ओ माँ
नव लय दे तू,
नव स्वर ओ माँ
ज्ञान सुरसरी ,
प्रीत धार  दे
मात शारदे !  

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

दुनियादारी

       दुनियादारी

दोस्ती के नाम पर ,जाम पीनेवाले भी,
       दोस्ती के दामन में ,दाग लगा देते है
धुवें से डरते है,लेकिन खुदगर्जी में,
       खुद आगे रह कर के आग  लगा देते  है
रोज की बातें है ,जो अक्सर होती है
    खुदगर्जी  झगडे का ,बीज सदा बोती  है
कभी कभी लेकिन कुछ ,एसा भी होता है,
     दुश्मन तो साथ मगर ,दोस्त दगा देते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

जग में चार तरह के दानी

                 जग में चार तरह के दानी
प्रथम श्रेणी के दानी वो जो पापकर्म  करते रहते है
पर ऊपरवाले से डर  कर ,दान धर्म  करते रहते  है
बेईमानी की पूँजी का ,थोडा प्रतिशत दान फंड में
गर्मी में लस्सी पिलवाते,कम्बल बँटवा रहे ठण्ड में
जनम जनम के पाप धो रहे ,गंगाजी की एक डुबकी में 
पूजा ,हवन सभी करवाते ,लेकिन खोट भरा है जी  में
लेकिन डर कर ,'धरमराज 'से ,धर्मराज  बनने वाले ये,
छिपे भेड़ियों की खालों में ,इस  कलयुग के सच्चे ज्ञानी
                 जग में चार तरह के  दानी
निज में रखता कलम ,पेन्सिल ,कलमदान यह कहलाता है
कुछ पैसे  गंगा में   डालो ,     गुप्तदान यह      कहलाता है 
और तीसरे ढंग  की दानी,       कहलाती है चूहे दानी
कैद किया करती चूहों को , नाम मगर है फिर भी दानी
शायद दान किया करती है,आजादी का,स्वतंत्रता  का
चौथी दानी,मच्छरदानी ,फहराती है ,विजय पताका
मच्छरदानी ,पर मच्छर को,ना देती है पास फटकने
रक्तदान से हमें बचाती  ,रात  चैन से देती  कटने
चूहेदानी में चूहे पर,मच्छरदानी  बिन मच्छर के ,
फिर भी दानी कहलाती है,यह सचमुच ही है हैरानी
                     जग में चार तरह के दानी

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

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