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बुधवार, 8 फ़रवरी 2012

मैं पथिक


क्यूँ चलूँ मैं ऐसे,
राहों में औरों के,
मैं पथिक,
मुझे राह अपनी,
स्वयं बनाना है ।

सुनना है सबकी,
हर बात को लेकिन,
मैं पथिक,
मेरा पथ मुझे,
स्वयं दिखाना है ।

माना कि कई लोग,
कई मार्ग से गुजरे,
उत्तम से अतिउत्तम,
रास्ते बना गए ।

सीखना है सबसे,
बढ़ना है निज पथ पे,
मैं पथिक,
दिये राह में,
स्वयं जलाना है ।

बने बनाए राह पर,
चल पड़ूँ ऐ "दीप",
संघर्ष से भागुँ,
जरुरी तो नहीं ।

टकराना है मुश्किलों से,
चलना है नए राह पे,
मैं पथिक,
पुष्प बाट में,
स्वयं बिछाना है ।

कोई-सी भी मंजिल,
चुन लूँ यूँ ही,
चल पड़ूँ मुँद नैन,
क्या ये सही है ?

नया लक्ष्य है बनाना,
बढ़ना है निरंतर,
मैं पथिक,
तीर लक्ष्य में,
स्वयं चलाना है ।

नत होने का अर्थ है,
मृत ही कहलाना,
मैं पथिक,
धैर्य आप का,
स्वयं बढ़ाना है ।

पति पत्नी और वह

एक दिन
बैठे बिठाये हमें शौक चर्राया
संजीव कुमार की तरह
रोमांस करने का विचार आया
हमने आव देखा न ताव
सेक्रेटरी से पूछने लगे प्रेम का भाव
उसने भी सहानुभूति दर्शाई 

और कहा
आओ मेरे गले लग जाओ |

दोस्तों ने कहा
क्या किस्मत पाई है
बिलकुल संजीव कुमार का भाई है
थोड़े दिनों बाद
वही हुआ जो होता है
अपने देश का आशिक अंत में रोता है
क्योंकि
हमारा रोमांस भी पिछले रोमांस की कड़ी थी
इसलिए
पत्नी हाथ में चप्पल लिए खड़ी थी |

इधर पत्नी ने प्रेमिका को ललकारा
उधर हमने प्रेमिका को पुचकारा
और उसका हौशला बढाया
पत्नी को चित्त करने का
आजमाया हुआ नुस्खा बताया
पहले तो हमारी प्रेमिका सकपकाई
सामने खड़ी रणचंडी को देख कर घबराई
फिर अविलम्ब
शुरू हो गयी हाथापाई
थोड़ी ही देर में
प्रेमिका ने लुट्या दुबबाई
यहाँ भी पत्नी ने ही विजय पाई

किन्तु यह क्या
पत्नी के हाथ में
प्रेमिका के नकली बालों का विग
और जमीन पर नकली दांतों का सैट
मेरे पैरों के नीचे से जमीन फिसली
हाय प्रेमिका तो पत्नी से भी बूढी निकली |

रचनाकार:-चरण लाल

मंगलवार, 7 फ़रवरी 2012

आस

खामोश हैं निगाहें,
जुबानों पे हैं ताले,
घिरे हैं नकाबपोशों से,
दिखते नहीं उजाले,
घबराये से हैं,
कोशिश है संभलने की,
छंट जाये ये बदल,
हट जाये ये जाले |

मुश्किलें भी हैं,
पांवों में हैं छाले,
पर मस्ती में ही हैं,
हम मतवाले,
दंभ नसीब का,
टूटकर बिखरेगा ही,
हिम्मत नहीं खोना,
चाहे निकल जाये दीवाले |

करना नहीं खुद को,
किस्मत के हवाले,
साहस की ही घुट्टी,
पियेंगे भर प्याले,
फलक तक होगी,
अपनी भी उड़ान,
आस का दामन,
न छोड़े हम जियाले | 

दो दो बातें

   दो दो बातें
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औरतों के दो ही हथियारों से डरता आदमी,
        एक आंसूं आँख में और एक बेलन हाथ में
औरतों की दो ही चीजों पर फिसलता आदमी,
         एक उनकी मुस्कराहट,एक रसीली बात  में
औरतों की बात दो ही मौकों पर ना टालता,
         एक उसके मायके में, एक मिलन की रात में
दो ही मौको पर खरच करने में घबराता नहीं,
          एक सासू सामने हो,एक साली    साथ में
  प्यार करने  दो ही मौकों पर हिचकता आदमी,
          एक बच्चे साथ में हो,एक हो जब तन थका
औरतों की दो ही चीजे लख मचलता  आदमी,
           एक  चेहरा खूबसूरत,एक चलने की अदा
औरतों की दो ही चीजे आदमी को है पसंद,
            एक सजना सजाना और एक अच्छा पकाना
औरतों  की दो अदाओं पर फ़िदा है आदमी,
           एक उसकी ना नुकुर और एक नज़रें झुकाना
औरतों के रूप का रस इनसे पीता आदमी,
          नशीले दो नयन चंचल और दो लब  रसीले
दो दिनों की जिंदगी को हंस के जीता आदमी,
         गौरी की दो गोरी बाहों का अगर बंधन मिले

मदन मोहन बाहेती'घोटू'    

   

सोमवार, 6 फ़रवरी 2012

अहो रूप-महा ध्वनि

अहो रूप-महा ध्वनि
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इक दूजे की करे प्रशंसा,हम तुम ,आओ
मै तुम्हे सराहूं,  तुम मुझे  सराहो
ऊंटों की शादी में जैसे,आये गर्दभ,गायक बन कर
ऊँट सराहे गर्दभ गायन,गर्दभ कहे  ऊँट को सुन्दर
सुनकर तारीफ,दोनों पमुदित,इक दूजे का मन बहलाओ
मै तुम्हे सराहूं,तुम मुझे सराहो
काग चोंच में जैसे रोटी, नीचे खड़ी लोमड़ी, तरसे
कहे  काग से गीत सुनाओ,अपने प्यारे मीठे स्वर से
तारीफ़ के चक्कर में अपने ,मुंह की रोटी नहीं गिराओ
मै तुम्हे सराहूं, तुम मुझे सराहो
इन झूंठी तारीफों से हम,कब तक खुद को खुश कर लेंगे
ना तो तुम ही सुधर पाओगे,और हम भी कैसे सुधरेंगे
इक दूजे की  कमी बता कर ,कोशिश कर ,सुधारो,सुधराओ
मै  तुम्हे सराहूं, तुम मुझे सराहो

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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