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शनिवार, 1 अक्टूबर 2011

तेरे लाज के घूँघट से


                                            

उमड़ आयी बदली 
तेरे लाज के घूँघट से 
द्वार पर  खड़ी तू 
बेतस बाट जोहती 
झलक गये तेरे केशू
तेरे आँखों के अर्पण से |

पनघट पे तेरा आना 
भेष बदल गगरी छलकाना 
छलक गयी गगरी तेरी 
तेरे लाज के घूँघट से |

सजीले पंख सजाना 
प्रतिध्वनित  वेग से 
झरकर गिर आयी 
तेरे पाजेब की रुनझुन से |

रागों को त्याग 
निष्प्राण तन में उज्जवल 
उस अनछुई छुअन में 
बरस गयी बदली 
तेरे लाज के घूँघट से 
उमड़ आयी बदली 
तेरे लाज के घूँघट से 
- दीप्ति शर्मा 


www.deepti09sharma.blogspot.com

                                                   

शुक्रवार, 30 सितंबर 2011

महाभारत-आठ दोहे

महाभारत-आठ दोहे
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मै हूँ प्यासा युधिष्ठिर,तुम जल भरा तलाब
यक्ष प्रश्न का तुम्हारे,दूंगा सभी जबाब

तुम हो मछली घूमती,रहा तुम्हे मै ताक
प्रेम तीर एसा चले,कि बिंध जाए  आँख

मुझ पर रीझी उर्वशी,मांगे प्रेम प्रसाद
श्राप मिले ,पर ना रमण,करूं और के साथ

कुरुक्षेत्र कि तरह है,घर,गृहस्थ,मैदान
तुम कहती सब से लड़ो,ये गीता का ज्ञान

इस विराट के महल में,सबके अपने कृत्य
अर्जुन जैसे योद्धा,सिखलाते हैं नृत्य

चक्रव्यूह तुमने रचा,पहन आवरण  सात
सातों वाधाएं हटे, अभिमन्यु के हाथ

राह दिखाओ पति को,यदि पति है जन्मांध
गांधारी सी मत रहो,आँख पट्टियां  बाँध

प्रेम गली सकड़ी नहीं,कृष्ण कहे मुसकाय
आठ
लेन की सड़क है,आठ रानियाँ आय

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

हारहूर से तेज है, हार हूर अभिसार

पति  की  अनुनय  को  धता, कुपित होय तत्काल |
बरछी - बोल  कटार - गम,  सहे  चोट  मन - ढाल ||

पत्नी  पग-पग  पर  परे, पल-पल  पति  पतियाय |
श्रीमन का मन मन्मथा, श्रीमति मति मटियाय ||


हार गले की फांस है, किया विरह-आहार |
हारहूर  से  तेज  है,  हार   हूर  अभिसार ||
हारहूर=मद्य
आहार-विरह=रोटी के लाले

 चमकी चपला-चंचला , छींटा छेड़ छपाक |
 तेज तड़ित तन तोड़ती,  तददिन तमक तड़ाक |

मुमुक्षता मुँहबाय के, माया मोह मिटाय |
मृत्यु-लोक से जाय के, महबूबा चिल्लाय ||

 मुमुक्षता=मुक्ति की अभिलाषा का भाव 

गुरुवार, 29 सितंबर 2011

लंका दहन

लंका दहन
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लंका का राजा रावण,
था महान वैज्ञानिक ,
और उसकी सोच थी,
बड़ी आधुनिक
उसके पास,आधुनिकतम,
हथियारों का भंडार था
उसका खुद का हेलिकोप्टर,पुष्पक,
बेमिसाल था
उसने जब लंका का टाउन प्लानिग किया
जल वितरण के लिए,नलों की व्यवस्था की,
लोग बोले, उसने वरुण को कैद कर लिया
 लंका के सारे घरों का डिजाइन एक जैसा करवाया
सभी भवनों के शिखरों को सोने से मंडवाया
इसीलिए लंका,सोने की लंका कहलाई
पर बाद में इसी ने मुसीबत ढाई
बाकि तो सब ठीक था
पर उसका सिविल मेंटेनन्स विभाग ,
थोडा वीक था
सीताजी की तलाश में,
हनुमानजी ने ,जब लंका का हर घर खंगाला था
तो कई छतों पर,
सोने की परत उखड़ी पड़ी थी,
नीचे कुछ काला काला था
हनुमानजी ने जब विवेचन किया
तो पाया की काली काली चपड़ी थी,
जिस पर था सोने के पतरे को मड दिया
और अंत में जब सीताजी ,
रावण के फार्महाउस 'अशोक वाटिका' में मिली
 और रावण द्वारा पकडे जाने पर,
हनुमानजी की पूँछ जली
कहते है हनुमानजी का दिमाग,
कंप्यूटर से भी तेज था,
उन्हें छतों पर,सोने की परत के नीचे,
काली काली चपड़ी की याद आई
तो उन्होंने छतों पर छलांग लगायी
और क्योंकि चपड़ी ,बहुत ज्वलनशील होती है,
उसमे आग लग गयी
और सोने की लंका जल गयी

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

बुधवार, 28 सितंबर 2011

रावण दहन


खुद ही बनाते हैं, खुद ही जलाते हैं,
यूँ कहें कि हम अपनी भड़ास मिटाते हैं |

समाज में रावण फैले कई रूप में यारों,
पर उनसे तो कभी न पार हम पाते हैं |

रावण दहन के रूप में एक रोष हम जताते हैं,
समाज के रावण का खुन्नस पुतले पे दिखाते हैं |

उसी रावण की तरह होता है हर एक रावण,
पुतले की तरह हर रावण को हम ही उपजाते हैं |

हर भ्रष्टाचारी, व्यभिचारी एक रावण ही तो है,
यहाँ तक कि हम सब अपने अंदर एक रावण छुपाते हैं |

इन सब से मुक्ति शायद बस की अब बात नहीं,
इसलिए रावण दहन कर अपनी भड़ास हम मिटाते हैं |

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