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बुधवार, 10 जुलाई 2019

रिश्ते

न तेरे हुस्न में बाकी वो करारापन है
न मुझमे बेकरारी और वो बावलापन है
होगये इतने बरस ,हमने निभाये रिश्ते ,
आज भी संग है,खुश है,भला ये क्या कम  है

बीच में कितने ही झगडे हुए ,तकरार हुई ,
हममे से कोई झुका अपना अहम छोड़ दिया
हमारे रिश्तों में जब जब पड़ी दरार कोई ,
उसे सीमेंट से समझौते की ले  जोड़ दिया
कभी ठन्डे थे कभी गर्म ,कभी बरसे  भी ,
अपने रिश्ते रहे ,जैसे बदलता  मौसम है
हो गए इतने बरस ,हमने निभाये रिश्ते ,
आज भी संग है ,खुश है ,भला ये क्या कम है

ख्वाइशें सभी के मन में हजारों होती है ,
नहीं जरूरी है कि सब की सब ही हो पूरी
कोई संतुष्ट नहीं रहता सदा जीवन में ,
कुछ न कुछ तो कहीं पे आ ही जाती मजबूरी
जो भी मिल जाए ,मुकद्दर समझ के खुश हो लो,
कभी है जिंदगी में खुशियां तो कभी गम है
हो गए इतने बरस ,हमने निभाए रिश्ते    ,
आज भी संग है ,खुश है भला ये क्या कम है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

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