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गुरुवार, 4 जुलाई 2019

तुम पहले जैसे नहीं रहे


तुम पहले जैसे रहे  
पहले मेरे हर नहले पर ,तुम दहला मारा करते थे ,
अब बस चौकी,पंजी,छक्की ,तुम दहले जैसे नहीं रहे
तुम पहले जैसे नहीं रहे

खाते थे चार पराठें तब ,अब खाते हो रोटी लूखी
चेहरे की लुनाई गायब है ,सूरत लगती सूखी सूखी
शौक़ीन जलेबी हलवे के करते मिठाई से बहुत प्यार
गाढ़ा कढ़ाई का दूध गरम ,कुल्हड़ भर पी, लेते डकार
चाहत थी चाट पकोड़ी की,आलू टिक्की से उल्फत थी
कुल्फी फालूदा रबड़ी से ,मुझसे भी अधिक मोहब्बत थी
अब इन चीजों को देख देख ,ललचाते पर कतराते हो
डॉक्टर ने मना किया कह कर ,खुद पर कन्ट्रोल लगाते हो
ना पहले जैसा जज्बा है ,ना पहले जैसी  हिम्मत है
ना ललक रही पहले जैसी ,ना पहले जैसी चाहत है
जिनकी हरएक हरकत पर मैं ,मर जाती थी,मिट जाती थी ,
मुझको पगला देने वाले अलबेले जैसे नहीं रहे
तुम पहले जैसे नहीं रहे

ना पहले सी मीठी बातें ,मिलने का अब वो चाव नहीं
तुमको मुझसे ,पहले जैसा , शायद अब रहा लगाव नहीं
लगता अपने संबंधों में , बदलाव आ गया कुछ ऐसे
पहले हम प्रेमी होते थे ,अब बस मियां बीबी  जैसे
था नदी पहाड़ी सा जीवन ,उच्श्रंखल और उछलता सा
आया मैदानी इलाके में ,अब मंथर गति से चलता सा
वो गया जमाना जब होती ,मेरी पसंद ,तेरी पसंद
तब हम बेफिकरे होते थे ,अब एक दूजे की फिकरमंद
ये नहीं जानना आवश्यक ,कि किसने किसको बदला है
यह खेल उमर बढ़ती का है ,जिसने कि हमको बदला है
है तन की ऊर्जा घटी  हुई ,जिम्मेदारी भी बढ़ी हुई ,
बिन आपा खोये ,उंच नीच ,सब सहले ,वैसे नहीं रहे
तुम पहले जैसे नहीं रहे

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
 

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