प्रीत की रीत
( बाली समुद्र तट पर लिखी रचना )
कहा तट से ये लहर ने
सुबह,शामो दोपहर में
सुबह,शामो दोपहर में
मै तुम्हारे पास आती
तुम्हारा सानिध्य पाती
मिलन क्षण भर का हमारा
बड़ा सुन्दर,बड़ा प्यारा
मै बड़ी बेताब ,चंचल
मिलन सुख के लिये पागल
और पौरुष की अकड से
पड़े तुम चुपचाप ,जड़ से
दो कदम भी नहीं चलते
बस मधुर रसपान करते
तुम्हारे जैसे दीवाने
प्रीत की ना रीत जाने
मिलन का जब भाव आता
कली तक अली स्वयं जाता
प्यार पाने को तरसते
धरा पर बादल बरसते
एक मै ही बावरी हूँ
तुम्हारे पीछे पड़ी हूँ
विहंस कर तट ने कहा यों
पूर्ण विकसित पुष्प पर ज्यों
तितलियाँ चक्कर लगाती
उस तरह तुम पास आती
प्यार का सब पर चढ़े रंग
प्यार करने का मगर ढंग
अलग होता है सभी का
कभी मीठा,कभी तीखा
और तुम नाहक ,परेशां
सोचने लगती हो क्या क्या
प्यार में हम तुम सने है
एक दूजे हित बने है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
तुम्हारा सानिध्य पाती
मिलन क्षण भर का हमारा
बड़ा सुन्दर,बड़ा प्यारा
मै बड़ी बेताब ,चंचल
मिलन सुख के लिये पागल
और पौरुष की अकड से
पड़े तुम चुपचाप ,जड़ से
दो कदम भी नहीं चलते
बस मधुर रसपान करते
तुम्हारे जैसे दीवाने
प्रीत की ना रीत जाने
मिलन का जब भाव आता
कली तक अली स्वयं जाता
प्यार पाने को तरसते
धरा पर बादल बरसते
एक मै ही बावरी हूँ
तुम्हारे पीछे पड़ी हूँ
विहंस कर तट ने कहा यों
पूर्ण विकसित पुष्प पर ज्यों
तितलियाँ चक्कर लगाती
उस तरह तुम पास आती
प्यार का सब पर चढ़े रंग
प्यार करने का मगर ढंग
अलग होता है सभी का
कभी मीठा,कभी तीखा
और तुम नाहक ,परेशां
सोचने लगती हो क्या क्या
प्यार में हम तुम सने है
एक दूजे हित बने है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।