बुढापे के हालात
आप को अब क्या बताएं,क्या कहे ,
उम्र के इस दौर के हालात क्या है
जिन्दगी के सिर्फ बीते छह दशक है ,
लोग कहते है बुढापा आ गया है
अनुभव और निपुणता से भर गए जब ,
'इम्प्लोयर ' ने 'रिटायर' कर दिया है
बच्चे भी तो ज्यादा कुछ सुनते नहीं है ,
सोचते है बुड्ढा अब सठिया गया है
बुढ़ापे की उम्र ऐसी आई है ये ,
बड़े उलटे अनुभव होने लगे है
नींद यूं तो आजकल कम आ रही है ,
हाथ,पाँव मगर अब सोने लगे है
आजकल सिहरन बदन में नहीं होती ,
झुनझुनी पर पाँव में आने लगी है
हुस्न क्या देखें किसी का ,खुद की ही अब ,
आईने में शकल धुंधलाने लगी है
यूं तो सब कडवे अनुभव हो रहे है,
खून में मिठास पर बढ़ने लगा है
काम का प्रेशर तो सारा घट गया है,
मगर 'ब्लड प्रेशर' बहुत बढ़ने लगा है
शान से सर पर सजे थे बाल काले ,
उनकी रंगत में सफेदी आ गयी है
हसीनाएं कहती है अंकल या बाबा ,
ऐसी हालत अब हमें तडफा गयी है
मन तो करता है बहुत कुछ करें लेकिन,
आजकल कुछ भी तो कर पाते नहीं है
भूख भी कम हो गयी ,पाबंदियां है,
मिठाई ,पकवान कुछ खाते नहीं है
तरक्की की सीढियां तो चढ़ गए पर ,
सीढियां चढ़ने में दिक्कत आ रही है
मेहनत अब हमसे हो पाती नहीं है ,
जरा चल लो,सांस फूली जा रही है
देख कर बेदर्दियाँ इस जमाने की ,
दर्द सा अब सीने में उठने लगा है
अपने ही अब बेरुखी दिखला रहे है,
इसलिए दिल आजकल घुटने लगा है
बांसुरी अब बेसुरी सी हो गयी है ,
जिधर देखो उधर ही अब समस्या है
आप को अब क्या बताएं,क्या कहें,
उम्र के इस दौर के हालात क्या है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
आप को अब क्या बताएं,क्या कहे ,
उम्र के इस दौर के हालात क्या है
जिन्दगी के सिर्फ बीते छह दशक है ,
लोग कहते है बुढापा आ गया है
अनुभव और निपुणता से भर गए जब ,
'इम्प्लोयर ' ने 'रिटायर' कर दिया है
बच्चे भी तो ज्यादा कुछ सुनते नहीं है ,
सोचते है बुड्ढा अब सठिया गया है
बुढ़ापे की उम्र ऐसी आई है ये ,
बड़े उलटे अनुभव होने लगे है
नींद यूं तो आजकल कम आ रही है ,
हाथ,पाँव मगर अब सोने लगे है
आजकल सिहरन बदन में नहीं होती ,
झुनझुनी पर पाँव में आने लगी है
हुस्न क्या देखें किसी का ,खुद की ही अब ,
आईने में शकल धुंधलाने लगी है
यूं तो सब कडवे अनुभव हो रहे है,
खून में मिठास पर बढ़ने लगा है
काम का प्रेशर तो सारा घट गया है,
मगर 'ब्लड प्रेशर' बहुत बढ़ने लगा है
शान से सर पर सजे थे बाल काले ,
उनकी रंगत में सफेदी आ गयी है
हसीनाएं कहती है अंकल या बाबा ,
ऐसी हालत अब हमें तडफा गयी है
मन तो करता है बहुत कुछ करें लेकिन,
आजकल कुछ भी तो कर पाते नहीं है
भूख भी कम हो गयी ,पाबंदियां है,
मिठाई ,पकवान कुछ खाते नहीं है
तरक्की की सीढियां तो चढ़ गए पर ,
सीढियां चढ़ने में दिक्कत आ रही है
मेहनत अब हमसे हो पाती नहीं है ,
जरा चल लो,सांस फूली जा रही है
देख कर बेदर्दियाँ इस जमाने की ,
दर्द सा अब सीने में उठने लगा है
अपने ही अब बेरुखी दिखला रहे है,
इसलिए दिल आजकल घुटने लगा है
बांसुरी अब बेसुरी सी हो गयी है ,
जिधर देखो उधर ही अब समस्या है
आप को अब क्या बताएं,क्या कहें,
उम्र के इस दौर के हालात क्या है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।