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सोमवार, 4 अप्रैल 2016

यूं ही तो बात ना बनती

      यूं ही तो बात ना बनती

कोई पत्ता ,कहीं एक डाल का ,पीला पड़ा होगा ,
समझ ये लोग बैठे कि ,आगई ऋतू है बासंती
                             यूं ही  तो बात ना बनती
 अगर फैला है अंधियारा तो सूरज ढल गया होगा,
दिखी है रौशनी थोड़ी , कहीं दीपक जला  होगा
उछलती कूदती गंगा ,जो उतरी है  पहाड़ों से ,
किसी हिमखंड का सीना,कहीं से तो गला होगा
निमंत्रण कुछ तो लहरों ने समंदर की दिया होगा ,
नहीं तो बावरी नदियां ,मिलन को यूं नहीं भगती
                                   यूं ही तो बात ना बनती
कोई चिंगारी उड़ कर के,कहीं से आई तो होगी ,
समझ कर आग लोगों ने ,यूं ही हलचल मचा डाली
और कुछ नारदो  की टोलियों ने लगा कर  तिकड़म ,
जरा सी बात जो भी थी ,बतंगड़ सी बना  डाली
बहुत कोशिश थी जल जाए लेकिन थोड़ा ही सुलगा ,
नहीं तो धुवाँ ना उठता   ,ये थोड़ी आग ना लगती
                                   यूं ही तो बात ना बनती
दबा था बीज छोटा सा ,पनपता देख कर उसको ,
पुराने बरगदों में चिंताएं अस्तित्व की छायी
आसुरी ताक़तों ने पनपता देवत्व जब देखा ,
बिलों से भीड़ साँपों की,तिलमिला कर निकल आई
किसी इन्दर ने छलबल से धरा था रूप गौतम का,
अहिल्या सी सती  नारी ,यूं ही पाषाण ना बनती
                                  यूं ही तो बात ना बनती  

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
                                   

खस्ता

        खस्ता

खस्ता रोटी अच्छी लगती,स्वाद गजक खस्ता का बढ़िया
खस्ता सिकी मूंगफली अच्छी,भाती खस्ता  आलूटिकिया
मन आनन्दित होजाता यदि ,खस्ता मिले कचोडी  खाने
खस्ता भुजिया ,पापड़,मठरी  , खाने  के सब ही दीवाने
खस्ता  सभी चीज मनभावन ,उनका स्वाद जुबां पर बसता
तो क्यों जब हालत बिगड़ी हो ,हम कहते हालत है खस्ता

घोटू  

भड़ास

        भड़ास

यह एक कटु सत्य है ,
कि हर पति की तरह ,
मै भी अपनी पत्नी से डरता हूँ
और उनकी उँगलियों के ,
इशारों पर नाचा करता हूँ
चाहे किसी की भी हो गलती
डाट मुझ पर ही पड़ती
पत्नी के आगे मेरी एक नहीं चलती
रह जाता हूँ मन मसोस
और अपनी तक़दीर को कोस
सोचता हूँ कि मै अकेला ही नहीं हूँ,
जिसे झेलनी पड़ती ये मुसीबत है
हर पति की ये ही हालत है
फिर भी निकालने को मन के भड़ास
मै भिंडी की सब्जी बनाता हूँ ख़ास
लम्बी लम्बी भिंडियों को काट कर ,
फिर उनमे चीरा लगा कर
मिर्च और मसाला देता हूँ भर
फिर उन्हें गरम गरम तेल में पकाता हूँ
और दबा दबा कर खाता हूँ
क्योंकि भिंडियों को अंग्रेजी में ,
कहते है लेडी फिंगर
याने औरत की उँगलियाँ ,
और यही सोच कर
कि मेरे ऊपर  जो उंगलियों के
इशारों ने किया है अत्याचार
उसका मैं लेता हूँ  प्रतिकार
चाहे गलत है या सही है
मेरा भड़ास निकालने का तरीका यही है
और कुछ कर सकने की ,
मुझमे हिम्मत ही नहीं है
या फिर टी वी का रिमोट लेकर ,
बार बार चैनल हूँ बदलता
और दूर करता हूँ अपनी व्याकुलता
और यही सोच कर मन बहलाता हूँ ,
कि कोई तो है जो मेरे इशारों पर चलता

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सांसें बहुएं एक सरीखी

            सांसें बहुएं एक सरीखी

औरत होकर भी औरत का ,साथ निभाना ये ना सीखी
सारी  सासें    एक सरीखी, सारी  बहुएं   एक  सरीखी
चाहे मीठी बात बना कर ,बातें करती हो शक्कर सी
पर जब भी मौका मिलता है ,आपस में देती टक्कर 
हरी ,लाल हो चाहे काली , हर  मिरची  होती है तीखी
सारी सांसें  एक सरीखी ,सारी  बहुएं  एक  सरीखी
माँ  सोचे  बेटा बेगाना  हुआ , हुई  शादी  उस पल से
बहू सोचती कैसा पति है ,बंधा रहे माँ के   आंचल  से
 ऐसी ही तो तू तू,मै मै ,होती हर घर में है दिखी
 सारी  सांसें एक सरीखी,सारी   बहुएं  एक सरीखी
वो भी तो थी बहू एक दिन ,उसने भी सांसें झेली है
साँसों की बॉलिंग के आगे ,बेटिंग कर, पाली खेली है
स्पिन और फास्ट थी बालिग़ ,फिर भी है मैदान पर टिकी
 सारी   सांसें  एक  सरीखी ,सारी  बहुएं  एक  सरीखी
बहू दूध है  ताज़ा ताज़ा ,सास  पुराना  जमा  दही  है
करे न तारीफ़ ,कोई किसी की ,उल्टी गंगा कभी बही है
माँ बीबी के बीच फजीहत ,होती है बेचारे  पति की
सारी   सांसें  एक  सरीखी ,सारी  बहुएं  एक सरीखी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 29 मार्च 2016

तू ही रहे साथ मेरे


















आह! दुनिया नहीं चाहती मैं, मैं बनकर रहूँ
वो जो चाहती है, कहती हैं, बन चुपचाप रहूँ
होठ भींच, रह ख़ामोश, ख़ुद से अनजान रहूँ
रहकर लाचार यूँ ही, मैं ख़ुद से पशेमान रहूँ

बनकर तमाशबीन मैं क्यों, ये असबाब सहूँ?
कहता हूँ ख़ुद से, जो हूँ जैसा हूँ वही ज़ात रहूँ
नहीं समझे हैं वो, कोशिशें उल्टी पड़ जाती हैं
मैं मजबूर नहीं, टूटना ऐसे मेरा मुमकिन नहीं

महसूस करता है हर लम्हा, दिल-ओ-दिमाग मेरा
ख़त्म हो रहा है मुझमें, धीमे-धीमे हर एहसास मेरा
दर्द से क्षत-विक्षत है, कहने को मज़बूत शरीर मेरा
चुका रहा है कीमत जुड़े रहने की, हर जज़्बात मेरा

दिल करता है कभी, लेट जाऊं और निकल जाऊं
ले आत्मा को साथ, ऊँचे नील-गगन में विचर जाऊं
पर समय अभी आया नहीं, तो जल्दी क्यों तर जाऊं
काज ज़िम्मे हैं कई जीवन में, छोड़ इन्हें किधर जाऊं

तो जब तक मुकम्मल ना हो जाएँ, सभी मस्लहत मेरे
तुम ही संभालो 'निर्जन', पल-पल उलझते लम्हात मेरे
उम्मीद छोटी सी, अमन पसंद ज़िन्दगी की है यारा मेरे
दूर रहे दुनिया मुझसे, फ़क़त एक तू ही रहे साथ मेरे

पशेमान - repentent, ashamed
तमाशबीन - spectator
असबाब - scene, stuff
मुकम्मल - complete
मस्लहत - policy
लम्हात -  moments


#तुषारराजरस्तोगी #दुनिया #बदलाव #अहसास #जज़्बात #निर्जन #मस्लहत #उम्मीद

रविवार, 27 मार्च 2016

होलिका दहन

  होलिका दहन

एक हसीना थी
बड़ी नाजनीना थी
जलवे दिखाती थी
सबको जलाती थी
करती थी ठिठोली
नाम था  होली
उसको था वरदान
कोई भी इंसान
उसका संग पायेगा
बेचारा जल जाएगा
और एक प्रह्लाद था
एकदम फौलाद था
ग्यानी और गुणी था
धुन का धुनी  था
होली के मन भाया
गोदी में बैठाया
उसको था जलाना
पर वो था दीवाना
नहीं किसी से कम था
फौलादी  जिसम था
बड़ा ही था बली
जलाने उसे चली
 कोशिश बेकार गई
बेचारी हार गयी   
मात यहाँ पर खायी
उसे जला ना पायी
खुद ही पिघल गयी
होलिका जल गई

मदन मोहन बाहेती'घोटू;'

भिक्षामदेही

       भिक्षामदेही

         तुम कोमलांगिनि ,मृदुदेही
         है हृदय रोग ,  मै  मधुमेही
          मै प्यार मांगता हूँ तुमसे ,
           भिक्षामदेही ,भिक्षामदेही
दीवानों का दिल लूट लूट ,
तुमने अपने आकर्षण से
निज कंचन कोषों में बांधा  ,
तुमने कंचुकी के बंधन से
क्यों मुझको वंचित रखती हो ,
अपने  संचित यौवन धन से
           मै प्यार ढूढ़ता हूँ तुम में ,
           है नज़र तुम्हारी  सन्देही
          भिक्षामदेही ,भिक्षामदेही
मै नहीं माँगता हूँ कंचन ,
मुझको बस,  दे दो आलिंगन
मधु भरे मधुर इन ओष्ठों से,
दे दो एक मीठा सा चुंबन
मेरी अवरुद्ध शिराओं में ,
हो पुनः रक्त का संचालन
          ना होगा पथ्य,अपथ्य ,तृप्त ,
          होगा पागल ,प्रेमी ,स्नेही
           भिक्षामदेही ,भिक्षामदेही

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

बुधवार, 23 मार्च 2016

गोबर की अहमियत

        गोबर की अहमियत

हमारी जिंदगी में कदर कितनी गाय भेंसों की ,
एक छोटे से उदाहरण से ,समझ सब आप सकते है
करे इंसान विष्टा तो,बहा  दी जाती है फ्लश में,
करे गर गाय गोबर तो,हम उपले थाप रखते है
पवित्तर मानते इतना ,लगाते चौका गोबर का ,
हवन में काम में लाते ,जलाते आग चूल्हे की,
उन्ही के अंगारों पर रोटियां हम सेक खाते है ,
बचे जो राख ,उससे भी ,हम बरतन साफ़ करते है

घोटू

न रंग होली के फागुन में

       न रंग होली के फागुन में

लड़कियां देख कर 'घोटू' बहुत फिसले लड़कपन में
हुई शादी, हसरतें सब, रह गई ,मन की ही मन में
किसी को ताक ना सकते,कहीं हम झाँक ना सकते ,
बाँध कर रखती है बीबी, हमे अब  अपने   दामन में 
हमारी हरकतों पर अब,दफा एक सौ चुम्मालिस है,
न आँखे चार कर सकते किसी से ,हम है बंधन में
गर्म मिज़ाज़ है बीबी, हर एक मौसम में तपती लू,
न रिमझिम होती सावन में ,न रंग होली के फागुन में 
काटते रहते है चक्कर ,उन्ही के आगे पीछे  हम,
बन गए बैल कोल्हू के ,बचा ही क्या है  जीवन में

घोटू

आशिक़ी और होली

       आशिक़ी और होली

जलवा दिखा के हुस्न का ,हमको थी जलाती ,
   ये जान कर भी  रूप पर ,उनके हम  फ़िदा  है
हमको न घास डालती थी जानबूझ कर ,
      हम समझे हसीनो की ये भी कोई अदा  है
देखा जो किसी और को बाहों में हमारी ,
      मारे जलन के ,दिलरुबा ,वो खाक हो गयी
प्रहलाद सलामत रहा,होलिका जल गयी,
       ये तो पुरानी,  होली वाली ,बात हो गयी

घोटू  

होली की जलन

        होली की जलन
                  १
सुंदर कन्या कुंवारी ,जिसका रूप अनूप
ज्यों गुलाब का फूल हो,या सूरज की धूप
या सूरज की धूप ,हमारे  मन को  भायी 
लाख करी कोशिश,मगर वो हाथ  न आयी
हमे जलाती रोज ,दिखा कर नूतन जलवा
ललचाता था बहुत ,हुस्न का उनके हलवा
                   २
हमने कुछ ऐसा किया ,रहगयी मलती हाथ
देखा हमको दूसरी , हुस्न परी  के  साथ
हुस्न परी के साथ ,कुढ़ी कुछ ऐसी मन में
जल कर हो गई खाक ,आग यूं लगी बदन में
'घोटू'  ये तो वही  पुरानी बात  हो गयी
जला नहीं प्रहलाद ,होलिका ख़ाक हो गयी
                     ३
जानबूझ कर जो हमे ,न थी डालती घास
आगबबूला सी खिंची ,आई हमारे  पास
आई हमारे पास ,तमक से  लाल लाल थी
'घोटू'खुश थे  ,सफल हमारी  हुई चाल थी
लगा प्रेम से गले, प्यार कर  उन्हें मनाया
अंग  अंग  उनके ,होली का रंग   लगाया

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शहीद दिवस पर नमन

भारत माता के लाल थे वे,
आजादी की थी चाह बड़ी,
भारत माता के शान में बस,
चल निकले मुश्किल राह बड़ी ।

स्वाधीनता के दीवाने थे,
गौरों का दम जो निकाला था,
नस नस में थी आग दौड़ती,
खुद को आँधी में पाला था ।

इंकलाब की आग देश में,
खुद जलकर भी लगाया था,
मूँद कर आँखें सोये थे जो,
फोड़ कर बम यूँ जगाया था ।

सच्चे सपूत थे माता के,
अपना सुख दुःख सब भूल गए,
माता की बेड़ी तोड़ने को,
हँसते फांसी में झूल गए ।

वे बड़े अमर बलिदानी थे,
फंदे को जिसने चूमा था,
मेरा रंग दे बसंती चोला पर,
मरते मरते भी झूमा था ।

आदर्श बने लाखों युवा के,
नाम है जब तक है गगन,
सिंह भगत, सुखदेव, गुरु,
है आपको शत-शत नमन ।

भगतसिंह,सुखदेव और राजगुरु के शहादत दिवस पर शत-शत नमन । 

-प्रदीप कुमार साहनी

मंगलवार, 22 मार्च 2016

पांच तत्व की प्रतिमा -नारी

 पांच तत्व की प्रतिमा -नारी

हमार काया
को प्रभु ने पांच तत्वों से बनाया
हवा,पानी ,अग्नि ,धरती और आकाश
पर इनका आभास
नारी में होता है ख़ास
उनमे हवा तत्व है भरपूर मिलता
उनकी इजाजत के बिना ,
घर का एक पत्ता भी नहीं हिलता
अग्नि तत्व भी स्पष्ट नज़र आता है
इनके सानिध्य  से ,कोई भी ,
पत्थर से पत्थर दिलवाला इंसान पिघल जाता है
और जब ये अपने जल तत्व का जलवा दिखलाती है
तो पति की सारी कमाई ,पानी  की तरह बहाती है
जब कभी ये सजधज कर ,इतरा कर ,
आसमान में उड़ती है
तो अपने आकाश तत्व से जुड़ती है
और जो कोई इन्हे छेड़े और हरकतें करे ऊल जलूल
तो ये उसे चटा देती है ,धरा तत्व की धूल
इसीलिये मैं इस पांच तत्व की प्रतिमा से डरता हूँ
और रोज सुबह उठ कर ,
अपनी पत्नी को दंडवत प्रणाम करता हूँ
 
मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सोमवार, 21 मार्च 2016

पांच तत्व की प्रतिमा -नारी

 पांच तत्व की प्रतिमा -नारी
 
हमार काया
को प्रभु ने पांच तत्वों से बनाया
हवा,पानी ,अग्नि ,धरती और आकाश
पर इनका आभास
नारी में होता है ख़ास
उनमे हवा तत्व है भरपूर मिलता
उनकी इजाजत के बिना ,
घर का एक पत्ता भी नहीं हिलता
अग्नि तत्व भी स्पष्ट नज़र आता है 
इनके सानिध्य  से ,कोई भी ,
पत्थर से पत्थर दिलवाला इंसान पिघल जाता है
और जब ये अपने जल तत्व का जलवा दिखलाती है
तो पति की सारी कमाई ,पानी  की तरह बहाती है
जब कभी ये सजधज कर ,इतरा कर ,
आसमान में उड़ती है
तो अपने आकाश तत्व से जुड़ती है
और जो कोई इन्हे छेड़े और हरकतें करे ऊल जलूल
तो ये उसे चटा देती है ,धरा तत्व की धूल
इसीलिये मैं इस पांच तत्व की प्रतिमा से डरता हूँ
और रोज सुबह उठ कर ,
अपनी पत्नी को दंडवत प्रणाम करता हूँ
 
मदन मोहन बाहेती'घोटू'



 

ढपोरशंख

 भाषणबाजी में अव्वल, करने धरने में शून्य अंक,
आज के नेता हो चले हैं, जैसे कि ढपोरशंख ।

रोज नए नए वादे होते, करने के न इरादे होते,
जनता को भी लिए लपेटे, इनके कई कई प्यादे होते ।

राजनीति एक दल दल जैसी, ये खुद ही बन गए पंक,
निरे निखट्टू आज के नेता, जैसे कि ढपोरशंख ।

बस चुनाव में इनका आना, जीत कर ठेंगा है दिखाना,
वादे इनको याद करा दो, पहले से तैयार बहाना ।

दल बदलू और स्वार्थ परक ये, अपनो को ही मारे डंक,
लाभ के लिए कुछ भी कर दें, हो गए ये ढपोरशंख ।

होली तो इनकी ही हो ली, इनकी ही होती है दीवाली,
असली पैसों से ये खेले, पर सारे हैं लोग ये जाली ।

मुँह बाये हम आम लोग हैं, माल खा रहे ये कलंक,
अव्वल अब मक्कारी में भी, ये नेता हैं ढपोरशंख ।

- प्रदीप कुमार साहनी

रविवार, 20 मार्च 2016

होली-रंगों का त्योंहार

 होली-रंगों का त्योंहार

        आज होली दिवस भी है,
         रंगों का  त्योंहार भी है
पर्व कल था जो दहन का
आस्थाओं के दमन का
कुटिलता के नाश का दिन
भक्ति के  विश्वास का दिन
         शक्ति के उस परिक्षण में
         जीत भी है ,हार भी है
         आज होली  दिवस भी है,
          रंगों का त्योंहार भी है
  आग  भी है, फाग भी है
जलन है  अनुराग भी है
दाह भी है,  डाह भी है
चाह भी है, आह भी है 
          अजब है संयोग देखो,
          प्यार है,प्रतिकार भी है
          आज होली  दिवस भी है,
           रंगों का  त्योंहार भी है
आज उत्सव है मदन का
पर्व है ये  मधु मिलन का
प्रीत का,मनमीत का दिन
मचलते  संगीत का दिन
         आज रंगों में बरसता,
          प्यार है,मनुहार भी है
         आज होली  दिवस भी है,
          रंगों का  त्योंहार भी है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शनिवार, 19 मार्च 2016

बीबी का एडिक्शन

           बीबी का एडिक्शन

जिस दिन खाने को ना मिलती ,है बीबीजी  डाट हमे ,
     वो सारा का सारा  दिन ही, सूना सूना सा लगता  है
जिस सुबह नहीं हमको मिलती ,उनकी हाथों की बनी चाय ,
     उस दिन गायब रहती चुस्ती ,और मन सुस्ती से भरता है
जिस उनके हाथों छोंकी , है दाल न होती थाली में,
       उस दिन रोटी का टुकड़ा भी,मुश्किल से गले उतरता है
जिस दिन न मिले उनकी झिड़की,खुल ना पाती दिल की खिड़की
      जिस दिन तकरार नहीं होती ,उस दिन ना प्यार उमड़ता है
जिस दिन वो नहीं रूठती है,मिलता ना मज़ा मनाने का ,
      उनकी लुल्लू और चप्पू में  ,आता आनन्द निराला है
वो नाज़ ,अदायें नखरों से हर रोज लुभाती रहती है ,
    हो जाती  मेहरबान जिस दिन ,तो कर देती मतवाला है
जिस दिन ना देती है पप्पी ,वो ऑफिस जाने के पहले ,
   उस दिन जाने क्यों ऑफिस में ,दिन भर झुंझलाहट रहती है
इतना 'एडिक्ट'हो गया हूँ ,मैं इस 'लाइफ स्टाइल 'का ,
   ना चलता उन  बिन काम भले ,कितनी ही खटपट  रहती है

मदन मोहन  बाहेती 'घोटू'        
     

फिसलन

      फिसलन

फिसलता कोई कीचड़ में ,फिसलता कोई पत्थर पर
कोई चिकनाई में  फिसले ,कोई  बर्फीले  पर्वत  पर
कोई  फिसले है चढ़ने में,कोई फिसले उतरने  में
फिसलने कितनी ही आती ,सभी के आगे  बढ़ने में
जो पत्थर पर पड़ा पानी ,फिसलते लोग है अक्सर
बड़ा फिसलन भरा  होता ,है पानी में पड़ा पत्थर
फिसलना एक क्रिया जो,न की जाती पर हो जाती
उन्हें जब हम पकड़ते है,वो हाथों से फिसल  जाती
हसीं हो जिस्म और चेहरा ,फिसलती नज़रें है सबकी
बड़ी फिसलन भरी होती, है ये राहें महोब्बत  की
जुबां  गलती से जो फिसले ,बात में में फर्क हो जाता
हंसाई जग में होती है  और बेड़ा गर्क  हो   जाता
फंसा लालच के चक्कर में,फिसल इंसान जाता है
चंद  चांदी के सिक्कों पर ,फिसल  ईमान जाता है
फिसलती हाथ  से सत्ता और पत्ता कटता है जिनका
उन्हें रह रह सताता है ,जमाना बीते उन दिन का
जवानी जब फिसलती है ,बुढ़ापा  घेर लेता है
अर्श से फर्श पर आना ,जरा सी देर   लेता  है
बड़ी फिसलन है दुनिया में,संभल कर चाहिए चलना
 नहीं तो मुश्किलें  होगी ,पड़ेगा हाथ फिर  मलना

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  

बुधवार, 16 मार्च 2016

आओ बदल लें खुद को थोड़ा

बड़ी-बड़ी हम बातें करते,
पर कुछ करने से हैं डरते,
राह को थोड़ा कर दें चौड़ा,
आओ बदल लें खुद को थोड़ा ।

ख्वाब ये रखते देश बदल दें,
चाहत है परिवेश बदल दें,
पर औरों की बात से पहले,
क्यों न अपना भेष बदल दें ।

चोला झूठ का फेंक दे आओ,
सत्य की रोटी सेंक ले आओ,
दौड़ा दें हिम्मत का घोड़ा,
आओ बदल लें खुद को थोड़ा ।

एक बहाना है मजबूरी,
खुद से है बदलाव जरुरी,
औरों को समझा तब सकते,
खुद सब समझो बात को पूरी ।

भीड़ में खुद को जान सके हम,
स्वयं को ही पहचान सकें हम,
अहम को मारे एक हथौड़ा,
आओ बदल लें खुद को थोड़ा ।

दो चेहरे हैं आज सभी के,
बदल गए अंदाज सभी के,
अपनी दृष्टि सीध तो कर लें,
फिर खोलेंगे राज सभी के ।

पथ पर पग पल-पल ही धरे यूँ,
जब-जब जग की बात करे यूँ,
क्या कर जब तक दंभ न तोड़ा,
आओ बदल ले खुद को थोड़ा ।

-प्रदीप कुमार साहनी

मंगलवार, 15 मार्च 2016

दादा पोता संवाद

दादा पोता संवाद

दादा से पोते ने पूछा ,
जब आपका था जमाना
न बिजली थी ,न गैस ,
तो फिर कैसे पकता था खाना
दादा ने बतलाया
बेटे ,खाना उन दिनों ,
मिटटी के चूल्हे पर जाता था पकाया
आश्चर्य चकित होकर बोला पोता
ये मिट्टी का चूल्हा है क्या होता
दादा बोले ये चूल्हा ,
मिट्टी से बनी ,U शेप का ,
एक 'थ्री डाइमेंशनल ' बॉडी होती थी ,
जिसके U की इनर 'केविटी' में 'फ्यूल' ,
जो होती थी सूखी लकड़ी या
'काऊडंग' की 'केक '  जिन्हे उपले कहते थे ,
जलाये जाते थे और U के ' अपर सरफेस'पर
पतीली रख कर दाल उबालते थे
और तवा रख कर रोटी बनाई जाती थी ,
जो उपलों के अंगारों पर फुलाइ  जाती थी
पोता बोला 'काउ डंग 'पर रोटी बनाना
कितना 'अन हाइजीनिक 'होता होगा वो खाना
दादा बोले बेटे ,आग में वो ताक़त है
हर चीज को शुद्ध  कर देती है
एनर्जी भर देती है
और उस पर जो रोटी पकती है
तो सौंधी सौंधी खुशबू लिए ,
उसमे बड़ा स्वाद आता है
और साथ में सिलबट्टे पर पीसी चटनी हो
तो सोने में सुहागा है
पोते ने टोका
एक्सक्यूज मी दादा,
ये सिलबट्टा है क्या होता
दादा बोले ये सिलबट्टा ,
'स्टोन एज' का ,एक 'टू पीस'
'इक्विपमेंट 'है होता
जिसका लोअर पार्ट ,जिसे सिल कहते थे ,
होता है एक फ्लेट पत्थर
जिसके 'सरफेस' को ,
'रफ'किया गया होता है टाँच  कर 
और अपर 'पार्ट  भी होता था पत्थर का ,
उसका शेप ऐसा होता था कि,
 दोनों हाथों के पकड़ में आ जाता था
वो बट्टा कहलाता था
सिल और बट्टे के बीच में रख कर ,
धनिया,मिर्ची अदरक आदि मसालों को
क्रश किया जाता था
और बार बार 'फॉरवर्ड और बैकवर्ड ,
एक्शन ' करने पर ,
चटनी बन जाता था
पोते  ने हँस  कर कहा ,
 एक चटनी के लिए आप ,
इतना 'फॉरवर्ड एंड बैकवर्ड'मोशन करते थे 
क्या 'ओन लाइन 'नहीं खरीद सकते थे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

ये लललन टॉप होती है

     ये लललन टॉप होती है

नचाती मर्दों को रहती ,उँगलियों के इशारों पर ,
        इन्हे कमजोर मत समझो,ते सबकी बाप होती है
पति मुश्किल का मारा है ,बिना इनके अधूरा है ,
       बटर सी प्यारी लगती है ,ये 'बेटर हाफ ' होती  है
नहीं चुप बैठ सकती है ,बोलना इनकी फितरत है ,
        जलजला आने को होता ,जो ये चुपचाप  होती है
कोई कितना भी फन्ने खां,समझता खुद को हो लेकिन,
        झुका है इनके कदमों में ,ये लललन टॉप  होती है

घोटू 

बीबी की अहमियत

      बीबी की अहमियत

एक फिलम,
'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे 'थी आई
जो लोगों के मन इतनी भायी
कि एक सिनेमा हाल में ,
कितने ही वर्षों चल गई
उन्ही सितारों की ,
एक दूसरी फिल्म,'दिलवाले'भी बनी,
पर पता ही न चला ,
कब आई,और कब गई
इस उदाहरण का इतना सा सार है
बिना दुल्हनिया के ,दिलवाले बेकार है
हमे ये हक़ीक़त समझने की जरूरत है
जिंदगी में लम्बा चलने के लिए ,
दुल्हनिया की कितनी अहमियत है

घोटू

सबसे अच्छी हीरोइन

सबसे अच्छी हीरोइन

एक दिन ,पत्नीजी ने ,अपने ही अंदाज से ,
मेरी क्लास ले ली और बोली,
एक बात बताना सच्ची सच्ची
तुमको ,फिल्म की कौनसी हीरोइन
लगती है अच्छी
मुझे लगा कि ये गंगा उल्टी क्यों बह रही है
कहीं ये मेरे पत्नीव्रत धर्म का,
 इम्तहान  तो नहीं ले रही है
अब मैं क्या बताता
किस के गुण गाता
मेरी सांप छूछन्दर वाली गति थी ,
न निगलते बनता था न उगलते
फिर भी मैंने जबाब दिया ,
थोड़ा संभलते संभलते
मैंने कहा जानेमन
मेरी जिंदगी की फिलम
की सबसे खूबसूरत हीरोइन हो तुम
जब से मैंने तुमसे रिश्ता जोड़ लिया है
इन फिलम वाली हीरोइनों का,
 ख्याल ही छोड़ दिया है
वो बोली बनो मत ,मुझे सब पता है
हीरोइनों को देख कर ,
तुम्हारे मन में क्या क्या पकता है
मैंने तो यूं ही पूछ लिया था,लगाने को पता
कि मेरी और तुम्हारी चॉइस में ,
कितनी है समानता
मैंने भी अपना दिल खोल दिया
और हिम्मत करके बोल दिया
एक दीपिका पदुकोने है ,कनक की छड़ी है
उसकी आँखे बड़ी बड़ी है
लम्बी , दुबली पतली और छरहरी है
पर उसका रूप हमको भाया नहीं है
क्योंकि उसका बदन ,तुमसा गदराया नहीं है
एक अनुष्का शर्मा है ,जिसकी तरफ ,
गलती से भी नहीं झाँका है
क्योंकि विराट कोहली से उसका टांका है
हाल ही आई ,आलिया भट्ट  अच्छी है
पर अभी छोटी नादान  बच्ची है
कटरीना,जबसे रणवीर कपूर के कटी है ,
रहती  परेशान है
उसे फिर से याद  या सलमान हैं
और प्रियंका,
जिसने बजा दिया अपना विदेशों में भी डंका
कभी 'मेरीकॉम 'बन बॉक्सिंग करती है
कभी पोलिस इन्स्पेटर बन अकड़ती है
उसे तो चाहते हुए भी लगता डर है
ये आजकल की हीरोइनें ,
हमारी पसंद के बाहर है
हमारे जमाने की हीरोइनें ,
बैजन्तीमाला की तरह इठलाती थी
मालासिंहा की तरह ,धूल के फूल खिलाती थी
मीनाकुमारी की तरह ,दारू पीकर ,पति को लुभाती थी
मंदाकिनी की तरह झरने में नहाती थी
श्रीदेवी या हेमा मालिनी होती थी
स्वच्छंद विहारिणी होती थी
रूप में परी होती थी
यौवन से भरी होती थी
आज की हीरोइनें उनके आगे
पानी तक भी नहीं मांगे
अब तो वो भूले बिसरे गीत बन गई है
जो जब भी याद आतें है
हम गुनगुनाते है
अब तुम पूछ रही तो बताना मेरा फर्ज है
और सच कहने में क्या हर्ज है
मेरी नज़र में सर्वश्रेष्ठ हीरोइन ,/
मेरी सास की बेटी है
जो मेरे सामने ही बैठी है
जो कभी जूही चावला सी लगती है ,
कभी राखी है ,कभी रेखा है
मैंने जब भी उसे देखा है,
नए अंदाज में देखा है
मेरी बेगम ,एक लाजबाब हस्ती है
फूल खिलाती है,जब हंसती है
जिसके आगे छोटे नबाब सैफ अली खान की,
ज़ीरो फिगर वाली,बेगम,करीना भी पानी भरती है
आजकल तो रोज रोज ही,
नयी नयी हीरोइनों का दौर है
पर तुममेरी सदाबहार हीरोइन हो,
तुम्हारी बात ही और है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शनिवार, 12 मार्च 2016

हम अंग्रेजी छोड़ न पाये

          हम अंग्रेजी छोड़ न पाये

अंग्रेजों ने भारत छोड़ा,हम अंग्रेजी छोड़ न पाये
रहे गुलामी में ही बंध कर,वो जंजीरें तोड़ न पाये
केवल नहीं बोलते,पढ़ते,अंग्रेजी है ,पीते ,खाते
बच्चे जाते ,इंग्लिश स्कूल ,अपनी भाषा बोल न पाते
नहीं जलेबी,पोहा,इडली,उन्हें चाहिए पीज़ा,बरगर
करे नाश्ता,खाएं पास्ता। ऐसा भूत चढ़ा है सर पर
कहते है माता को मम्मी,'डेड'पिताजी को कहते है
बिन शादी के,लड़की लड़के ,पति पत्नी जैसे रहते है
धर्म कर्म और संस्कार को,इनने बिलकुल भुला दिया है
मातपिता को वृद्धाश्रम में ,भेज दिया और रुला दिया है
इंग्लिश में तारीफ़ करते है ,इंग्लिश में देते है गाली
इनके लिए ,महज छुट्टी ही ,होती होली और दिवाली
यूं त्योंहार मनाया जाता ,होटल जाते ,खाना खाने
जबसे 'योग 'बना है 'योगा',इसे लगे है ये अपनाने
भूल गए 'बसंत पंचमी' 'वेलेंटाइन'दिवस मनाते
दे कर कार्ड ,मदर फादर डे ,को है अपना फर्ज निभाते
राग रागिनी ,ना मन भाती, पाश्चात्य संगीत  लुभाता 
इंग्लिशदां लोगों से मिलना जुलना और रखते है नाता
भारतीय संस्कृति भुला कर ,पाश्चात्य में ऐसे भटके
न तो इधर के,नहीं उधर के ,बने त्रिशंकु से हम लटके
वेद,उपनिषद,गीता,गंगा, से हमख़ुद को जोड़ न पाये
अंग्रेजों ने भारत छोड़ा ,हम अंग्रेजी ,छोड़  न पाये

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

मारे गए गुलफाम

       मारे गए गुलफाम

मुझको उनने घास तक डाली नहीं ,
         खेत कोई और ही आ चर  गया
चवन्नी को मुझको तरसाते रहे ,
         और तिजोरी ,दूसरा ले भर गया
मुझको मीठी मीठी बातों से लुभा ,
मिठाई के लिए ,ललचाते  रहे ,
मिठाई का डिब्बा मेरे सामने ,
        दूसरा ही कोई आ ,चट  कर गया
या तो तुम चालू थी या वो तेज था ,
या मैं ही बुद्धू था,गफलत में रहा ,
नग जो जड़ना था अंगूठी में मेरी ,
           दूसरे की अंगूठी में जड़ गया
शराफत में अपनी फजीयत कराली,
मुफ्त में मारे  गए ,गुलफाम हम,
प्रेमपाती हमने थी तुमको  लिखी,
         दूसरा ही कोई आकर पढ़ गया
क्या बताएं आशिकी में आपकी,
किस कदर का ,जुलम है हम पर हुआ ,
हमको ऊँगली तलक भी छूने न दी,
         दूसरा ,पंहुची पकड़ कर,बढ़ गया
हमने सोचा था,हंसी तो फस गई ,
उल्टा मुश्किल में फंसा हम को दिया ,
चौबे जी ,दुबे जी  बन कर रह गए ,
         छब्बे जी बनने का चक्कर मर गया

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  

बेटियां

                        बेटियां

बेटी को तो 'बेटा' कह कर ,अक्सर लोग बुलाते है
पर भूले से, भी बेटे को  ,'बेटी'  कह  ना   पाते  है
बेटी होती भले परायी , अपनापन  ना  जाता  है 
बेटा ,अपना होकर ,अक्सर, बेगाना  हो जाता है
बेटी ,शादी होने पर भी ,गुण  पीहर के  गाती  है
बेटे के सुर बदला करते ,जब  शादी हो जाती है
बेटे ,उदगम भूल ,नदी का ,चौड़ा पाट  देखते  है
अपना पुश्तैनी सब ,वैभव  ,ठाठ और बाट देखते है 
आज ,बदौलत जिनकी उनने ,ये धन दौलत पायी है
तिरस्कार ,उनका करते है, जिनकी सभी कमाई है
हक़ रखते ,उनकी दौलत पर,उन्हें  समझते नाहक़ है
लायक उन्हें बनाया जिनने ,वो लगते नालायक  है
वृद्ध हुए माँ बाप , दुखी हो,घुटते  रहते  है मन में
बेटे ,उनको बोझ समझ कर ,छोड़ आते ,वृद्धाश्रम में
या फिर उनको  छोड़ अकेला,खुद विदेश बस जाते है
केवल उनका ,अस्थिविसर्जन ,करने भर को आते है
माता पिता , वृद्ध जब होते,रखती ख्याल बेटियां है
उनके ,सब सुख दुःख में करती ,साझसँभाल  बेटियां है
क्योंकि बेटियां ,नारी होती, उनमे ममता  होती है
दो परिवार ,निभाया करती,उनमे क्षमता  होती है
बेटी तो  अनमोल निधि है,और प्यार का सागर  है
खुशनसीब वो होते जिनको,  बेटी देता  ईश्वर  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रविवार, 6 मार्च 2016

गंगा तट -अक्षयवट

              गंगा तट -अक्षयवट

कल कल बहती प्रीतधार है,लम्बा चौड़ा  वृहद  पाट है
कहीं वृक्ष है,कहीं खेत है ,  और कहीं पर बने घाट है
जो भी मेरे पास बस गए,सच्चे मन से सबको सींचा
मैंने उनकी प्यास बुझाई ,उनका फूला फला  बगीचा
 टेडी मेडी बहती सरिता ,किन्तु शांत मैं ,ना नटखट हूँ
                                            मैं तो गंगाजी का तट हूँ
हरा भरा हूँ ,लम्बा चौड़ा ,मैं विस्तृत हूँ  और  घना हूँ
शीतल ,मंद ,हवाएँ देता ,सुख देने  के  लिए बना हूँ
पंछी रहते ,बना घोसला,और पथिक को मिलती छाया
जो भी आया,थकन मिटाई, सबने यहां  आसरा पाया
जिसकी जड़ें ,तना बन जाती ,अपने में ही रहा सिमट हूँ
                                            मैं वो पावन अक्षयवट हूँ
कुछ ने अपनी जीवन नैया ,रखी बाँध कर मेरे तट पर
उनका जीवन सफल हो गया,डुबकी लगा,पुण्य अर्जित कर
हतभागी वो जिनके मन में ,श्रद्धा भाव नहीं था  किंचित
मुझे छोड़ कर ,चले गए वो, रहे   छाँव  से मेरी  वंचित
उनको प्यार नहीं दे पाया , इसी पीर से  मै  आहत  हूँ
                                              मैं तो गंगाजी का तट हूँ ,
                                              मै वो पावन अक्षयवट हूँ
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'                                          
 

सच्चा समर्पण

            सच्चा समर्पण        

मैं तो एक कंटीली झाडी का गुलाब हूँ
सुंदर हूँ,मैं महक रहा हूँ, लाजबाब  हूँ
मैंने खुद को सच्चे मन से किया समर्पित
जीवन भर के लिए हो रहा तुम पर अर्पित
चाहे अपनी जुल्फों में तुम इसे सजाओ
या फिर मिश्री डाल ,इसे गुलकंद  बनाओ

मैं तो आम्र तरु की हूँ एक कच्ची  अमिया
खट्टी,मीठी और चटपटी ,लगती बढ़िया
मुझे काम में लो,जैसे भी   लगता  अच्छा
चटखारे ले ,चाहे इसे  ,खाओ तुम कच्चा
चाहे पका ,आम रस पियो ,और मज़ा लो
या फिर काट पीट ,इसका ,आचार बनालो

तुम्हे समर्पित हूँ मैं   पिसा हुआ सा बेसन
अपने अंग लगालो  इसे बना कर उबटन
या फिर घोलो और  मसाले  सारे  डालो
गर्म तेल में तलो, पकोड़े आप बना  लो
जैसे भी सुख मिले ,काम मे इसको लाओ
सेवा करू तुम्हारी ,तुम मुझको  अपनाओ

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

कनक छड़ी से खिचड़ी तक

      कनक छड़ी से खिचड़ी तक

जब हम घोड़ी पर चढ़ते है,उसे 'घुड़ चढ़ी 'हम कहते है
मिलती सुंदर ,प्यारी पत्नी ,उसको 'कनकछड़ी 'कहते है
जब वो बढ़ मोटी  हो जाती,तो बन जाती 'मांस चढ़ी 'है
बात बात में नाक सिकोड़े ,तो सब कहते 'नाक चढ़ी' है
जब ज्यादा सर पर चढ़ जाती,बहुत 'सरचढ़ी'कहलाती है
खुश ना रहती,चिड़चिड़ करती,बहुत 'चिड़चिड़ी'बन जाती है
कैसी भी हो ,पर मनभाती ,'सोनचिड़ी'सी वो लगती है
खिला पुलाव जवानी में थी ,आज 'खिचड़ी 'वो लगती है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

मैं नीबू हूँ

                  मैं नीबू हूँ

सुन्दर रूप,सुनहरी काया ,दिलकश प्यारी सी खुशबू हूँ
                                                       मैं नीबू हूँ
पीला रंग,रसीला तनमन ,कुछ खट्टा,लेकिन मन भाता
कितने ही भोजन पदार्थ का,और चाट का स्वाद  बढ़ाता
छोले और भठूरे प्यारे ,या फिर चाट  फलों वाली में
खट्टे चावल हो या पोहे ,मुझे पाओगे  हर थाली में
दाल,सलाद और चटनी में ,मेरे बिना काम ना चलता
मेरे रस  से  बनी शिकंजी, देती  गर्मी  में  शीतलता
मुझे काट कर ,मिर्च मसाला मिला रखो,बनता अचार हूँ
चीनी संग मिल ,खटटी मीठी,चटनी बन कर मैं तैयार हूँ
लोग निचोड़ा करते मुझको ,अपना स्वाद बढ़ाया  करते
मेरी जीर्ण शीर्ण काया से ,घिस बरतन चमकाया  करते
अदना पर कमजोर नहीं हूँ ,भरा विटामिन सी है तन में
ढेरों दूध ,फाड़ सकती है , मेरी कुछ बूँदें,  कुछ  क्षण  में
कभी बिमारी में, मैं भेषज,और कभी सौंदर्य  प्रसाधन
तांत्रिक ,मंत्र तंत्र सिद्धि का ,मुझे बनाया करते   साधन
टोने और टोटके करता ,बुरी नज़र से  ,सदा  बचाता
इसीलिए मैं ,दुकानो में , मिरची संग, लटकाया जाता
हो कुरबान ,सभी को सुख दो,परोपकार है मैंने सीखा
अंग्रेजी में ,मैं 'लेमन' हूँ,  जिसने ले मन लिया सभीका
यूं तो मेरे गुण गाते ही रहते  , लोग , स्वाद  के  मारे
पर अपने सुख सुविधा हित जब वो खरीदते मंहगी कारें  
पूजा कर ,टायर के नीचे , सदा दबाया जाता  क्यूँ  हूँ
                                                      मैं नीबू हूँ

रविवार, 28 फ़रवरी 2016

चखने का तो हमको हक़ है

        चखने का तो हमको हक़ है

हाय बुढ़ापे ,तूने आकर ,ऐसा हाल बिगाड़ दिया है
हरी भरी थी जीवन बगिया ,तूने उसे उजाड़ दिया है
उजले केश,झुर्रियां तन पर ,अब अपनी पहचान यही है
इस हालत में ,प्यार किसी का ,मिल पाना आसान नहीं है
ढंग से खड़े नहीं रह पाते ,और जल्दी ही थक  जाते    है
हुस्न और दुनिया की रंगत ,मुश्किल से ही तक पाते है
क्योंकि आँख में चढ़ा धुंधलका ,आई नज़र में है कमजोरी
गए जवानी के प्यारे दिन ,अब तो याद बची है  कोरी
कामनियां मन को ललचाती ,मगर डालती घास नहीं है
दूर दूर छिटकी रहती है,कोई फटकती  पास  नहीं है
कभी चमकती थी जो काया ,आज पुरानी सी दिखती है
इसीलिये कोई की नज़रें ,खंडहरों पर  ना टिकती  है
चबा नहीं पाते है ढंग से ,दांतों में दम  नहीं  बचा है
बहुत चाहते ,लूट न पाते ,हम खाने का आज मज़ा है
खा भी लिया ,अगर गलती से ,मुश्किल होता उसे पचाना        
उमर बढ़ी ,कमजोर हुआ तन ,उसमे कोई जोर बचा ना
पर अरमान भरा है ये दिल,अब भी धड़क रहा धक धक है
यूं ही कब तक ,रहें तरसते ,चखने का तो ,हमको हक़ है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

 

शैतानियाँ

           शैतानियाँ

कुछ बच्चे शैतानी करते है तो भी प्यारे लगते है
कुछ लड़के,शैतानी कर,लड़की को पटाया करते है
कुछ साधू है शैतान बने , आती है खबरें ,यदा कदा
मुंह से कहते राम राम और छुरी बगल में रखें सदा
कुछ डॉक्टर भी शैतान बने ,है सेवा जिनका परम धर्म
कन्या की भ्रूण हत्या करवा ,वो करते रहते पाप कर्म
भोले मासूम मरीजों की ,वो किडनी चोरी करते है
अपनी  शैतानी हरकत से ,अपनी वो तिजोरी भरते है
शैतान बने है कुछ अफसर ,ढाते है जुलम ,मातहत पर
बच्चों का शोषण करते है ,शैतान बने है कुछ टीचर
कुछ शैतानी ,लगती प्यारी ,जो पत्नी हम संग करती है
सजधज कर करती छेड़छाड़ ,सब जिद मनवाया करती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सब चलता है

                 सब चलता है

आँखे चलती,पलकें चलती ,इधर उधर नज़रें चलती है
मुंह चलता ,हम दांत चलाते ,कैंची सी जिव्हा चलती है
चलते हाथ,उँगलियाँ चलती,पैरों से मानव चलता  है
जब तक चलती सांस हमारी ,तब तक ही जीवन चलता है
सूरज चलता रहता दिन भर ,और रात चंदा चलता  है ,
मुश्किल से ही घर चल पाता ,अगर नहीं धंधा चलता है
जल भर कर बादल चलते है,शीतल मंद हवा  चलती है
चंचल सागर लहरें चलती,इठला कर नदिया  चलती है
सरे राह चलते चलते भी ,कोई हमसफ़र मिल जाता है
चक्र समय का जब चलता है,कोई नहीं रोक पाता   है
कुत्ते भोंका ही करते जब मस्ती से हाथी चलता  है
टेढ़ी मेढ़ी चाल ग्रह चलें ,नियती  का  चक्कर चलता है
चालबाज जो चालू होता ,चलता पुर्जा कहलाता  है
जिसका चालचलन अच्छा है,वो सबसे इज्जत पाता है
चलती को गाडी कहते है,जूते,लाठी ,गोली चलती
लेकिन एक शाश्वत सच है,हर घर में  बीबी की चलती
कई बार ,किस्मत अच्छी हो,खोटा सिक्का चल जाता है
भैया हमको सब चलता है,जो फ़ोकट में मिल जाता  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शनिवार, 27 फ़रवरी 2016

हुस्नवालों से

         हुस्नवालों से 
                 १
तुम्हारे हुस्न का चर्चा ,यहां हर बार होता है
वो दिन अच्छा गुजरता जब ,तेरा दीदार होता है
न जिस दिन तुम नज़र आते ,बड़ा बेचैन रहता हूँ,
मुस्करा देते हो जिस दिन,मेरा त्योंहार  होता है 
                   २  
अदाएं ,नाज़ और नखरे ,दिखा हमको सताते हो
संवरते और सजते हो ,हमारा दिल  लुभाते हो
देख कर हुस्न का जलवा ,छेड़ते तार हो मन के ,
जरा सा छेड़ हम देते ,तो तुम तोहमत  लगाते  हो

 घोटू 
                                               
 

तू देख किसी का अच्छा कर

             तू देख किसी का अच्छा कर

मत सोच बुरा तू औरों का ,तेरा न भला वरना होगा
तुझको मुआवजा अपनी सब ,करतूतों का भरना होगा
औरों हित ,तूने निज मन में ,नफरत के बीज ,रखे बो है
रहता है दुखी ,यूं ही हरदम ,यह देख देख वो खुश क्यों है
है तेरे  घर में राज तेरा , अपने  घर  में वो राज करें
तेरे जलने और कुढ़ने का ,कैसे क्या कोई इलाज करे
जो हंसी ख़ुशी सबसे मिलता ,आते दुःख कभी करीब नहीं
तू कुढ़ कुढ़ कर बीमार पड़ा , दो रोटी,चैन  ,नसीब नहीं
तू झाँक जरा अपने मन में ,निज कर्मो का विश्लेषण कर
तू देख किसी का अच्छा कर ,तुझमे खुशियाँ जायेगी भर

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मैं तो हूँ अलबेला साबुन

           मैं तो हूँ अलबेला साबुन



मैं तो हूँ अलबेला साबुन
है यही दास्ताँ छोटी सी,
क्षणभंगुर है मेरा जीवन
मेरे तन  में भी सौष्ठव था ,मेरा भी अपना वैभव था
चिकने चमकीले रेपर में ,मैं बंद  कली जैसा नव था
उनने मुझको ले हाथों में ,जब निज कंचन तन सहलाया
इस तरह प्रेम रस डूबा मैं ,मुश्किल से बड़ी ,संभल पाया
मैं ,शरमा शरमा ,सकुचा कर ,हो गया बिचारा झाग झाग
उनके तन आयी  शीतलता ,पर मेरे तनमन  लगी आग
मिलता था प्यार चंद पल का,पर लगती थी वो प्राणप्रिया
बस  उन्हें ताजगी देने को ,मैंने  खुद को  कुरबान  किया
उनके हाथों से फिसल फिसल ,लूटे है मैंने  बहुत  मज़े
हो गई क्षीण अब,जब काया ,अवशेष  मात्र ही सिर्फ बचे
तन मन से की उनकी सेवा ,रह गया आज एक चीपट बन
अब हुआ तिरस्कृत ,पिघल पिघल ,कट जाएगा यूं ही जीवन
परिणिती प्यार की यही मिली ,या वो था  मेरा  पागलपन
मैं तो हूँ अलबेला साबुन

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

दावतनामा

           दावतनामा

तुम भी चाहो ,मैं ना आऊँ ,
     यूं भी मुश्किल मेरा आना
फिर भी दस्तूर निभाने को,
       तुमने भेजा दावतनामा
कह सकते अब तुम दुनिया से ,
कि तुमने तो भेजा था न्योता
पर दगाबाज मैं  ही निकला,
मैंने  ही मार  दिया  गोता
यूं बीच  राह में खतम हुआ,
          मेरा तुम्हारा,  अफ़साना 
फिर भी दस्तूर  निभाने को,
           तुमने भेजा  दावतनामा
यदि गलती से मैं आ जाता ,
तुमसे मिलती नज़रें मेरी
कर याद पुरानी बातों को,
यदि पनियाती ,आँखें तेरी
मैं आंसूं पोंछ नहीं पाता ,
         और दिल को पड़ता तड़फ़ाना
फिर भी दस्तूर निभाने को,
          तुमने भेजा  दावतनामा
नादान उमर में देख लिए ,
हमने जाने क्या क्या सपने
मासूम हृदय क्या जाने था ,
हम एक दूजे हित ,नहीं बने
 तुम्हारा है  अभिजात्य वर्ग , 
            मैं अदना ,पगला,दीवाना
  फिर भी दस्तूर निभाने को  ,
             तुमने भेजा दावतनामा
हो रही पराई हो अब तुम, 
यूं भी मेरी अपनी ,कब थी
संग जीने मरने की कसमे ,
बचपन वाली हरकत ,सब थी
दुनियादारी की रस्मो से ,
         तुम भी,मैं भी था अनजाना
फिर भी दस्तूर निभाने को ,
             तुमने भेजा दावतनामा
 
मदन मोहन बाहेती'घोटू'                      
 
              

मैं पंडित हूँ

                मैं पंडित हूँ    

युगों युगों से ,धर्म पुरुष मैं ,ब्रह्मपुरुष ,महिमा मंडित हूँ 
                                                      मैं पंडित हूँ
भले जन्म ,यज्ञोपवीत हो ,या विवाह बंधन की रस्मे ,
संस्कार कोई जीवन का, मुझ बिन पूरा हो ना   पाता
मुझे देवता तुल्य समझ कर ,सब सन्मान दिया करते है ,
ब्राह्मणदेव कहाता  हूँ मैं  ,और घर घर में पूजा जाता
वर्णव्यवस्था में भारत की,श्रेष्ठ,पुराणो में वर्णित  हूँ 
                                                  मैं पंडित हूँ
मिला हुआ है मुझको ठेका ,स्वर्गलोक  के  पारपत्र  का,
मुझ को दो तुम दान दक्षिणा ,टिकिट स्वर्ग का कट जाएगा
सारे मंदिर और तीरथ  पर, एक छत्र साम्राज्य  हमारा ,
मुझ से हवन ,यज्ञ करवा लो,सब दुःख संकट  हट जाएगा
भजन कीर्तन,कथा भागवत, मैं  करवाता  आयोजित हूँ 
                                                        मैं पंडित हूँ
स्थिर है जो दूर करोड़ो मील, शनि,मंगल या राहु,
देख रहे हो ,वक्र दृष्टी से,और तुम पर पड़ते हो भारी
जाप करा ,पूजन करवा लो ,शांत सभी को मैं कर दूंगा,
कुछ न बिगाड़ सकेगा कोई,सीधी उन तक पहुँच हमारी
मंत्र शक्ति से और हवन कर ,मैं सबको कर देता चित हूँ 
                                                     मैं पंडित हूँ 
मेरा 'कम्युनिकेशन 'है सीधा,स्वर्गलोक की उस दुनिया से ,
इतनी तेज 'कुरियर सर्विस'नहीं कभी भी आप पायेंगे
इधर मुझे भर पेट खिलाओ ,अच्छे अच्छे भोजन,व्यंजन ,
तृप्त तुम्हारे सारे पुरखे ,उधर स्वर्ग  में  हो  जायेंगे 
श्राद्ध पक्ष में ,ये स्पेशियल ,सेवा ,मैं  करता  अर्पित हूँ 
                                                       मैं पंडित हूँ
 मदन मोहन बाहेती'घोटू'                                                       

रविवार, 21 फ़रवरी 2016

वकीलों का काला कोट

            वकीलों का काला कोट

मैंने पूछा वकीलों से ,पहने काला कोट  क्यों ,
         मुवक्किल की काली करतूतें छिपाने वास्ते
उल्टा सीधा पेंच कानूनी ,लगाकर हमेशा ,
          निकाला करते हो उसको  बचाने के रास्ते
तुमसे अच्छे डॉक्टर है ,श्वेत जिनके कोट है,
          मरीजों की करते सेवा,ठीक करते  रोग है
ऑपरेशन ,काटापीटी ,तन  की करते है मगर ,
          मर्ज को वो हटाते है ,कितने अच्छे लोग है
रंग काला कोट का यदि जो बदल लो तुम अगर ,
         मन में सेवा भाव से तुम करो रक्षा सत्य की
पुण्य का यह काम है ,तुम जरा करके देख लो ,
        सब करेंगे तारीफें ,उस परोपकारी कृत्य  की    
बात मेरी सुनी उनने ,हंस के ये उत्तर दिया ,
         सत्य कहते आप है ,हम चुस्त और चालाक है
भले ही हम पहनते है ,काला काला  कोट पर,
            शर्ट है उजली हमारी ,श्वेत है हम  पाक   है
हुस्न को बुरके में काले ,छुपा कर रखते हसीन ,
          वैसे ही व्यक्तित्व को हमने छुपा कर है रखा
 बुरी नज़रों से बचाता , काला टीका जिस तरह ,
           हमने अपनी सादगी को ,काले कपड़ों से ढका

मदन मोहन बाहेती'घोटू'         

अनुभूती

    अनुभूती
 
सरदी  में सरदी  लगती ,गरमी  में गरमी
       अनुभूति हर मौसम की ,तन पर होती है 
कभी हंसाती,कभी रुलाती,कभी नचाती ,
       खुशियां ,गम की अनुभूति ,मन पर होती है   
कभी टूटता ,आहें भरता और तड़फता,
         कभी दुखी जब होता है तो दिल रोता  है
ये दिल अनुभूती का इतना मारा है ,
         पुलकित होता ,खुश होकर पागल  होता है
किन्तु एक वह परमशक्ति जो विद्यमान है ,
       जग के हर प्राणी का जीवन  चला  रही है
अनुभूति जो उसकी सच्चे मन से करलो,
        पाओगे हर जगह ,बताओ कहाँ  नहीं  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

नेताजी की काला सफेद

          नेताजी की काला सफेद             

तुम्हारा क्या गुणगान करें,हर बात निराली ,तुम्हारी
तुम्हारा खून सफ़ेद हुआ और नीयत  है काली,काली
तुम्हारी है काली जुबान ,तुम झूंठ सफ़ेद बोलते  हो
तुम काले कागा,पोत सफेदी ,बन कर हंस डोलते हो
तुम भगत श्वेत हो बगुले से ,मछली पर रहती नज़र टिकी
है नहीं दाल में काला कुछ, काली सारी  ही दाल दिखी
दिखते हो उजले ,पाक ,साफ़,काले भुजंग सी नीयत है
है काले सभी   कारनामे ,कहने की नहीं जरूरत   है
मुंह काला कितनी बार हुआ ,आयी ना तुमको लाज कभी
तुम हो सफेद हाथी जैसे  ,चर रहे  देश की  घास  सभी
है काली भैंस बराबर ही लगता तुमको काला  अक्षर
काले पीले कागज करके ,तुम रहे तिजोरी अपनी भर
सुन बात हमारी चुभती सी ,नेताजी ने ये हमे कहा
शाश्वत सच,काले और सफ़ेद ,का युगोंयुगों से साथ रहा
सूरज की उजली  श्वेत धूप  ,साथी  छाया ,होती काली
है काले बाल ,श्वेत तन पर, आँखों की है पुतली  काली
जल सूखे काले सागर का ,तो बन जाता है श्वेत लवण
काले बादल ,गिरि पर बरसे ,हिम कण सफ़ेद ,बन जाते जम
थे कृष्ण कन्हैया भी काले ,गोरी उनकी राधा ,रुक्मण
माँ  काली ने अवतार लिया था दुष्टों का संहारक  बन
फिर भी समाज सेवक सच्चे ,हम खुद काले से डरते है
हम इसीलिये तो काला धन ,स्विस की बैंकों में धरते है
यह देशभक्ति का सूचक है ,कोई अपराध  जघन्य नहीं
मैं  बोला नेता धन्य धन्य ,तुम जैसा कोई   अन्य नहीं

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

अगर जो तुम नहीं मिलते

           अगर जो तुम नहीं मिलते

अगर जो तुम नहीं मिलते,तो फिर कुछ भी नहीं होता
तुम्हारे बिन ,  मेरा  जीवन , यूं  ही  ठहरा ,वहीँ  होता
न होती प्रीत राधा की ,तो  वृन्दावन  नहीं होते
न रचता रास ,जमुना तट ,मधुर वो क्षण नहीं होते
तुम्हारे प्यार की गंगा ,न मिलती मेरी यमुना  से,
हमारी  प्रीत  के  पावन ,मधुर  संगम  नहीं   होते
न जाने  तू  कहाँ  होती  ,न  जाने   मैं  कहीं  होता
अगर जो तुम नहीं मिलते तो फिर कुछ भी नहीं होता
मनाने ,रूठने वाले ,वो  पागलपन  नहीं  होते
उँगलियाँ चाटने वाले ,मधुर व्यंजन नहीं होते
ये मेरा जागना ,सोना ,रोज की मेरी दिनचर्या  ,
यूं ही बिखरी हुई रहती ,अगर बंधन नहीं होते
हमारे साथ ये होता ,तो बिलकुल ना सही  होता
अगर जो तुम नहीं मिलते तो फिर कुछ भी नहीं होता

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
  

लड्डू और जलेबी

         लड्डू और जलेबी

एक जमाना था हम भी थे दुबले पतले ,
       लगते थे मोहक,आकर्षक ,सुन्दर ,प्यारे
जिसे देख ,तुम रीझी और प्रेमरस भीझी ,
       मिलन हुआ ,हम जीवनसाथी बने तुम्हारे
और आजकल तुमको रहती यही शिकायत,
       फूल गए हम , फ़ैल गया है बदन  हमारा
दौलत ये सब ,सिर्फ बदौलत है तुम्हारी,
         चर्बी नहीं,भरा है तन में  प्यार  तुम्हारा
चखा चाशनी, अपनी रसवन्ती बातों की ,
      स्वर्णिम आभा लिए जलेबी  तुम ना होते
नहीं प्यार का रोज रोज आहार खिलाते ,
       तो फिर गोलमोल  लड्डू से  हम ना  होते

घोटू
            

शहादत

                  शहादत
अपनी रंगत ,अपनी सेहत ,अपनी खुशबू छोड़ कर ,
          भीगता है रोज ,घिसता , साफ़ करता गंदगी
खुद फना हो जाता ,जिससे साफ़ इन्सां  हो सके ,
             ऐसे साबुन की शहादत  को है मेरी बंदगी  

घोटू

गुरुवार, 18 फ़रवरी 2016

संगठन की शक्ति

           संगठन की शक्ति

कई सींकें बंध गई तो एक झाड़ू बन गई ,
       जसने कचरा बुहारा और साफ़ की सब गंदगी
और जब बिखरी वो सींकें,ऐसी हालत हो गयी,
       बन के कचरा ,झेलनी उनको पडी शर्मिंदगी
ठेले में अंगूर के गुच्छे सजे थे ,बिक रहे ,
        सौ रुपय्ये के किलो थे  ,देखा एक दिन हाट में
वही ठेला बेचता था ,टूटे कुछ अंगूर भी ,
        एक किलो वो बिक रहे थे,सिर्फ रूपये  साठ  में
मैंने ठेलेवाले से पूछा  ये भी क्या बात है
        एक से अंगूर दाने ,दाम में  क्यों फर्क है
ठेलेवाले ने कहा ,मंहगे जो  गुच्छे में बंधे ,
       टूट कर जो बिखरते है , उनका बेडा गर्क  है
कई धागे सूत के मिलकर एक रस्सी बन गई ,
      वजन भारी उठा सकती थी,बड़ी मजबूत थी
वरना कोई भी पकड़ कर तोड़ सकता था उसे ,
    जब तलक वो थी अकेली , एक धागा सूत थी
इसलिए क्या संगठन में शक्ति है ये देखलो ,
    साथ में सब रहो बंध कर,और मिलजुल कर रहो
अकेला कोई चना ,ना फोड़ सकता भाड़ है,
    एक थे हम ,और रहेंगे एक ही,ऐसा  कहो    

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मिली हो जबसे तुम हमसे

       मिली हो जबसे तुम हमसे

मिली हो जबसे,तुम हमसे ,हुए है बावरे से हम
न सर्दी है ,न गर्मी है,बसंती   लगता हर मौसम
झिड़कती प्यार से जब तुम,बरसने फूल लगते है
कभी जब मुस्करा देती ,हमे कर देती हो बेदम
तुम्हारे खर्राटे  तक भी ,मधुर लोरी से लगते है ,
तुम्हारी रोज की झक झक ,लगा करती हमे सरगम
तुम्हारे हाथों को छूकर ,कोई भी चीज जो बनती,
बड़ी ही स्वाद लगती है ,न होती पकवानो से कम
बनाती हो जो तुम फुलके ,वो लगते मालपुवे से,
तुम्हारी सब्जियां खाकर ,उँगलियाँ चाटते है हम
 इसी डर से,कहीं तुम पर ,नज़र कोई न लग पाये  ,
लटकते नीबू  मिरची से ,तेरे दर पे है हाज़िर हम
तुम्हे खुश रखने में जानम ,निकल जाता हमारा दम
खुदा का शुक्रिया फिर भी,मिली तुम जैसी है हमदम

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बदलता बचपन और आज

           बदलता बचपन और आज

रह रह मुझे याद आता है,अपना सुन्दर,प्यारा  बचपन
चहल  पहल रहती थी घर में,पांच सात थे भी बहन हम
एक दूसरे  का ,आपस में  ,हरदम ध्यान रखा जाता था
धीरे धीरे ,स्वावलम्बी , बनना सबको  आ  जाता  था
देख देख कर ,एक दूजे को ,खुद ही बहुत सीख जाते थे  
लाइन लगा ,बैठ चौके में  ,गरम गरम खाना खाते थे
बड़े भाई के ,छोटे कपड़े ,माँ छोटों को पहनाती थी 
और बड़ों की सभी किताबें ,छोटों के भी काम आतीं थी
वर्किग है माँ बाप आजकल,इतना बदला रहन सहन है
अब बच्चे 'क्रैचों 'में पलते ,एकाकी,ना भाई बहन  है
भाई बहन की भीड़ भाड़ में ,तब बच्चे खुद पल जाते थे
कर आपस मे ,सलाह,मशवरा ,आगे बहुत निकल जाते थे
शिशु आजकल 'क्रैचों 'में,फिर बोर्डिंग में  डाले  जाते है
प्यार नहीं ,वैभव दिखला कर,अब बच्चे पाले जाते है
दौड़ कॅरियर की फिर उनको,कामो मे इतना उलझाती
जीवन की इस उहापोह में,आत्मीयता, पनप न पाती
हमने उनका बचपन छीना ,उसका हमे मिल रहा बदला
आज हमारी संतानो का ,है रुख काफी बदला  बदला
व्यस्त बहुत माँ बाप हो गए ,बच्चो के हित समय नहीं है
बड़े हुए तो मात पिता हित ,बच्चों को भी समय नहीं है 
जैसा किया ,भुगतते वैसा,अंतर अधिक न उनमे,हममे
हमने भेजा 'क्रैच 'बोर्डिंग ,भेज रहे वो  वृद्धाश्रम  में

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सोमवार, 15 फ़रवरी 2016

बारात में

       बारात  में 

 शादी में उनकी क्या बताएं ,कैसे ठाठ थे
थे ढेर सारे स्नेक्स और स्टाल   चाट  के 
क्या खायें और क्या चखें,मुश्किल में पड़े थे ,
वेटर बुलाते एक, तो आ जाते   आठ थे

व्यंजन हजारों खाने की टेबल की शान थे
एक एक से बढ़ ,एक हसीं ,मेहमान थे  
खाने पे जोर दे कि खानेवालों को देखें,
  दुविधा फंसे ,हम तो यूं ही परेशान थे 

 फंक्शन में उनके रौनकें कुछ ऐसी रही थी
खाना था लाजबाब और शराब बही थी 
चटखारे लेके बोला एक बूढा सा बराती ,
दुल्हन तो दुल्हन ,उसकी माँ भी ,कम तो नहीं थी    

घोटू             

कोई लड़की नहीं पटती

               कोई लड़की नहीं पटती

समा जाती है आआ कर,न जाने कितनी ही नदियां ,
              है हम गहरे समंदर वो,कोई तो बात है  हम में
भले ही पानी खारा है ,बुझा ना प्यास भी पाते,
              मगर विस्तृत बड़े है हम ,कशिश कुछ ख़ास है हम में
नहीं,छिछले,छिछोरे है ,बड़े गंभीर ,गहरे है,
                      भरे है मोती,रत्नो से ,रईसी खानदानी है
तरंगे मन में उठती है ,जो सबको खींच लेती है ,
                       उमंगें जोश तूफानी,भरी हम में जवानी है
किस समय रखना 'लो टाइड'किस समय ज्वार ले आना,
                          पुराने ये तजुर्बे है,जो हरदम काम आते है
न कोई जाल फेंकें है ,न डाले कोई भी काँटा ,
                     करोड़ों मछलियाँ प्यारी ,मगर फिर भी फंसाते है
मगर कुछ कुवे ,सरवर है ,भरा जिनमे मधुर जल है ,
                          नदी कोई भी भूले से,उधर का रुख नहीं करती
अगर अपने ही अपने में ,सिमट कर कोई रहता है ,
                       कोशिशे लाख करले पर ,कोई लड़की नहीं पटती 
 'घोटू '
                      
  '            
             
               

मज़ा

              मज़ा

न आता गर्म बालू से,गरम पानी की थैली से ,
        है तपती धूप में आता ,मज़ा असली सिकाई का
न सूखी बर्फियों में है ,न लड्डू ,बालूशाही में,
       जलेबी की टपकती चाशनी , सुख है  मिठाई  का
लूटते चोर डाकू और बड़े शोरूम मालों में ,
        मज़ा लेकिन निराला है ,हसीनो की लुटाई का 
मज़ा ना मार में माँ की,पिता की या कि टीचर की,
         मज़ा कुछ और ही होता है बीबी से  पिटाई का

घोटू

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