फिसलन
फिसलता कोई कीचड़ में ,फिसलता कोई पत्थर पर
कोई चिकनाई में फिसले ,कोई बर्फीले पर्वत पर
कोई फिसले है चढ़ने में,कोई फिसले उतरने में
फिसलने कितनी ही आती ,सभी के आगे बढ़ने में
जो पत्थर पर पड़ा पानी ,फिसलते लोग है अक्सर
बड़ा फिसलन भरा होता ,है पानी में पड़ा पत्थर
फिसलना एक क्रिया जो,न की जाती पर हो जाती
उन्हें जब हम पकड़ते है,वो हाथों से फिसल जाती
हसीं हो जिस्म और चेहरा ,फिसलती नज़रें है सबकी
बड़ी फिसलन भरी होती, है ये राहें महोब्बत की
जुबां गलती से जो फिसले ,बात में में फर्क हो जाता
हंसाई जग में होती है और बेड़ा गर्क हो जाता
फंसा लालच के चक्कर में,फिसल इंसान जाता है
चंद चांदी के सिक्कों पर ,फिसल ईमान जाता है
फिसलती हाथ से सत्ता और पत्ता कटता है जिनका
उन्हें रह रह सताता है ,जमाना बीते उन दिन का
जवानी जब फिसलती है ,बुढ़ापा घेर लेता है
अर्श से फर्श पर आना ,जरा सी देर लेता है
बड़ी फिसलन है दुनिया में,संभल कर चाहिए चलना
नहीं तो मुश्किलें होगी ,पड़ेगा हाथ फिर मलना
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
फिसलता कोई कीचड़ में ,फिसलता कोई पत्थर पर
कोई चिकनाई में फिसले ,कोई बर्फीले पर्वत पर
कोई फिसले है चढ़ने में,कोई फिसले उतरने में
फिसलने कितनी ही आती ,सभी के आगे बढ़ने में
जो पत्थर पर पड़ा पानी ,फिसलते लोग है अक्सर
बड़ा फिसलन भरा होता ,है पानी में पड़ा पत्थर
फिसलना एक क्रिया जो,न की जाती पर हो जाती
उन्हें जब हम पकड़ते है,वो हाथों से फिसल जाती
हसीं हो जिस्म और चेहरा ,फिसलती नज़रें है सबकी
बड़ी फिसलन भरी होती, है ये राहें महोब्बत की
जुबां गलती से जो फिसले ,बात में में फर्क हो जाता
हंसाई जग में होती है और बेड़ा गर्क हो जाता
फंसा लालच के चक्कर में,फिसल इंसान जाता है
चंद चांदी के सिक्कों पर ,फिसल ईमान जाता है
फिसलती हाथ से सत्ता और पत्ता कटता है जिनका
उन्हें रह रह सताता है ,जमाना बीते उन दिन का
जवानी जब फिसलती है ,बुढ़ापा घेर लेता है
अर्श से फर्श पर आना ,जरा सी देर लेता है
बड़ी फिसलन है दुनिया में,संभल कर चाहिए चलना
नहीं तो मुश्किलें होगी ,पड़ेगा हाथ फिर मलना
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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