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रविवार, 6 मार्च 2016

गंगा तट -अक्षयवट

              गंगा तट -अक्षयवट

कल कल बहती प्रीतधार है,लम्बा चौड़ा  वृहद  पाट है
कहीं वृक्ष है,कहीं खेत है ,  और कहीं पर बने घाट है
जो भी मेरे पास बस गए,सच्चे मन से सबको सींचा
मैंने उनकी प्यास बुझाई ,उनका फूला फला  बगीचा
 टेडी मेडी बहती सरिता ,किन्तु शांत मैं ,ना नटखट हूँ
                                            मैं तो गंगाजी का तट हूँ
हरा भरा हूँ ,लम्बा चौड़ा ,मैं विस्तृत हूँ  और  घना हूँ
शीतल ,मंद ,हवाएँ देता ,सुख देने  के  लिए बना हूँ
पंछी रहते ,बना घोसला,और पथिक को मिलती छाया
जो भी आया,थकन मिटाई, सबने यहां  आसरा पाया
जिसकी जड़ें ,तना बन जाती ,अपने में ही रहा सिमट हूँ
                                            मैं वो पावन अक्षयवट हूँ
कुछ ने अपनी जीवन नैया ,रखी बाँध कर मेरे तट पर
उनका जीवन सफल हो गया,डुबकी लगा,पुण्य अर्जित कर
हतभागी वो जिनके मन में ,श्रद्धा भाव नहीं था  किंचित
मुझे छोड़ कर ,चले गए वो, रहे   छाँव  से मेरी  वंचित
उनको प्यार नहीं दे पाया , इसी पीर से  मै  आहत  हूँ
                                              मैं तो गंगाजी का तट हूँ ,
                                              मै वो पावन अक्षयवट हूँ
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'                                          
 

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