बीबी का एडिक्शन
जिस दिन खाने को ना मिलती ,है बीबीजी डाट हमे ,
वो सारा का सारा दिन ही, सूना सूना सा लगता है
जिस सुबह नहीं हमको मिलती ,उनकी हाथों की बनी चाय ,
उस दिन गायब रहती चुस्ती ,और मन सुस्ती से भरता है
जिस उनके हाथों छोंकी , है दाल न होती थाली में,
उस दिन रोटी का टुकड़ा भी,मुश्किल से गले उतरता है
जिस दिन न मिले उनकी झिड़की,खुल ना पाती दिल की खिड़की
जिस दिन तकरार नहीं होती ,उस दिन ना प्यार उमड़ता है
जिस दिन वो नहीं रूठती है,मिलता ना मज़ा मनाने का ,
उनकी लुल्लू और चप्पू में ,आता आनन्द निराला है
वो नाज़ ,अदायें नखरों से हर रोज लुभाती रहती है ,
हो जाती मेहरबान जिस दिन ,तो कर देती मतवाला है
जिस दिन ना देती है पप्पी ,वो ऑफिस जाने के पहले ,
उस दिन जाने क्यों ऑफिस में ,दिन भर झुंझलाहट रहती है
इतना 'एडिक्ट'हो गया हूँ ,मैं इस 'लाइफ स्टाइल 'का ,
ना चलता उन बिन काम भले ,कितनी ही खटपट रहती है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
जिस दिन खाने को ना मिलती ,है बीबीजी डाट हमे ,
वो सारा का सारा दिन ही, सूना सूना सा लगता है
जिस सुबह नहीं हमको मिलती ,उनकी हाथों की बनी चाय ,
उस दिन गायब रहती चुस्ती ,और मन सुस्ती से भरता है
जिस उनके हाथों छोंकी , है दाल न होती थाली में,
उस दिन रोटी का टुकड़ा भी,मुश्किल से गले उतरता है
जिस दिन न मिले उनकी झिड़की,खुल ना पाती दिल की खिड़की
जिस दिन तकरार नहीं होती ,उस दिन ना प्यार उमड़ता है
जिस दिन वो नहीं रूठती है,मिलता ना मज़ा मनाने का ,
उनकी लुल्लू और चप्पू में ,आता आनन्द निराला है
वो नाज़ ,अदायें नखरों से हर रोज लुभाती रहती है ,
हो जाती मेहरबान जिस दिन ,तो कर देती मतवाला है
जिस दिन ना देती है पप्पी ,वो ऑफिस जाने के पहले ,
उस दिन जाने क्यों ऑफिस में ,दिन भर झुंझलाहट रहती है
इतना 'एडिक्ट'हो गया हूँ ,मैं इस 'लाइफ स्टाइल 'का ,
ना चलता उन बिन काम भले ,कितनी ही खटपट रहती है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
दिलचस्प रचना
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