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बुधवार, 23 मार्च 2016

न रंग होली के फागुन में

       न रंग होली के फागुन में

लड़कियां देख कर 'घोटू' बहुत फिसले लड़कपन में
हुई शादी, हसरतें सब, रह गई ,मन की ही मन में
किसी को ताक ना सकते,कहीं हम झाँक ना सकते ,
बाँध कर रखती है बीबी, हमे अब  अपने   दामन में 
हमारी हरकतों पर अब,दफा एक सौ चुम्मालिस है,
न आँखे चार कर सकते किसी से ,हम है बंधन में
गर्म मिज़ाज़ है बीबी, हर एक मौसम में तपती लू,
न रिमझिम होती सावन में ,न रंग होली के फागुन में 
काटते रहते है चक्कर ,उन्ही के आगे पीछे  हम,
बन गए बैल कोल्हू के ,बचा ही क्या है  जीवन में

घोटू

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