मारे गए गुलफाम
मुझको उनने घास तक डाली नहीं ,
खेत कोई और ही आ चर गया
चवन्नी को मुझको तरसाते रहे ,
और तिजोरी ,दूसरा ले भर गया
मुझको मीठी मीठी बातों से लुभा ,
मिठाई के लिए ,ललचाते रहे ,
मिठाई का डिब्बा मेरे सामने ,
दूसरा ही कोई आ ,चट कर गया
या तो तुम चालू थी या वो तेज था ,
या मैं ही बुद्धू था,गफलत में रहा ,
नग जो जड़ना था अंगूठी में मेरी ,
दूसरे की अंगूठी में जड़ गया
शराफत में अपनी फजीयत कराली,
मुफ्त में मारे गए ,गुलफाम हम,
प्रेमपाती हमने थी तुमको लिखी,
दूसरा ही कोई आकर पढ़ गया
क्या बताएं आशिकी में आपकी,
किस कदर का ,जुलम है हम पर हुआ ,
हमको ऊँगली तलक भी छूने न दी,
दूसरा ,पंहुची पकड़ कर,बढ़ गया
हमने सोचा था,हंसी तो फस गई ,
उल्टा मुश्किल में फंसा हम को दिया ,
चौबे जी ,दुबे जी बन कर रह गए ,
छब्बे जी बनने का चक्कर मर गया
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
मुझको उनने घास तक डाली नहीं ,
खेत कोई और ही आ चर गया
चवन्नी को मुझको तरसाते रहे ,
और तिजोरी ,दूसरा ले भर गया
मुझको मीठी मीठी बातों से लुभा ,
मिठाई के लिए ,ललचाते रहे ,
मिठाई का डिब्बा मेरे सामने ,
दूसरा ही कोई आ ,चट कर गया
या तो तुम चालू थी या वो तेज था ,
या मैं ही बुद्धू था,गफलत में रहा ,
नग जो जड़ना था अंगूठी में मेरी ,
दूसरे की अंगूठी में जड़ गया
शराफत में अपनी फजीयत कराली,
मुफ्त में मारे गए ,गुलफाम हम,
प्रेमपाती हमने थी तुमको लिखी,
दूसरा ही कोई आकर पढ़ गया
क्या बताएं आशिकी में आपकी,
किस कदर का ,जुलम है हम पर हुआ ,
हमको ऊँगली तलक भी छूने न दी,
दूसरा ,पंहुची पकड़ कर,बढ़ गया
हमने सोचा था,हंसी तो फस गई ,
उल्टा मुश्किल में फंसा हम को दिया ,
चौबे जी ,दुबे जी बन कर रह गए ,
छब्बे जी बनने का चक्कर मर गया
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।