मिली हो जबसे तुम हमसे
मिली हो जबसे,तुम हमसे ,हुए है बावरे से हम
न सर्दी है ,न गर्मी है,बसंती लगता हर मौसम
झिड़कती प्यार से जब तुम,बरसने फूल लगते है
कभी जब मुस्करा देती ,हमे कर देती हो बेदम
तुम्हारे खर्राटे तक भी ,मधुर लोरी से लगते है ,
तुम्हारी रोज की झक झक ,लगा करती हमे सरगम
तुम्हारे हाथों को छूकर ,कोई भी चीज जो बनती,
बड़ी ही स्वाद लगती है ,न होती पकवानो से कम
बनाती हो जो तुम फुलके ,वो लगते मालपुवे से,
तुम्हारी सब्जियां खाकर ,उँगलियाँ चाटते है हम
इसी डर से,कहीं तुम पर ,नज़र कोई न लग पाये ,
लटकते नीबू मिरची से ,तेरे दर पे है हाज़िर हम
तुम्हे खुश रखने में जानम ,निकल जाता हमारा दम
खुदा का शुक्रिया फिर भी,मिली तुम जैसी है हमदम
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
मिली हो जबसे,तुम हमसे ,हुए है बावरे से हम
न सर्दी है ,न गर्मी है,बसंती लगता हर मौसम
झिड़कती प्यार से जब तुम,बरसने फूल लगते है
कभी जब मुस्करा देती ,हमे कर देती हो बेदम
तुम्हारे खर्राटे तक भी ,मधुर लोरी से लगते है ,
तुम्हारी रोज की झक झक ,लगा करती हमे सरगम
तुम्हारे हाथों को छूकर ,कोई भी चीज जो बनती,
बड़ी ही स्वाद लगती है ,न होती पकवानो से कम
बनाती हो जो तुम फुलके ,वो लगते मालपुवे से,
तुम्हारी सब्जियां खाकर ,उँगलियाँ चाटते है हम
इसी डर से,कहीं तुम पर ,नज़र कोई न लग पाये ,
लटकते नीबू मिरची से ,तेरे दर पे है हाज़िर हम
तुम्हे खुश रखने में जानम ,निकल जाता हमारा दम
खुदा का शुक्रिया फिर भी,मिली तुम जैसी है हमदम
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
बेहद दिलचस्प कविता
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