लड्डू और जलेबी
एक जमाना था हम भी थे दुबले पतले ,
लगते थे मोहक,आकर्षक ,सुन्दर ,प्यारे
जिसे देख ,तुम रीझी और प्रेमरस भीझी ,
मिलन हुआ ,हम जीवनसाथी बने तुम्हारे
और आजकल तुमको रहती यही शिकायत,
फूल गए हम , फ़ैल गया है बदन हमारा
दौलत ये सब ,सिर्फ बदौलत है तुम्हारी,
चर्बी नहीं,भरा है तन में प्यार तुम्हारा
चखा चाशनी, अपनी रसवन्ती बातों की ,
स्वर्णिम आभा लिए जलेबी तुम ना होते
नहीं प्यार का रोज रोज आहार खिलाते ,
तो फिर गोलमोल लड्डू से हम ना होते
घोटू
एक जमाना था हम भी थे दुबले पतले ,
लगते थे मोहक,आकर्षक ,सुन्दर ,प्यारे
जिसे देख ,तुम रीझी और प्रेमरस भीझी ,
मिलन हुआ ,हम जीवनसाथी बने तुम्हारे
और आजकल तुमको रहती यही शिकायत,
फूल गए हम , फ़ैल गया है बदन हमारा
दौलत ये सब ,सिर्फ बदौलत है तुम्हारी,
चर्बी नहीं,भरा है तन में प्यार तुम्हारा
चखा चाशनी, अपनी रसवन्ती बातों की ,
स्वर्णिम आभा लिए जलेबी तुम ना होते
नहीं प्यार का रोज रोज आहार खिलाते ,
तो फिर गोलमोल लड्डू से हम ना होते
घोटू
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