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बुधवार, 23 मार्च 2016

होली की जलन

        होली की जलन
                  १
सुंदर कन्या कुंवारी ,जिसका रूप अनूप
ज्यों गुलाब का फूल हो,या सूरज की धूप
या सूरज की धूप ,हमारे  मन को  भायी 
लाख करी कोशिश,मगर वो हाथ  न आयी
हमे जलाती रोज ,दिखा कर नूतन जलवा
ललचाता था बहुत ,हुस्न का उनके हलवा
                   २
हमने कुछ ऐसा किया ,रहगयी मलती हाथ
देखा हमको दूसरी , हुस्न परी  के  साथ
हुस्न परी के साथ ,कुढ़ी कुछ ऐसी मन में
जल कर हो गई खाक ,आग यूं लगी बदन में
'घोटू'  ये तो वही  पुरानी बात  हो गयी
जला नहीं प्रहलाद ,होलिका ख़ाक हो गयी
                     ३
जानबूझ कर जो हमे ,न थी डालती घास
आगबबूला सी खिंची ,आई हमारे  पास
आई हमारे पास ,तमक से  लाल लाल थी
'घोटू'खुश थे  ,सफल हमारी  हुई चाल थी
लगा प्रेम से गले, प्यार कर  उन्हें मनाया
अंग  अंग  उनके ,होली का रंग   लगाया

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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