अनुभूती
सरदी में सरदी लगती ,गरमी में गरमी
अनुभूति हर मौसम की ,तन पर होती है
कभी हंसाती,कभी रुलाती,कभी नचाती ,
खुशियां ,गम की अनुभूति ,मन पर होती है
कभी टूटता ,आहें भरता और तड़फता,
कभी दुखी जब होता है तो दिल रोता है
ये दिल अनुभूती का इतना मारा है ,
पुलकित होता ,खुश होकर पागल होता है
किन्तु एक वह परमशक्ति जो विद्यमान है ,
जग के हर प्राणी का जीवन चला रही है
अनुभूति जो उसकी सच्चे मन से करलो,
पाओगे हर जगह ,बताओ कहाँ नहीं है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
सरदी में सरदी लगती ,गरमी में गरमी
अनुभूति हर मौसम की ,तन पर होती है
कभी हंसाती,कभी रुलाती,कभी नचाती ,
खुशियां ,गम की अनुभूति ,मन पर होती है
कभी टूटता ,आहें भरता और तड़फता,
कभी दुखी जब होता है तो दिल रोता है
ये दिल अनुभूती का इतना मारा है ,
पुलकित होता ,खुश होकर पागल होता है
किन्तु एक वह परमशक्ति जो विद्यमान है ,
जग के हर प्राणी का जीवन चला रही है
अनुभूति जो उसकी सच्चे मन से करलो,
पाओगे हर जगह ,बताओ कहाँ नहीं है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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