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रविवार, 20 अगस्त 2023

आया गणपति का त्योंहार, मनाओ उत्सव रे
आज बप्पा आए हैं मेरे द्वार, मनाओ उत्सव रे 

गणपति बप्पा मोरया,बार बार तू जल्दी आ

जय गणेश गणपति गजानन 
करूं आपका, मैं आराधन 
तुम सुत महादेव के प्यारे 
प्रथम पूज्य तुम देव हमारे 
एक दंत और कर्ण विशाला 
अरुण कुसुम की धारे माला
कर में कमल ,माथ पर चंदन 
भव्य रूप ,गौरी के नंदन 
तुम्हारे प्रति सबके मन मे , श्रद्धाभाव अपार, मनाओ उत्सव रे
आज बप्पा आए हैं मेरे द्वार मनाओ उत्सव रे

गणपति बप्पा मोरया, बार बार तू जल्दी आ 

तुम हो रिद्धि सिद्धि के दाता
हम सबके तुम बुद्धि प्रदाता
लाभ और शुभ, पुत्र तुम्हारे
हरते सबके संकट सारे
जब हो घर में कुछ आयोजन
देते तुमको प्रथम निमंत्रण
मिलता आशीर्वाद तुम्हारा
काम विघ्न बिन होता सारा
आशीर्वादों की वर्षा से, करते हो उपकार, मनाओ उत्सव रे
आज बप्पा आए हैं मेरे द्वार मनाओ उत्सव रे

 गणपति बप्पा मोरया बार बार तू जल्दी आ
 
लक्ष्मी साथ तुम्हारा पूजन 
दिवाली पर करें सभी जन 
सरस्वती संग साथ तुम्हारा 
सबको ही लगता है प्यारा 
दो देवी को बुद्धि बल से 
तुमने साध रखा कौशल से 
बना  संतुलन रखो विनायक 
महाकाय ,पर वाहन मूषक 
सूझ बूझ है बड़ी विलक्षण ,वंदन बारंबार मनाओ उत्सव रे
आज बप्पा आए हैं मेरे द्वार, मनाओ उत्सव रे

गणपति बप्पा मोरया बार बार तू जल्दी आ 


मदन मोहन बाहेती घोटू 
जय जय शंकर भोले नाथ
जय जय शंभू भोले नाथ
हे त्रिपुरारी, कृपा तुम्हारी, बनी रहे दिन रात  
जय जय शंकर भोले नाथ
जय जय शंभू भोलेनाथ 

हर कोई बोले, बम बम भोले
प्रेम से बोले, बम बम भोले

हे शंकर, बाघाम्बर धारी 
करूं आपकी पूजा न्यारी
दूध दही घी शहद शर्करा
गंगाजल से पात्र है भरा
बिलपत्तर और भांग की बूटी
अभिषेक की रीति अनूठी
अर्पित करूं पुष्प की माला और नमाऊं माथ
जय जय शंकर भोले नाथ
जय जय शंभू भोले नाथ

हर कोई बोले, बम बम भोले
प्रेम से बोले, बम बम भोले 

हे कैलाशी, काशी वासी
हे शंभू तुम हो अविनाशी
सर्प गले ,सर चंदा सजता 
डम डम डम डम डमरू बजता 
महिमा है तुम्हारी न्यारी
नंदी पर तुम करो सवारी 
डूबे रहते सदा ध्यान मे और त्रिशूल है साथ 
जय जय शंकर भोले नाथ 
जय जय शंभू भोले नाथ 

हर कोई बोले, बम बम भोले
प्रेम से बोले, बम बम भोले

आदिदेव तुम महादेव हो
सब देवों के तुम्ही देव हो
रमी भभूति तन सब अंगा
सर पर जटा, निकलती गंगा
तुम्हे पूजती दुनिया सारी
प्रभु तुम हो भोले भंडारी 
देने आशीर्वाद हमेशा, उठे तुम्हारा हाथ 
जय जय शंकर भोले नाथ
जय जय शंभू भोलेनाथ 

हर कोई बोले, बम बम भोले
प्रेम से बोले,बम बम भोले 

मदन मोहन बाहेती घोटू 

गुरुवार, 17 अगस्त 2023

बातचीत 

तुम भी चुप 
मैं भी चुप 
घर में चारों तरफ मौन है पसरा 
चलो इस सन्नाटे को हटाए जरा 
अपना अपना मुंह खोलें 
तुम भी कुछ बोलो, हम भी कुछ बोले 
कुछ बात करें 
वार्तालाप करें 
थोड़ा हंसे मुस्कुराए 
या चलो किसी की बुराइयां करके 
ही बात को आगे बढ़ाएं 
निंदा रस में भी बड़ा मजा आता है 
वक्त कट जाता है 
इसी बहाने कुछ हंसते बोलते हैं 
या चलो यूं करते हैं अलमारी खोलते हैं 
पुराने कपड़ों की सलवटो में सिमटी हुई यादें
 वह क्षण उन्मादे 
 बहुत कुछ याद आएगा 
 इसी बहाने बातों का सिलसिला चालू हो जाएगा चलो याद करते हैं प्रथम मिलन की रात 
 तुम बैठी थी चुपचाप 
 मैंने ही की थी बातचीत की शुरुआत 
 मैंने जब तुम्हारा घूंघट उठाया था 
 तुम्हें अपने सीने से लगाया था 
 कितने हसीन थे वो जवानी के पल 
 देखते ही देखते वक्त गया निकल 
 और फिर जब फंसे गृहस्थी के बीच 
 शुरू हो गई थी हमारी रोज की किचकिच 
 बात बात पर लड़ाई और झगड़ा 
 हमेशा दोष मुझे पर ही जाता था मढ़ा
 अच्छा यह बदलाओ
 पिछली बार जब हुई थी लड़ाई हमारी
 गलती मेरी थी या तुम्हारी 
 वह तो मैं कह दिया था सारी 
 वरना तुमने तो बना दिया था बात का बतंगड़ बिना बात की मेरे ऊपर गई थी चढ़ 
बस की रहने दो तुम कौन से दूध के धुले हो 
सारा दोष मुझे पर लगाने पर तुले हो 
जब देखो मुझ में कमियां निकालते रहते हो गलतफहमियां पालते रहते हो 
वह तो मैं ही सीधीसादी मिल गई 
जो तुम्हें झेलती रहती हूं इतना ज्यादा 
और कोई नकचढ़ी मिल जाती 
तो आटे दाल का भाव पता पड़ जाता 
मैं ही हूं जो पिछले इतने सालों से 
निभा रही हूं तुमसे और तुम्हारे घर वालों से 
रहने दो, रहने दो ,
मैं ही हूं जो मुसीबत से खेल रहा हूं
 इतने सालों से तुम्हें झेल रहा हूं 
 घर में शांति रहे इसलिए 
 रहता हूं तुम्हारे आगे घुटने टेक 
वर्ना तुम तो मेरी हर बात में 
 निकालती रहती हो मीन मेख 
 रहने दो ,रहने दो बात मत बढ़ाओ 
 राई का पर्वत मत बनाओ 
 गलत तुम होते हो 
 नहीं, गलत तुम होती हो 
 तुम 
 नहीं तुम 
 मेरे नसीब फूटे थे जो तुम पड़े मेरे गले 
 तुम्हें बात करनी थी इसलिए मैं करने लगी 
 वरना तो इससे हम मौन ही थे भले
 फिर से वही चुप्पी 
 तुम भी चुप 
 हम भी चुप
 फिर वही सन्नाटा
 बस इसी तरह की नोकझौंक में
 जीवन जाता है काटा

मदन मोहन बाहेती घोटू 
सांत्वना

प्रिया 
तुमने दिन भर काम किया 
थक गई होगी 
आओ तुम्हारे पांव दबा दूं 
सर दर्द हो रहा होगा 
बाम लगाकर तुम्हारा सर सहला दूं 
थोड़ा सा लेट जाओ 
कुछ देर सुस्तालो 
जरूरत हो तो पेन किलर की गोली खा लो 
अरे कुछ नहीं जी 
यह तो रोज-रोज का काम है 
उमर हो गई है इसीलिए 
आ जाती थोड़ी थकान है 
क्या करूं काम में इतना व्यस्त रही 
कि तुम्हारा ध्यान भी नहीं रख पाई 
दिनभर कितनी ही बार तुमने पुकारा 
पर मैं ना आई 
तुमने ले तो ली थी ना टाइम पर दवाई 
पर जब कभी-कभी आ जाते हैं मेहमान 
तो रखना पड़ता है उनका ध्यान 
तुम भी कितना सहयोग करते हो 
सभी का पूरा ध्यान रखते हो 
आजकल कौन किसके यहां जाता है 
जहां प्यार मिलता है वही तो कोई आता है 
सब आते हैं तो यह सूना घर 
चहल पहल से जाता है भर
रौनक छा जाती है वीराने में 
त्यौहार का मजा ही है मिलकर के मनाने में 
रिश्ते बंधे रहते हैं टूटते नहीं है 
यह प्यार के बंधन हैं, छूटते नहीं है 

मदन मोहन बाहेती घोटू 
निठल्ले मत बनना 

तुम्हारा उपहास करें सब,इतने झल्ले मत बनना 
कुछ ना कुछ करते ही रहना,कभी निठल्ले मत बनना 
हुए रिटायर नहीं जरूरी, काम धाम करना छोड़ो 
योगा और व्यायाम करो तुम ,थोड़ा भागो और दौड़ो 
सुबह दूध सब्जी ले आओ ,पोते पोती टहलाओ 
यार दोस्तों संग मस्ती कर अपने मन को बहलाओ 
हिलते डुलते नहीं अंग तो जंग उन्हे लग जाती है 
चलना फिरना दूभर होता, ऐसी मुश्किल आती है 
यूं ही रहोगे बैठे ठाले ,तो तबीयत भी ऊबेगी 
डूबे रहे यूं ही आलस में ,तो फिर लुटिया डूबेगी 
दिन भर बैठे खाओगे तो यूं ही फूलते जाओगे निष्क्रिय बदन हो जाएगा,गोबरगणेश कहलाओगे 
कामकाज जो ना करते , तो बीबी ताने देती है दिन भर पलंग तोड़ते रहते, तुम्हें उलहाने देती है आलस में डूबे रहने से तन पर मोटापा चढ़ता है 
 रहेआदमी चलता फिरता तो ज्यादा दिन चलता है 
बिना काम के पड़े पड़े तुम, यूं ही मोटल्ले मत बनना 
कुछ ना कुछ करते ही रहना, कभी निठल्ले मत बनना

मदन मोहन बाहेती घोटू 

सोमवार, 7 अगस्त 2023

जमाना कैसा आया रे 

रोटी पो पो आंखें फूटी ,यह कहती थी दादी 
और रसोई में अम्मा ने भी सारी उम्र बिता दी 
किंतु आज की महिलाओं को है पूरी आजादी स्विगी टेलीफोन किया, मनचाही चीज मंगा दी 
या फिर होटल में जाकर के खाना खाया रे जमाना कैसा होता था, जमाना कैसा आया रे

बड़ी सादगी से रहते थे ,बूढ़े बड़े हमारे 
गर्मी पड़ती,खुली हवा में छत पर सोते सारे लालटेन घर रोशन करती, ना बिजली पंखा रे
अब तो हर कमरे में पंखा और ऐसी चलता रे प्रगति में जीवन कितना आसान बनाया रे 
जमाना कैसा होता था ,जमाना कैसा आया रे

जीवन की शैली मे देखो आया कितना अंतर 
पहले कुए का पानी था ,अब बोतल में वाटर लकड़ी से चूल्हा जलता था अब है गैस का बर्नर 
पहले खाते थे हम मठरी,अब खाते हैं बर्गर खानपान में अब कितना परिवर्तन आया रे 
जमाना कैसा होता था, जमाना कैसा आया रे

 पहले चिट्ठी पत्री होती, रोज डाकिया लाता टेलीग्राम कभी आता तो सारा घर घबराता टेलीफोन अगर हो घर में स्टेटस कहलाता 
अब तो घर-घर ,सबके हाथों मोबाइल लहराता 
साथ बात के, फोटो भी सबका दिखलाया रे जमाना कैसा होता था जमाना कैसा आया रे

मिट्टी वाले घर होते थे पुते हुऐ गोबर में 
सात आठ बच्चे होते थे रौनक रहती घर में 
तड़क भड़क से दूर ,सादगी रहती जीवन भर में 
पास पड़ोसी सदा साथ थे सुख दुख के अवसर में 
फ्लैट संस्कृती ने शहरों की,सभी भुलाया रे
जमाना कैसे होता था, जमाना कैसा आया रे

न तो कार ना स्कूटर थी ,पैदल आना जाना 
एक थाली में दाल और रोटी बड़े प्रेम से खाना छोटी एक बजरिया जिसमे सब कुछ था मिल जाना
आसपास थे पेड़ ,तोड़कर आम और जामुन खाना 
माल संस्कृति ने सबका ही किया सफाया रे जमाना कैसा होता था, जमाना कैसा आया रे 

नहीं रहे अब प्रेम पत्र वह खुशबू वाले प्यारे 
मोती जैसे हर अक्षर को जाता था चूमा रे 
अब तो चैटिंग डेटिंग होती, संग करते घूमा रे
घूंघट उठा, देखना चेहरा , ये थ्रिल नहीं बचा रे शादी पहले लिव इन ने भट्टा बैठाया रे 
जमाना कैसा होता था, जमाना कैसा आया रे

मदन मोहन बाहेती घोटू 
बढ़ती उम्र 

बढ़ने लगती है उमर ,बुढ़ापा जब पीछे पड़ जाता है 
तन में तनाव जब घट जाता,मन में तनाव बढ़ जाता है

जब पूंजी जमा जवानी की , हाथों से खिसकने लगती है 
मंदिम होती मन की सरगम और सांस सिसकने लगती है 
हरदम उछाल लेने वाला ,दिल ठंडी सांसे भरता है 
इंसान परेशान हो जाता ,घुट घुट कर जीता मरता है 
रह रह कर उसे सताता है, ऐसा बुखार चढ़ जाता है 
बढ़ने लगती है उमर ,बुढ़ापा जब पीछे पड़ जाता है 

कृषकाय आदमी हो जाता, धीरज भी देता साथ नहीं 
जो कभी जवानी में होती ,रह जाती है वह बात नहीं 
महसूस किया करता अक्सर है वह अपने को ठगा ठगा 
विचलित रहता, ना रख सकता, वह किसी काम में ध्यान लगा 
बढ़ जाती शकर रक्त में है, ब्लड प्रेशर भी चढ़ जाता है 
बढ़ने लगती है उमर बुढ़ापा जब पीछे पड़ जाता है

मदन मोहन बाहेती घोटू 
तेरी छुअन 

तूने मुझको छुआ ऐसे 
आने लगे प्रेम संदेशे
जब भी तू मुझको छूती है ,सिहरन होती तन में 
पता नहीं क्या हो जाता पर कुछ कुछ होता मन में 
वातावरण महक जाता है फूल खिले हो जैसे 
तूने मुझको छुआ ऐसे 
आने लगे प्रेम संदेशे 
एक शिला का पत्थर था मैं, तूने मुझे तराशा 
गढ़ दी मूरत, लगी बोलने ,मधुर प्रेम की भाषा लगता है जीवंत हो गया प्यार हमारा जैसे 
तूने मुझको छुआ ऐसे 
आने लगे प्रेम संदेशे 
मैं था बीज, धरा बन तूने ,है इसको पनपाया 
तेरी देख रेख में ही मैं आज वृक्ष बन पाया 
वरना पुष्पित और पल्लवित मैं हो पाता कैसे 
तूने मुझको छुआ ऐसे 
आने लगे प्रेम संदेशे 
तेरे प्रति मेरी दीवानगी ,दिन दिन बढ़ती जाती 
मन में तू छाई रहती है ,मुझे नींद ना आती 
तुझ को लेकर ख्वाब बुना करता मैं कैसे-कैसे 
तूने मुझको छुआ ऐसे 
आने लगे प्रेम संदेशे 
जब से तुम मेरे जीवन में आई दिल के पास  
तुमने बदल दिया मेरा भूगोल और इतिहास 
बदल गए हालात रहे ना पहले जैसे 
तूने मुझको छुआ ऐसे
आने लगे प्रेम संदेशे 

मदन मोहन बाहेती घोटू 
दिल्ली 6 का खाना

स्वाद के मारे सब प्यारों का स्वागत करती देहली है 
दिल्ली 6 के खान-पान की शान बहुत अलबेली है

सबको बना दिया दीवाना है इसके पकवानों ने मुंह पानी भरती चाटों ने ,मिठाई की दुकानों ने प्यारी है रसभरी जलेबी सबके मन को ललचाती 
घंटे वाले सोहन हलवे की याद बहुत है तड़फाती खुरचन ,बाजार किनारी की,है चीज सभी के चाहत की 
जगह-जगह सर्दी में मिलती, चाट सुहानी दौलत की 
गली-गली में बहुत चाट के दोने जाते चाटे है
गली पराठे वाली के ,कितने मशहूर पराठें हैं 
स्वाद कंवरजी दाल मोठ और अमृत भरी इमरती है 
नटराज के भल्ले आलू टिक्की सबको भाया करती है 
नागोरी पूरी और हलवा ,गरम बेडमी स्वाद भरी और मटर कुल्चों के ठेलों पर रहती है भीड़ बड़ी खस्ता और आलू की सब्जी, छोले और भटूरे हैं कांजी बड़े नहीं खाए तो सारे स्वाद अधूरे हैं 
हलवा करांची चेनामल का ,इसकी अपनी रंगत है ज्ञानी ,रबड़ी और फ़लूदा,खाना सब की चाहत है खान-पान से दिल्ली 6 का, बड़ा पुराना नाता है पेट भले ही भर जाता मन लेकिन न भर पाता है नाम पुरानी दिल्ली ,लगती हरदम नयी नवेली है दिल्ली 6 के खानपान की शान बहुत अलबेली है

मदन मोहन बाहेती घोटू

रविवार, 6 अगस्त 2023

अच्छा आदमी 

जिंदगी अपनी गुजारो प्यार से,
 रहो बनके एक सच्चा आदमी 
 जियो ऐसे ,जाओ तो दुनिया कहे,
 जा रहा है एक अच्छा आदमी 
 
मोहब्बत जिसने लुटाई हर तरफ
और सब में प्यार बांटा, प्यार से 
बांटने सुख-दुख उठाई मुश्किलें,
आज वह उठ जा रहा संसार से 
मित्रों संग लंबा निभाना साथ था,
जा रहा है दे के गच्चा आदमी 
जियो ऐसे ,जाओ तो दुनिया कहे,
 जा रहा है एक अच्छा आदमी 
 
वह बड़ा ही था भला और नेक था,
मन में थी सब के प्रति सद्भावना 
सदा उसके चेहरे पर मुस्कान थी 
करता था सबके भले की कामना 
सादगी से रहा पूरी उम्र भर ,
दिल का था पर थोड़ा कच्चा आदमी 
जियो ऐसे ,जाओ तो दुनिया कहे 
जा रहा है एक अच्छा आदमी 

रहा करता हमेशा सत्कर्म वो 
देखता भगवान हर इंसान में 
करता था उत्साहवर्धन सभी का,
आस्था रखता सदा ईमान में 
सभी पर उपकार वह करता रहा ,
भला था जैसे कि बच्चा आदमी 
जियो ऐसे ,जाओ तो दुनिया कहे 
जा रहा है एक अच्छा आदमी

मदन मोहन बाहेती घोटू 
दल की दलदल

मिल गए कई दल, दल दल में, अस्तित्व मगर अपना अपना 
मोदी को हटाए सत्ता से, मन में बस यही लिए सपना
पोषित हैं परिवारवाद से सब ,कहते खुद को समाजवादी 
 कुछ छूटे हुए जमानत पर ,कुछ सजायाफ्ता अपराधी 
 नौ वर्षों से न कमाई कुछ, ना कोई कमीशन, रिश्वत है
सब काली पूंजी स्वाह हुई ,नोटबंदी लाइ मुसीबत है 
सूखे सब श्रोत कमाई के ,बदहाली ही है बदहाली 
इस आशा से मिल रहे कि फिर, धन बरसे, छाए खुशहाली 
 पुश्तों के लिए जमा सब धन ,धीरे-धीरे बहता जाता 
कुर्सी से दर्द जुदाई का ,अब इनसे सहा नहीं जाता 
इनने सत्ता सुख भोग लिया ,कोशिश यही है अब केवल 
इस राजनीति में, बच्चों को ,जैसे तैसे कर दे सेटल 
कोशिश कर रहे सब मिलकर ,कट जाए मोदी का पत्ता 
इनको फिर कुर्सी मिल जाए और हथियालें फिर से सत्ता 
चल रही मगर एक खींचतानी ,सब चाहे पंत प्रधान बने 
एक दूजे को देते गाली पर दोस्त बने अब सभी जने 
पर हवा चल रही मोदी की, ये बादल होंगे तितर बितर 
कोरस गाते मजबूरी में ,लेकिन मिलते ना इनके स्वर 
सबकी अपनी अपनी ढपली, और राग अलापे सब अपना 
 चौबिस में मोदी आएगा और टूटेगा इनका सपना

मदन मोहन बाहेती घोटू 
जीवन डगर 

जीवन की डगर, है नहीं सरल, मुश्किल आती कैसी कैसी 
तुम में यदि हिम्मत, जज्बा है ,हर मुश्किल की एैसी तैसी 

जो हार हौसला जाते हैं ,और डर जाते बाधाओं से 
जो कंकर ,पत्थर, कांटों को ,पाते ना हटा निज राहों से 
उनको मंजिल ना मिल पाती, रहती हालत वैसी वैसी 
तुममें यदि हिम्मत ,जज्बा है ,हर मुश्किल की ऐसी तैसी 

होते हो अगर अग्रसर तुम ,जीवन में प्रगति के पथ पर 
दस दुश्मन नजर गढाएं हैं ,रखना होता पग संभल संभल 
तुमको सबसे टकराना है ,छाती हो फौलादी जैसी 
तुमने यदि हिम्मत ,जज्बा है ,हर मुश्किल की ऐसी तैसी

मदन मोहन बाहेती घोटू 
सच्चा सुख 

ना तो हीरे मोती में है ,ना ही चांदी और सोने में 
सच्चा सुख मिलता, पग पसार, अपने बिस्तर पर सोने में 

चाहे वो कितने थके पके, सारी थकान मिट जाती है 
अपने पलंग पर जब लेटो, तो नींद चैन की आती है 
सब परेशानियां भग जाती , मिटते जीवन के सन्नाटे 
निद्रा देवी की गोदी में ,जब आने लगते खर्राटे 
मन में शांति छा जाती है ,क्या रखा रोने धोने में 
सच्चा सुख मिलता पग पसार,अपने बिस्तर पर सोने में

भरपेट अगर भोजन कर लो , तो तन अलसाने लगता है 
पलके मुंदती,थोड़ा सरूर ,आंखों में छाने लगता है 
हो तकिया नरम सिरहाने में ,चलता हो पंखा या ऐ सी 
तुम स्वप्नलोक में उड़ते हो ,फिर दुनिया की ऐसी तैसी 
वह मजा और ही होता है, मीठे सपनों में खोने में 
सच्चा सुख मिलता पग पसार,अपने बिस्तर पर सोने में

मदन मोहन बाहेती घोटू 
जो होना है जो होना है 

सुख दुख आते जाते रहते क्या हंसना क्या रोना है 
सब चलता है हरि इच्छा से,जो होना है सो होना है 

अच्छा कभी,कभी दुखदायक, पल-पल भाग्य बदलता है 
जैसा लिखा काल का क्रम है, वैसा ही सब चलता है 
नियति आगे नाचा करता ,मानव बस एक खिलौना है 
सब चलता है हरि इच्छा से,जो होना है सो होना है 

लेकिन यदि हो जो पुरुषार्थ , तुम सकते हो तकदीर बदल 
सत्कर्म करो तो किस्मत की ,जाती है सभी लकीर बदल 
बस थोड़ी हिम्मत रखनी है और धीरज को ना खोना है 
सब चलता है हरि इच्छा से ,जो होना है सो होना है 

मन में थोड़ा विश्वास रखो ,घबराओ मत तुम शांत रहो 
नित नई समस्या आएगी ,उनसे मत तुम आक्रांत रहो 
अपने बूते ,अपने बल से ,तुमको तकदीर संजोना है 
सब चलता है हरि इच्छा से ,जो होना है सो होना है

मदन मोहन बाहेती घोटू 

रविवार, 23 जुलाई 2023

मन की पीर 

जब नींद रात को ना आती 
हम सोते करवट बदल बदल 
बेचैन हुए लेटे रहते 
हैं कभी इधर तो कभी उधर 
इतना छाता एकाकीपन 
सपने भी तो आते है कम 
क्योंकि इतनी ना उमर बची,
उनको पूरा कर पाएं हम 
 दिल लगे पहाड़ों से लंबे 
 मुश्किल से ही कट पाते 
 घबराहट प्रकट नहीं करते,
 हम फिर भी रहते मुस्काते 
 लेकिन इन मुस्कानों पीछे
 है दर्द न दिखता अंदर का 
 लगता विशाल, पी ना पाते 
 खारा जल भरा समुंदर का 
 मन की पीड़ायें छुपी हुई 
 लेने लगती जब अंगड़ाई 
रह रह कर याद हमे आती,
कुछ अपनों की ही रुसवाई 
नयनों में बस जाता सावन 
और झर झर आंसू झरते हैं 
बस इन्हीं परिस्थितियों में हम 
नित जीते हैं ,नित मरते है

मदन मोहन बाहेती घोटू 
जीवन व्यापन 


उमर हमारी ज्यों ज्यों बढ़ती
वैसे जीवन अवधि घटती 
यह अटल नियम है प्रकृति का,
पकती है फसल, तभी कटती 
बचपन , यौवन,वृद्धावस्था 
ये ही तो है जीवन का क्रम 
हंसते गाते, सुख में, दुख में,
जैसे तैसे कटता जीवन 

यह नहीं कदापि आवश्यक 
जीवन पथ कंटक हीन रहे 
बाधाएं सब को ही मिलती,
 कितना ही कोई प्रवीण रहे 
 हो राह अगर जो कंकरीली 
 चलते हैं तो चुभते पत्थर 
 हो राह अगर कीचड़ वाली,
 बढ़ते हैं पांव मगर धस कर 
 चलना पड़ता है संभल संभल 
 लड़ना है मुश्किल से हर क्षण 
 हंसते गाते, सुख में, दुख में 
 जैसे तैसे कटता जीवन 
 
कुछ लोग मौज काटा करते,
 डूबे रहते हैं मस्ती में 
 कुछ की कट जाती उम्र यूं ही 
 उलझे रह करके गृहस्थी में 
 अपना अस्तित्व बचाने को 
 करना पड़ती है मार काट 
 चाहे अनचाहे तत्वों से 
 करनी पड़ती है सांठगांठ 
 रहना पड़ता संघर्षशील ,
  है सरल नहीं जीवन व्यापन 
  हंसते गाते ,सुख में ,दुख में 
  जैसे तैसे कटता जीवन 
  
है प्यार कभी, तकरार कभी 
इंकार कभी , इकरार कभी
तुम बूढ़े हुए ,बदल जाता 
अपनों का भी व्यवहार कभी 
अपने-अपने सब कामों में 
हो जाते अपने सभी व्यस्त 
और तरह तरह के रोग हमें 
करने लगते हैं बहुत त्रस्त
जर्जर होता चंदन सा तन 
और पल-पल विव्हल होता मन 
हंसते गाते ,सुख में ,दुख में ,
जैसे तैसे कटता जीवन

मदन मोहन बाहेती घोटू 
बदनसीबी 

जिससे करी थी हमने मोहब्बत थी बेपनाह 
उस बेमुरव्वत में हमें लेकिन किया तबाह 
हमराह मिली ऐसी की गुमराह कर दिया ,
कर नहीं पाई  संग हमारे जरा निभाह
दो-चार दिन में ही हमें गुलाम कर दिया 
मां-बाप को हमारे है गुमनाम कर दिया

घोटू 
पति की फरमाइश 

खातिर में साले साहब की जुटती हो जिस तरह,
हम पर भी मेहरबानी कुछ दिखला दिया करो

करती हो तुम दामाद की जितनी आवाभगत पकवान थोड़े हमको भी चखवा दिया करो 

बच्चों पर लुटाती हो जैसे लाड प्यार तुम ,
हम पर भी इनायत कभी फरमा दिया करो 

हम भी तुम्हारे शौहर हैं,कोई गैर तो नहीं ,
थोड़ी तवज्जो हम पर भी बरसा दिया करो

मदन मोहन बाहेती घोटू
पसंद अपनी अपनी ,ख्याल अपना-अपना 

मैं पत्नी से बोला तुम लगती अच्छी हो 
भोली भाली सीधी और मन की सच्ची हो  
तुम्हारा चेहरा खिलता हुआ गुलाब है 
तुम्हारे होठों में सबसे महंगी शराब है 
तुम्हारी चंचल आंखें बिजलियां गिराती है 
तुम्हारे गालों की रंगत मदमाती है 
तुम्हारी मुस्कान ,प्यार की परिभाषा है 
तुम्हारे शरीर को भगवान ने खुद तराशा है 
तुम्हारी चाल में हिरणी सी चपलता है 
तुम्हारी हर बात में अमृत बरसता है 
तुम कनक की छड़ी हो लेकिन कोमल हो 
तुम सुंदर अति सुंदर और चंचल हो 
तुम्हारा प्यार अनमोल है हीरे जैसा 
अब तुम मुझे बता दो मैं तुम्हें लगता हूं कैसा 
पत्नी बोली कि बतलाऊं मैं सच सच 
तुम बड़े प्यारे हो *आई लव यू वेरी मच *
तुम गोलगप्पे की तरह स्वाद से भरे हो 
तुम मन को ललचाते ,स्वादिष्ट दही बड़े हो 
पापड़ी चाट की तरह चटपटे और स्वाद हो 
मुंबई की भेलपूरी की तरह लाजवाब हो 
आलू टिक्की की तरह कुरकुरे और लजीज हो पाव भाजी की तरह मनभाती  चीज हो 
प्यार से भरा हुआ गरम गरम समोसा हो 
मन को सुहाता हुआ इडली और डोसा हो
मुझे ऐसे भाते हो जैसे बारिश में पकोड़े 
जलेबी से रस भरे पर टेढ़ेमेढ़े हो थोड़े 
रसगुल्ले गुलाबजामुन से मीठे और रसीले हो 
मूंग दाल हलवे की तरह पर थोड़े ढीले हो
रसीली इमरती की तरह सुंदर बल खाते हो 
आइसक्रीम की तरह जल्दी पिघल जाते हो राजस्थान का प्यार भरा दाल बाटी चूरमा हो 
मैं तुम्हें बहुत चाहती हूं तुम मेरे सूरमा हो 
अब आप समझ ही गए होंगे अपनी चाहत 
अलग अलग तरीके से प्रकट करते हैं सब 
अपने ढंग से अपना प्यार बतलाता है हर जना पसंद अपनी अपनी  ,ख्याल अपना अपना

मदन मोहन बाहेती घोटू 

गुरुवार, 13 जुलाई 2023

अपना अपना घर 

तुमने अपने मां-बाप का घर,
 जो कि तुम्हें अपना घर लगता था,
 एक दिन छोड़ दिया क्योंकि ,
 तुम्हें मेरे साथ मिलकर 
अपना घर बसाना था
 
हमारे बच्चों ने भी हमारा घर ,
जो कि उनका भी उतना ही अपना था 
शादी के बाद छोड़ दिया क्योंकि 
उन्हें अपने पत्नी के साथ 
अपना घर बसाना था

  ये अपना घर छोड़ने का सिलसिला ,
  सभी के साथ उम्र भर चलता है
  हम अपनापन भूल कर ,
  अपना घर छोड़ देते हैं  
  अलग से अपना घर बसाने को 

कितने ही अपने अक्सर
हो जाते है पराये क्योंकि 
उन्हें अपने ढंग से जीने के लिए,
अपना अलग अस्तित्व बनाना होता है 
  
  हमारा यह शरीर भी तो 
  हमारी आत्मा का अपना ही घर है 
  जिसे  एक दिन किसी और शरीर में
  अपना घर बसाने को,
अपना घर छोड़ कर जाना होता है

मदन मोहन बाहेती घोटू 


प्रार्थना 

जीर्णशीर्ण तन हुआ दिनोंदिन, बढी उम्र के साथ 
कई व्याधियों ने आ घेरा ,मचा रही उत्पात 
बहुत ही बिगड़ रहे हालात 
ठीक तुम कर दो दीनानाथ 

हरा-भरा मैं एक वृक्ष था, घना ,मनोहर, प्यारा 
कई टहनियां, कोमल पत्ते, लदा फलों से सारा 
नीड़ बनाकर पंछी रहते, चहका करते दिनभर और गर्मी की तेज धूप में ,छाया देता शीतल लेकिन ऐसा पतझड़ आया ,पीले पड़ गए पात बहुत ही बिगड़ रहे  हालात 
ठीक तुम कर दो दीनानाथ 

तने तने से सुंदर तन से ,गायब हुई लुनाई 
चिकने चिकने से गालों पर आज झुर्रियां छाई ढीले ढाले अंग पड़ गए ,रही नहीं तंदुरुस्ती 
यौवन वाला जोश ढल गया, ना फुर्ती ना चुस्ती 
कमर झुक गई थोड़ी-थोड़ी थके पांव और हाथ 
बहुत ही बिगड़ रहे हालात 
ठीक तुम कर दो दीनानाथ 

डॉक्टर कहते शुगर बढ़ गई ,किडनी करे न काम 
खानपान में मेरे लग गई ,पाबंदियां तमाम 
बढ़ा हुआ रहता ब्लडप्रेशर दिल का फंक्शन ढीला 
लीवर में भी कुछ गड़बड़ है, चेहरा पड़ गया पीला 
आंखों से धुंधला दिखता है ,पीड़ा देते दांत 
बहुत ही बिगड़ रहे हालात 
ठीक तुम कर दो दीनानाथ 

मोह माया में फंसा हुआ मन, चाहे लंबा जीना मौज और मस्ती खूब उड़ाना ,अच्छा खाना-पीना 
सच्चे दिल से करूं प्रार्थना तुमसे मैं भगवान 
ऐसी संजीवनी पिला दो ,फिर से बनूं जवान सवामनी परशाद चढ़ाऊं ,मैं श्रद्धा के साथ 
बहुत ही बदल रहे हालात 
ठीक तुम कर दो दीनानाथ

मदन मोहन बाहेती घोटू 

सोमवार, 10 जुलाई 2023

हम ,घड़ी के दो कांटे

मैं और मेरी पत्नी 
मैं घड़ी के छोटे कांटे जैसा, 
और वह घड़ी के बड़े कांटे जितनी 
वह जब चलती है 
बात का बतंगड़ बना देती है 
घड़ी के बड़े कांटे जैसी,
 एक घंटे में पूरी घड़ी का चक्कर लगा लेती है और मैं बड़े आराम से चलता हूं 
वही बात में पांच मिनट की दूरी में 
 कह दिया करता हूं 
 वह कभी चुप नहीं रह सकती 
 और दिन भर टिक टिक है करती 
 मैं एक आदर्श पति की तरह मौन रहता हूं 
 और दिन रात उसकी किच किच सहता हूं 
 फिर भी हम दोनों में है बहुत प्यार
 हम एक घंटे में मिल ही लेते हैं एक बार 
 कभी झगड़ा होता है तो हो जाते हैं आमने सामने 
पर हम दोनों एक दूसरे के लिए ही है बने 
बारह राशियों में बंटे हुए हैं 
 फिर भी एक धुरी पर टिके हुए हैं 
 और यह बात भी सही है 
 एक दूसरे के बिना हमारा अस्तित्व ही नहीं है

मदन मोहन बाहेती घोटू 


अतुल सुनीता परिणय उत्सव पर 
1
अतुल सुनीता व्याह को, बीते पैंतीस साल 
जोड़ी है अति सुहानी ,सबसे मृदु व्यवहार 
सबसे मृदु व्यवहार ,लुटाते प्रेम सभी पर 
सबसे हंस कर मिलते, देते खुशियां जी भर 
इनके अपनेपन ने सबका हृदय छुआ है 
जियें सैकड़ों साल, हमारी यही दुआ है 
2
कार्यकुशल कर्मठ अतुल ,मनमौजी है मस्त सुनीता है ग्रहणी कुशल ,गुण से भरी समस्त 
गुण से भरी समस्त ,धार्मिक संस्कार है 
पूरे परिवार का इनको सदा ख्याल है 
कार्तिकेय है पुत्र, शिवांगी प्यारी बिटिया 
ईश्वर दे इन सब को दुनिया भर की खुशियां

मदन मोहन बाहेती घोटू 
जोड़ियां 

भगवान की महिमा अपरंपार है 
उसे जोड़ी बनाने से प्यार है 
उसने जब हमारा शरीर रचा 
तो जोड़ी बनाने का ख्याल रखा 
दो आंखें दी ,जोड़ी से 
दो कान दिए, जोड़ी से 
दो हाथ दिए ,जोड़ी से 
दो पांव दिए ,जोड़ी से 
यही नहीं पति-पत्नी की जोड़ी भी,
भगवान द्वारा ही बनाई जाती है 
जो जीवन भर जुड़ी रहकर साथ निभाती है 
पर कई बार यह बात देखने में आती है 
भगवान द्वारा कभी-कभी बेमेल जोड़ी भी बन जाती है 
पर इनमें कुछ तो समय के साथ हो जाती है एडजस्ट 
मगर कुछ को साथ साथ रहने में होता है कष्ट जब इनमें आपस में नहीं पट पाती है 
तो यह जोड़ियां चटक जाती है 
और जब बढ़ता है वाद-विवाद 
तो फिर कुछ दिनों के बाद 
जब तलाक की नौबत आती है 
तो भगवान की बनाई जोड़ियां भी टूट जाती है वैसे इंसान भी बनाता है कुछ जोड़ी 
जो अकेली नहीं जा सकती है छोड़ी 
जैसे जूते की जोड़ी 
अकेला जूता अपनी किस्मत पर रोता है
किसी नेता पर फेंकने के अलावा,
किसी काम का नहीं होता है
और भी जोड़ियां है जैसे साइकिल या बैलगाड़ी के पहियों की जोड़ी 
अकेली किसी भी काम की नहीं निगोडी
कुछ और भी जोड़ियां है जैसे टेबल टेनिस की बॉल और बेट
बैडमिंटन की शटल कॉक और रैकेट 
ये एक दूसरे के बिना अस्तित्वहीन है 
आप मुझसे सहमत होंगे, मुझे यकीन है 
वैसे कुछ खाने-पीने की जोड़ी भी इंसान बनाता है जब साथ-साथ खाते हैं तो दूना मजा आता है जैसे जलेबी और समोसा 
इडली और डोसा 
जब साथ साथ रहते हैं 
बड़ा स्वाद देते हैं 
जैसे बड़ा और पाव या पाव और भाजी 
अकेले खाकर कौन होता है राजी 
जैसे पानी और पताशा 
जब एक दूसरे में समाते हैं 
तभी जिव्हा को भाते हैं 
जेसे दही और बड़े 
जब जोड़ी में मिलते हैं तभी लगते हैं स्वाद बड़े जैसे चाय और पकौड़ी 
बारिश में साथ मिल जाए तो नहीं जाती है छोड़ी या गर्मी में कुल्फी और फलूदा
अच्छे नहीं लगते जब होते हैं जुदा
जैसे छोला और भटूरा 
एक दूसरे के बिना जिनका स्वाद है अधूरा  
जैसे बिहार की लिट्टी और चोखा 
दोनों मिलकर साथ देते हैं स्वाद अनोखा
तरह तरह की जोड़ियां खाने में मजा आता है 
पर आम आदमी दाल और रोटी की जोड़ी से ही काम चलाता है

मदन मोहन बाहेती घोटू 

शनिवार, 8 जुलाई 2023

जब से तुझ से नजर लड़ गई

जब से तुझ से नजर लड़ गई 
सीधे दिल में आई, गढ़ गई 
तू मुस्काई ,मैं मुस्काया ,
धीरे-धीरे बात बढ़ गई 

प्यार हमारा चुपके-चुपके,
पनपा और हो गया विकसित 
एक दूसरे से जब मिलते,
हम दोनों होते रोमांचित 
मनभावन था मिलन हमारा,
और प्रीत परवान चढ़ गई 
जब से तुझ से नजर लड़ गई 
  
हुई लड़ाई जब नयनों में ,
दोस्त बन गए अपने दो दिल
लगी महकने जीवन बगिया,
गई प्यार की कलियां है खिल 
तुझसे मिलने की अकुलाहट ,
बेचैनी दिन-रात बढ़ गई 
जब से तुझ से नजर लड़ गई

घोटू 
मुनासिब नहीं है 

अदाएं दिखाकर बनाना दीवाना 
तरसा के हमको यूं ही बस सताना 
हर एक बात पर फिर बहाना बनाना 
किसी भी तरह से यह वाजिब नहीं है

 कभी रूठ जाना, कभी फिर मनाना 
 अपने इशारों पर हमको नचाना 
 होकर खफा तीखे तेवर दिखाना 
 दिल तोड़ देना ,मुनासिब नहीं है 
 

चोरी छुपे फिर मिलना मिलाना 
कहना हमेशा ,हमे ना ना ना ना 
तड़पता हमें देख कर मुस्कुराना 
उल्फत उसूलों मुताबिक़ नहीं है

कभी प्यार से हमसे नजरें मिलाना
कभी फिर खफा हो के नजरें चुराना 
छोटी सी बातें ,फसाना बनाना 
तुम्हारे तरीके ये वाजिब नहीं है

घोटू 

रविवार, 2 जुलाई 2023

मारा मारी

मैं बेचारा आफत मारा 
हरदम रहा शराफत मारा 
अब हूं बड़ी मुसीबत मारा 
और फिरता हूं मारा मारा 

बचपन में था प्यार का मारा 
सबके लाड दुलार का मारा 
लेकर छड़ी गुरु ने मारा 
थप्पड़ पापा जी ने मारा 

आई जवानी जोश ने मारा 
गुस्सा और आक्रोश ने मारा 
बीवी से तकरार ने मारा 
मुझको शिष्टाचार ने मारा 

नजरों के बाणों से मारा 
कुछ तीखे तानों से मारा 
हुई जुदाई गम ने मारा 
कुछ बदले मौसम ने मारा 

मैं कुर्सी और पद का मारा 
बहुत रौब करता था मारा 
मगर वक्त ने ऐसा मारा 
अब हूं बेकारी का मारा 

करते थे जो मक्खन मारा 
उन्हें अब कर लिया किनारा 
यारों की यारी का मारा 
अब मैं करता हूं झक मारा 

इश्क में बेवफाई ने मारा 
उनकी रुसवाई ने मारा 
थोड़ा तनहाई ने मारा 
बढ़ती महंगाई ने मारा 

कभी हाथ था लंबा मारा 
चौका मारा, छक्का मारा 
तीर कभी तो तुक्का मारा 
पर किस्मत ने मुक्का मारा 

वृद्ध हुआ ,लाचारी मारा
कितनी ही बीमारी मारा 
फिर भी जिम्मेदारी मारा 
रोज की मारा मारी मारा 

मैं बेचारा आफत मारा 
फिरता हूं अब मारा मारा

मदन मोहन बाहेती घोटू 

शनिवार, 1 जुलाई 2023

ग़ज़ल 

बस्ती में भरे बबूलो की 
तुम चाह कर रहे फूलों की 
ऊपर ,नीचे ,दाएं, बाएं,
हर तरफ चुभन है फूलों की 
झुलसाती लू में करते हो,
आशा सावन के झूलों की
 डिस्को का डांस नहीं होता,
 महफिल में लंगड़े लूलों की 
 जब स्वार्थ सिद्ध हो जाता है,
 चढ़ जाती बली उसूलों की 
 "घोटू" मिल जाती हमें सजा ,
 जीते जी अपनी भूलों की

घोटू 
साठ के पार 

साठ बरस की उम्र एक ऐसा पड़ाव है 
जब बुढ़ापा आता दबे पांव है 
पर आदमी जब होता है पिचोहत्तर के पार 
तब खुल्लम-खुल्ला बनता है उम्र का त्यौहार अनुभव की गठरी साथ होती है 
तब बूढ़ा होना गर्व की बात होती है 
भले ही बालों में सफेदी हो या झुर्रियां हो तन में 
मैंने एक अच्छा जीवन जिया है ,संतोष होता है मन में 
लेकिन जब धीरे-धीरे उम्र और बढ़ती जाती है 
उम्र जन्य कई बीमारियां हमें सताती है 
तन में शिथिलता व्याप्त होती है 
थोड़ी थोड़ी याददाश्त खोती है 
फिर भी लंबा जीने की तमन्ना बढ़ती जाती है 
जैसे बुझने के पहले दीपक की लौ फड़फड़ाती है
नहीं छूटती है माया मोह और आसक्ति 
जब की उम्र होती है करने की ईश्वर की भक्ति सचमुच को होता है बड़ा अचंभा 
आदमी बुढ़ापे से तौबा करता है,
 फिर भी चाहता है जीना लंबा

मदन मोहन बाहेती घोटू 
बुढ़ापे का आलम 

आजकल अपने बुढ़ापे का यह आलम है 
नींद तो आती कम है 
तरह तरह के ख्याल आते है
 ख्याल क्या बवाल आते हैं 
 पुराने जमाने की हीरोइने सारी 
 याद आती है बारी बारी
 जैसे कल ही मैंने सपने में देखा 
 सजी-धजी सी *उमरावजान की रेखा *
 मुझको लुभा रही थी 
 वो गाना गा रही थी 
 *दिल चीज क्या है आप मेरी जान लीजिए *
 *बस एक बार मेरा कहा मान लीजिए*
  मेरी हो रही थी फजीहत 
  उसका कहा मानने की बची ही कहां है हिम्मत 
उसकी मांग जबरदस्त थी
  पर मेरी हिम्मत पस्त थी 
  मैंने झट चादर से अपना मुंह ढक डाला 
  तभी सामने आ गई *संगम की वैजयंतीमाला* 
उसका रूप था बड़ा सुहाना 
 और वह शिकायत भरे लहजे में गा रही थी गाना 
*मैं का करूं राम मुझे बुड्ढा मिल गया *
 सकपकाहट से मेरा मुंह सिल गया 
 मैं घबराया , शरमाया, सकुचाया
 कुछ भी नहीं बोल पाया 
 मैंने अपने ध्यान को इधर उधर भटकाया 
 पर सुई थी वही पर गई अटक 
 और मेरे सामने *पाकीजा की मीना कुमारी *हो गई प्रकट 
 और मुझे देख कर मुस्कुराने लगी 
 और मुझको चिढ़ाने लगी
  *ठाड़े रहियो ओ बांके यार *
  *मैं तो कर लूंगी थोड़ा इंतजार *
  मैंने कहा मैडम 
  इन हड्डियों में नहीं बचा है इतना दम 
 जवानी वाले हालात नहीं है 
ज्यादा देर तक खड़े रहना मेरे बस की बात नहीं है 
झेल कर इस तरह की मानसिक यातना 
मेरा मन हो जाता है अनमना 
मैं होने लगता हूं विचलित 
ऊपर से पूछती है *खलनायक की माधुरी दीक्षित* 
*चोली के पीछे क्या है *
*चुनरी के नीचे क्या है *
अब आप ही बताइए 
मुझे से खेले खाये खिलाड़ी से यह पूछना कहां तक है उचित 
यह सब है बुढ़ापे का त्रास 
मुझे लगता है सब उड़ाती है मेरा उपहास
इसलिए आजकल खाने लगा हूं 
बाबा रामदेव का च्यवनप्राश

मदन मोहन बाहेती घोटू 
भगवान से सीधी बात 

भगवान मुझे तू बतला दे अब क्या है तेरे एजेंडे में 
मेरी सारी अर्जी को तू, रख देता बस्ते ठंडे में 

तू तो है सबका परमपिता ,और मैं भी तेरा बच्चा हूं
थोड़ा जिद्दी हूं नटखट हूं लेकिन मैं मन का सच्चा हूं 
जो भी मेरी जरूरत होगी पापा से ही मनवाऊंगा 
पीछे पड़ करके जिद अपनी, सारी पूरी करवाऊंगा 
 तुझको पूरा करना होगा 
 मेरी झोली भरना होगा 
 मैं नहीं आऊंगा कैसे भी आश्वासन के हथकंडे में 
भगवान मुझे तू बतला दे अब क्या है तेरे एजंडे में
 
 ना मेरे पास पता तेरा, ना ही है मोबाइल नंबर अपनी ईमेल आईडी दे ,फिर चैट करूंगा मैं जी भर 
 मैं सभी समस्या का अपनी, तुझसे निदान करवाऊंगा 
और स्वीगी और जोमैटो से ,तुझ पर प्रसाद चढ़वाऊंगा 
मैं डायरेक्ट अपनी मांगें
रख दूंगा सब तेरे आगे 
विश्वास रहा ना अब मेरा तेरे पंडित या पंडे में भगवान मुझे तू बतला दे ,अब क्या है तेरे एजेंडे में

तेरी पूजा सेवा पानी ,करते यह जीवन गया गुजर 
तूने सुख मुझको भी बहुत दिए और दुख भी बांटे रह रहकर 
यह बचाकुचा जितना जीवन, हंसकर तू सुख से जीने दे 
अब नहीं बीमारी कोई रहे ,मनचाहा खाने पीने दे 
जपते जपते मैं राम नाम 
आ पहुंचूं तेरे पुण्य धाम 
बस दे देना तू मोक्ष मुझे, ना फंसू चौरासी फंदे में 
भगवान मुझे तू बतला दे कि क्या है तेरे एजेंडे में

मदन मोहन बाहेती घोटू

गुरुवार, 29 जून 2023

बूढ़ा बंदर 

वह छड़ी सहारे चलती है, 
मैं भी डगमग डगमग चलता 
फिर भी करते छेड़ाखानी, 
हमसे न गई उच्छृंखलता  

याद आती जब बीती बातें,
हंसते हैं कभी हम मुस्कुराते 
भूले ना भुलाई जाती है ,
वह मधुर प्रेम की बरसाते 
मन के अंदर के बंदर में ,
फिर से आ जाती चंचलता 
वो छड़ी सहारे चलती है ,
मैं भी डगमग डगमग करता 

आ गया बुढ़ापा है सर पर 
धीरे-धीरे बढ़ रही उमर 
लेकिन वो जवानी के किस्से 
है मुझे सताते रह-रहकर 
वह दिन सुनहरे बीत गए, 
रह गया हाथ ही मैं मलता 
वो छड़ी सहारे चलती है ,
मैं भी डगमग डगमग करता 

मुझको तड़फा ,करती पागल 
ये प्यार उमर का ना कायल
उसकी तिरछी नजरें अब भी,
कर देती है मुझको घायल 
कोशिश नियंत्रण की करता ,
बस मेरा मगर नहीं चलता
वो छड़ी सहारे चलती है,
मैं भी डगमग डगमग चलता 

हम दो प्राणी ,सूना सा घर 
एक दूजे पर हम हैं निर्भर 
है प्यार कभी तो नोकझोंक 
बस यही शगल रहता दिनभर 
वह चाय बनाकर लाती है ,
और गरम पकोड़े मैं तलता 
वो छड़ी सहारे चलती है,
मैं भी डगमग डगमग करता

मदन मोहन बाहेती घोटू 
ग़ज़ल

मेरा स्वप्न पूरा हुआ चाहिए बस 
मुझे दोस्तों की दुआ चाहिए बस 
मेरी जिंदगी में जो ला दे बहारें, 
हसीं ऐसी एक दिलरुबा चाहिए बस 
उसकी मुलायम नरम उंगलियों से,
हाथों को मेरे ,छुआ चाहिए बस 
आंखों में बिजली, गालों पर लाली,
 हंसी चेहरे पर सदा चाहिए बस 
 मस्ती से खेऊंगा जीवन की किश्ती,
 मौसम जरा खुशनुमा चाहिए बस 
 हर एक मुसीबत में हिम्मत बंधा दे,
 "घोटू" मेहरबां खुदा चाहिए बस

मदन मोहन बाहेती घोटू 

रविवार, 25 जून 2023

नए-नए चलन 

आजकल बड़े अजीब अजीब चलन चल गए हैं रोज नए नए फैशन बदल रहे हैं 
लोग परिवार के साथ समय  में मजा नहीं पाते हैं कहीं किसी के साथ जाकर *क्वालिटी टाइम* बिताते हैं 
घर की रोटी दाल का बवाल इन्हे नहीं सुहाता है बाहर होटल में *फाइन डाइनिग* में जाने में मजा आता है 
छुट्टियां गुजारना अच्छा नहीं लगता अपनों के बीच में 
जाकर *चिल* करते हैं गोवा के *बीच* में 
फैशन का भूत ऐसा सर पर चढ़ रहा है 
फटे हुए *जींस* पहनने का रिवाज़ बढ़ रहा है 
ढीले ढाले *ओवरसाइज टॉप* पहनने का चलन में है 
चोली की पट्टी दिखाते रहना फैशन में है 
पश्चिम सभ्यता अपनाने का यह अंजाम हो गया है *लिविंग इन रिलेशनशिप* में रहना आम हो गया है आजकल *वर्किंग कपल* घर पर खाना नहीं पकाते हैं 
*स्वीगी* को फोन कर खाना मंगाते हैं 
या दो मिनट की  *मैगी नूडल* से काम चलाते हैं आजकल चिट्ठी पत्री का चलन बंद है 
मोबाइल पर मैसेज देना सबको पसंद है 
आदमी मोबाइल सिरहाने रख कर सोता है 
बच्चे के हाथ में झुनझुना नहीं *मोबाइल* होता है
कानों पर चिपका रहता है मोबाईल रात दिन
 सारे काम होने लगे हैं* ऑनलाइन*
 अब आदमी लाइन में नहीं लगता,पर *ऑन लाइन *जीता है
 जानें हमे कहां तक ले जाएगी,ये आधुनिकता है

मदन मोहन बाहेती घोटू
फेरे में 

मैं होशियार हूं पढ़ी लिखी,
 सब काम काज कर सकती हूं ,
 तुम करके काम कमा लाना ,
 मैं भी कुछ कमा कर लाऊंगी 
 
हम घर चलाएंगे मिलजुल कर,
 तुम झाड़ू पोंछा कर लेना, 
 रोटी और दाल पका लेना,
 पर छोंका में ही लगाऊंगी 
  
तुमने थी मेरी मांग भरी ,
लेकर के रुपैया चांदी का ,
उसके बदले अपनी मांगे,
 हरदम तुमसे मनवाऊंगी
 
तुमने बंधन में बांधा था ,
पहना के अंगूठी उंगली में,
 उंगली के इशारे पर तुमको ,
 मैं जीवन भर नचवाऊंगी 
 
अग्नि को साक्षी माना था 
और तुमने दिये थे सात वचन,
उन वचनों को जैसे तैसे ,
जीवन भर तुमसे निभवाऊंगी 

तुमने थे फेरे सात लिए 
और मुझको लिया था फेरे में,
 घेरे में मेरे फेरे के 
 चक्कर तुमसे कटवाऊंगी

मदन मोहन बाहेती घोटू 
दृष्ट सहस्त्र चंद्रो 

मैंने इतने पापड़ बेले, तब आई समझदारी मुझ में 
दुनियादारी की परिभाषा, अब समझ सका हूं कुछ-कुछ में 

जब साठ बरस की उम्र हुई ,सब कहते थे मैं सठियाया 
और अब जब अस्सी पार हुआ ,कोई ना कहता असियाया 
मैंने जीवन में कर डाले, एक सहस्त्र चंद्र के दर्शन है 
अमेरिका का राष्ट्रपति ,मेरा हम उम्र वाइडन है 
है दुनिया भर की चिंतायें ,फिर भी रहता हरदम खुश मैं 
दुनियादारी की परिभाषा ,अब समझ सका हूं कुछ कुछ मैं 

चलता हूं थोड़ा डगमग पर, है सही राह का मुझे ज्ञान 
तुम्हारी कई समस्याओं, का कर सकता हूं समाधान 
नजरें कमजोर भले ही हो ,पर दूर दृष्टि में रखता हूं 
अब भी है मुझ में जोश भरा, फुर्ती है ,मैं ना थकता हूं
मेरे अनुभव की गठरी में ,मोती और रत्न भरे कितने 
दुनियादारी की परिभाषा, अब समझ सका हूं कुछ-कुछ मैं

लेकिन यह पीढ़ी नई-नई ,गुण ज्ञान पारखी ना बिल्कुल 
लेती ना लाभ अनुभव का , मुझसे ना रहती है मिलजुल 
मेरी ना अपेक्षा कुछ उनसे ,उल्टा में ही देता रहता 
वो मुझे उपेक्षित करते हैं, मैं मौन मगर सब कुछ सहता 
सच यह है अब भी बंधा हुआ, मैं मोह माया के बंधन में 
दुनियादारी की परिभाषा ,अब समझ सका हूं कुछ-कुछ मैं

मदन मोहन बाहेती घोटू 

बुधवार, 21 जून 2023

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सुनहरे सपने 

मैं एक वृद्ध, बूढ़ा, सीनियर सिटीजन 
एक ऐसा चूल्हा खत्म हो गया हो जिसका इंधन 
पर बुझी हुई राख में भी थोड़ी गर्मी बाकी है 
ऐसे में जब कोई हमउम्र बुढ़िया नजर आती है 
उसे देख उल्टी गिनती गिनने लगता है मेरा मन 
ये कैसी दिखती होगी ,जब इस पर छाया रहा होगा यौवन
इसके ये सफेद बाल ,कभी सावन की घटा से लहराते होंगे 
इसके गाल गुलाबी होते होंगे, जुलम ढाते होंगे 
तना तना, कसा कसा बदन लेकर जब चलती होगी 
कितनों के ही दिलों में आग जलती होगी 
आज चश्मे से ढकी आंखें ,कभी चंचल कजरारी होती होंगी 
प्यार भरी जिनकी चितवन कितनी प्यारी होती होगी 
जिसे ये एक नजर देख लेती होगी वो पागल हो जाता होगा 
कितने ही हसीन ख्वाबों में खो जाता होगा  
देख कर इस की मधुर मधुर मुस्कान 
कितने ही हो जाया करते होंगे इस पर कुर्बान और जब यह हंसती होगी फूल बरसते होंगे इसकी एक झलक पाने को लोग तरसते होंगे इसकी अदाएं हुआ करती होगी कितनी कातिल 
मोह लिया करती होगी कितनों का ही दिल 
इसे भी अपने रूप पर नाज होता होगा 
बड़ा ही मोहक इसका अंदाज होता होगा 
जिस गुलशन का पतझड़ में भी ऐसा अच्छा हाल 
तो जब बसंत रहा होगा तो होगा कितना कमाल 
खंडहर देखकर इमारत की बुलंदी की कल्पना करता हूं 
और आजकल इसी तरह वक्त गुजारा करता हूं 
कभी सोचता हूं काश मिल जाती ये जवानी में 
तो कितना ट्विस्ट आ जाता मेरी कहानी में 
जाने कहां कहां भटकता रहता है मन पल पल 
वक्त गुजारने के लिए यह है एक अच्छा शगल 
फिर मन को सांत्वना देता हूं कि काहे का गम है 
तेरी अपनी बुढ़िया भी तो क्या किसी से कम है

मदन मोहन बाहेती घोटू 

गुरुवार, 15 जून 2023

बुढ़ापा कैसा होता है 

आदमी हंसता तो कम है आदमी ज्यादा रोता है 
बुढ़ापा कैसा होता है ,बुढ़ापा ऐसा होता है 

नज़र से थोड़ा कम दिखता ,बदन में है सुस्ती छाती 
कदम भी डगमग करते हैं ,नींद भी थोड़ा कम आती 
जलेबी ,रबड़ी और लड्डू ,देखकर ललचाता है दिल
बहुत मन करता खाने को, पचाना पर होता मुश्किल 
परेशां रहता है अक्सर, चैन मन अपना खोता है 
बुढ़ापा कैसा होता है ,बुढ़ापा ऐसा होता है 

बसाते बेटे अपना घर ,जब उनकी हो जाती शादी 
बेटियों को हम ब्याह देते हैं ,चली ससुराल वो जाती 
अकेले रह जाते हैं हम, बड़ी मुश्किल से लगता मन 
वक्त काटे ना कटता है ,खटकता है एकाकीपन 
बच्चों का व्यवहार भी न पहले जैसा होता है 
बुढापा कैसा होता है , बुढापा ऐसा होता है

उजड़ने लगती है फसलें, माथ पर काले बालों की 
दांत भी हिलने लगते हैं ,न रहती रौनक गालों की 
कभी ब्लड प्रेशर बढ़ जाता , कभी शक्कर बढ़ जाती है 
बिमारी कितनी ही सारी ,घेर कर हमें सताती है 
बदलते हालातों से हम ,किया करते समझौता है 
बुढ़ापा कैसा होता है ,बुढ़ापा ऐसा होता है 

मदन मोहन बाहेती घोटू
आशीर्वाद
1
मैंने गुरु सेवा करी ,बहुत लगन के साथ 
हो प्रसन्न गुरु ने कहा, मांगो आशीर्वाद 
मांगो आशीर्वाद ,कहा प्रभु दो ऐसा वर 
सुख और शांति मिले ,मुझे पूरे जीवन भर 
कहा तथास्तु गुरु ने , मैं प्रसन्न हो गया 
पाया आशीर्वाद गुरु का धन्य हो गया 
2
लेकिन फिर ऐसा हुआ कुछ कुछ मेरे साथ 
शादी की बातें चली ,बनी नहीं पर बात 
बनी नहीं पर बात,दुखी मन मेरा डोला 
गया गुरु के पास, शिकायत की और बोला 
गुरुवर फलीभूत ना आशीर्वाद तुम्हारा 
सुखी नहीं में दुखी ,अभी तक बैठा कुंवारा
3
गुरु बोले शादी करो ,खो जाता है चैन
पत्नी की फरमाइशें, लगी रहे दिन रेन
लगी रहे दिन रेन ,रोज की होती किच-किच
 सास बहू के झगड़े में इंसां जाता पिस
 मेरे वर ने रोक रखी तेरी बरबादी 
सुख शांति से जी, या फिर तू कर ले शादी

मदन मोहन बाहेती घोटू 
कैसे अपना वक्त गुजारूं

हंसी खुशी से मौज मनाते, अभी तलक जीवन जिया है 
यही सोचता रहता मैंने ,क्या अच्छा ,क्या बुरा किया है 
बीती यादों के बस्ते पर, धूल चढ़ी ,कब तलक बुहारूं
कैसे अपना वक्त गुजारूं

करने को ना काम-धाम कुछ, दिन भर बैठा रहूं निठल्ला 
कब तक टीवी रहूं देखता ,मन बहलाता रहूं इकल्ला 
इधर-उधर अब ताक झांक कुछ ,करने वाली नजर ना रही 
मौज और मस्ती सैर सपाटा ,करने वाली उमर ना रही 
लोग क्या कहेंगे, करने के पहले , सोचूं और विचारूं
कैसे अपना वक्त गुजारूं

पहले वक्त गुजर जाता था ,पत्नी से तू तू मैं मैं कर 
अब पोते पोती सेवा में ,वह रहती है व्यस्त अधिकतर 
झगड़े की तो बात ही छोड़ो ,उसे प्यार का वक्त नहीं है 
बाकी समय भजन कीर्तन में, वह मुझसे अनुरक्त नहीं है 
भक्ति भाव का भूत चढ़ा है ,उस पर ,कैसे उसे उतारूं 
कैसे अपना वक्त गुजारूं

अब तो बीती,खट्टी मीठी ,यादें ही है एक सहारा 
बार-बार जिनको खंगाल कर,करता हूं मैं वक्त गुजारा 
मित्रों के संग गपशप करके, थोड़ा वक्त काट लेता हूं 
दबी हुई भड़ास ह्रदय की, सबके साथ बांट लेता हूं 
एकाकीपन में जो बहती ,कैसे अश्रु धार संभालू 
कैसे अपना वक्त गुजारूं

मदन मोहन बाहेती घोटू 

रविवार, 11 जून 2023

मामूली आदमी 

मैं एक मामूली आदमी हूं
पहले मैं खुद को आम आदमी कहता था 
संतोषी और सुखी रहता था 
पर जब से केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी बनाई है 
आम आदमी बनने का नाटक कर ,
आम आदमी की खिल्ली उड़ाई है 
कहीं आम आदमी की,अपने घर को 
सुधारने के लिए छियांलिस करोड़ रुपए
खर्च करने की औकात होती है 
पर इन नेताओं की अलग ही जात होती है 
गले में मफलर डालने भर से 
कोई आम आदमी नहीं बन जाता 
पर जनता को बरगलाने के लिए ,
यह नाटक है किया जाता 
यूं भी आजकल आम के दाम 
छू रहे हैं आसमान 
आम खाना, आम आदमी की पहुंच से 
बाहर हो रहा है 
इसलिए आम आदमी ,आम आदमी नहीं रहा है 
आजकल आम आदमी की पहुंच में है मूली इसलिए आम आदमी ,बन गया है मामूली 
मेरी औकात भी मूली पर आकर है थमी 
और मैं बन गया हूं मामूली आदमी 

मदन मोहन बाहेती घोटू 

शनिवार, 10 जून 2023

विचार गंगा

 हम शब्दों को छू ना पाते, शब्द हमें छू जाते हैं दृष्टिकोण अलग होता है, पास सभी के आंखें हैं
 
करनी तो सब ही करते हैं,लेकिन करनी करनी में, 
फर्क बहुत होता,जीवन में जिससे सुख दुख आते हैं 
आती हमें नजर है झट से, क्या कमियां है औरों में
 लेकिन अपनी कमियों को हम, कभी देख ना पाते हैं 
सब हमें पता है ,तुम्हें पता है ,सबको जाना है एक दिन ,
लंबे जीवन की आशा में ,हम खुद को बहलाते हैं

हमें जिंदगी बस गुजारनी नहीं ,जिंदगी जीनी है,
नहीं गटागट, घूंट घूंट जो पीते ,मजा उठाते हैं

अपनीअपनी पड़ी सभी को, दुख में साथ नहीं देते 
रिश्ते ,नाते ,प्यार वफ़ा सब ,यह तो कोरी बातें हैं

 सबको है मालूम ,साथ में कुछ भी ना जाने वाला
 लेकिन मोह माया बंधन में हम बंधते ही जाते हैं

मदन मोहन बाहेती घोटू 

सोमवार, 5 जून 2023

मोदी ही मोदी 
1
न रुदबा बचा है , न कुर्सी ,कमीशन,
 परेशान है सारे नेता विरोधी 
 सत्ता में आया है जब से ये मोदी, 
 उसने तो उनकी है लुटिया डुबो दी 
 पड़े लाले, घोटाले वालों के सारे ,
 आये हाशिए पर ,है पहचान खो दी 
 इधर देखो मोदी, उधर देखो मोदी 
 देश और विदेशों में मोदी ही मोदी  
 2
गरीबों को छत दीऔर भूखों को राशन
 घर घर में बिजली, किये काम अनगिन 
 बिछा जाल सुंदर सुहानी सड़क का ,
 पूरब से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण 
 हरे क्षेत्र में बढ़ रहे हम हैं आगे ,
 तरक्की मेरा देश करता दिनों दिन 
 विदेशों में भारत का डंका बजा है ,
 अगर जो है मोदी, सभी कुछ मुमकिन

मदन मोहन बाहेती घोटू 

रविवार, 4 जून 2023

जीने की चाहत 

मुझे जिंदगी से मोहब्बत हुई है 
अधिक लंबा जीने की चाहत हुई है 

बिमारी ने लंबी ,किया मुझको बेकल 
घिरने लगे थे निराशा के बादल 
मगर खेरख्वाओं ने हिम्मत बढ़ाई 
किरण रोशनी की मुझे दी दिखाई 
सुधर फिर से अच्छी सी सेहत हुई है 
मुझे जिंदगी से मोहब्बत हुई है 

मेरा ख्याल रखती मेरी हमसफर है 
आसां हुई जिंदगी की डगर है 
कदम मेरे अब ना रहे डगमगा है 
नया आत्मविश्वास मुझ में जगा है 
बड़े अच्छे मित्रों की संगत हुई है 
मुझे जिंदगी से मोहब्बत हुई है 

दुआओं ने सबकी असर यह दिखाया 
बुझा था जो चेहरा ,वह फिर मुस्कुराया 
फिर से नया जोश ,जज्बा मिला है 
पुराना शुरू हो गया सिलसिला है 
बुलंद हौसला और हिम्मत हुई है 
मुझे जिंदगी से मोहब्बत हुई है 

सोये थे अरमान ,सब जग गए हैं 
उड़ूं आसमां में अब पर लग गए हैं 
तमन्ना है सारे मजे मैं उठा लूं 
सभी खुशियां जीवन की ख़ुद में समालू  
ललक मौज मस्ती की जागृत हुई है 
मुझे जिंदगी से मोहब्बत हुई है

मदन मोहन बाहेती घोटू 

मंगलवार, 30 मई 2023

तू तू मैं मैं 

अगर काटना है यह जीवन जो मस्ती में 
बहुत जरूरी पति-पत्नी में तू तू मैं मैं 

तू तू मैं मैं ना होगी, तकरार ना होगी 
जीत किसी की और किसी की हार न होगी 
नहीं रूठना होगा और ना मान मनौव्वल
होगा प्यार ही प्यार अगर जीवन में केवल 
मजा ना देगी ,भरी मिठाई , थाली पूरी 
स्वाद चाहिए ,संग होना, नमकीन जरूरी 
इसी तरह यदि बीच प्यार के, हो जो झगड़ा 
देता है जीवन में सुख को और भी बढ़ा 
बिन लड़ाई के ये जीवन है सूना सूना 
लड़कर प्यार करो ,आनंद आता है दूना
लड़ती है जबआंखें, होता तभी प्यार है 
बिन पतझड़ के कभी नहीं आती बहार है
नहीं एकरसता चाहते हो यदि जीवन में 
बहुत जरूरी ,पति-पत्नी में ,तू तू मैं मैं

मदन मोहन बाहेती घोटू
जवानी फिर से मिल जाए 

बीते हुए जवान दिनों की जब आती है याद 
दोनों हाथ उठा ईश्वर से करता में फरियाद 
ऐसा चमत्कार दिखला दो भगवान अबकी बार 
सूख रहा यह गुलशन फिर से हो जाए गुलजार 
मुरझाए इस दिल की कलियां फिर से खिल जाए 
 भगे बुढ़ापा दूर जवानी फिर से मिल जाए 

तन की सुस्ती हटे और फिर चुस्ती आ जाए 
नहीं रहे वीरानापन और मस्ती आ जाए 
तन में जोश भरे ,चेहरे पर ऐसी रंगत आय
साथ हसीनों का फिर से में कर पाऊं इंजॉय 
वह मुझको मिल जाए हमेशा जिस पर दिलआए 
भगे बुढ़ापा दूर ,जवानी फिर से मिल जाए

मदन मोहन बाहेती घोटू 
कन्यादान वरदान 

खत्म हुई शादी की धूम धाम 
उपहारों का आदान-प्रदान 
मनाने को हनीमून 
दूल्हा और दुल्हन 
चले गए हिल स्टेशन 
एक दिन लड़का लड़की के मां-बाप 
डिनर पर बैठे साथ-साथ 
कर रहे थे वार्तालाप 
लड़की की मां ने कहा, हमने अपनी प्यारी 
नाज़ों से पाली 
बेटी का कर दिया है कन्यादान 
हमें विश्वास है आप रखेंगे उसका ध्यान 
लड़के की मां ने कहा, आपने किया है कन्यादान तो हमने भी किया है वर का दान 
हमारा बेटा अब हमारे हाथ से निकल जाएगा अपनी बीवी की सुनेगा और उसके गुण गाएगा 
अपनी पत्नी के इशारों पर नाचेगा 
हमारी ओर ध्यान कब देगा 
आजकल 
नव युगल 
अपनी जिंदगी अपने ढंग से,
 मनाने को होते हैं बेकल 
 हमारा लाडला 
 पराया है हो चला 
 आज नहीं तो कल ,
 बना लेगा अपना अलग घोंसला 
 हमारा घर छोड़ कर उड़ जाएगा 
 अपनी दुनिया अपने ढंग से बसायेंगा 
 शायद यही सोचकर ,
 आपने पहले से ही इंतजाम कर दिया है 
एक फ्लैट दहेज में बेटी के नाम कर दिया है 
हमारा आशिर्वाद
हमेशा है उनके साथ 
वे जहां भी रहे ,जैसे भी रहे ,फले फूले 
पर अपने मां बाप को ना भूले 
यही तसल्ली क्या कम है हमारे लिए 
वे भी चैन से जिए और हम भी चैन से जिएं

मदन मोहन बाहेती घोटू 

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