ग़ज़ल
बस्ती में भरे बबूलो की
तुम चाह कर रहे फूलों की
ऊपर ,नीचे ,दाएं, बाएं,
हर तरफ चुभन है फूलों की
झुलसाती लू में करते हो,
आशा सावन के झूलों की
डिस्को का डांस नहीं होता,
महफिल में लंगड़े लूलों की
जब स्वार्थ सिद्ध हो जाता है,
चढ़ जाती बली उसूलों की
"घोटू" मिल जाती हमें सजा ,
जीते जी अपनी भूलों की
घोटू
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