साठ के पार
साठ बरस की उम्र एक ऐसा पड़ाव है
जब बुढ़ापा आता दबे पांव है
पर आदमी जब होता है पिचोहत्तर के पार
तब खुल्लम-खुल्ला बनता है उम्र का त्यौहार अनुभव की गठरी साथ होती है
तब बूढ़ा होना गर्व की बात होती है
भले ही बालों में सफेदी हो या झुर्रियां हो तन में
मैंने एक अच्छा जीवन जिया है ,संतोष होता है मन में
लेकिन जब धीरे-धीरे उम्र और बढ़ती जाती है
उम्र जन्य कई बीमारियां हमें सताती है
तन में शिथिलता व्याप्त होती है
थोड़ी थोड़ी याददाश्त खोती है
फिर भी लंबा जीने की तमन्ना बढ़ती जाती है
जैसे बुझने के पहले दीपक की लौ फड़फड़ाती है
नहीं छूटती है माया मोह और आसक्ति
जब की उम्र होती है करने की ईश्वर की भक्ति सचमुच को होता है बड़ा अचंभा
आदमी बुढ़ापे से तौबा करता है,
फिर भी चाहता है जीना लंबा
मदन मोहन बाहेती घोटू
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