सुनहरे सपने
मैं एक वृद्ध, बूढ़ा, सीनियर सिटीजन
एक ऐसा चूल्हा खत्म हो गया हो जिसका इंधन
पर बुझी हुई राख में भी थोड़ी गर्मी बाकी है
ऐसे में जब कोई हमउम्र बुढ़िया नजर आती है
उसे देख उल्टी गिनती गिनने लगता है मेरा मन
ये कैसी दिखती होगी ,जब इस पर छाया रहा होगा यौवन
इसके ये सफेद बाल ,कभी सावन की घटा से लहराते होंगे
इसके गाल गुलाबी होते होंगे, जुलम ढाते होंगे
तना तना, कसा कसा बदन लेकर जब चलती होगी
कितनों के ही दिलों में आग जलती होगी
आज चश्मे से ढकी आंखें ,कभी चंचल कजरारी होती होंगी
प्यार भरी जिनकी चितवन कितनी प्यारी होती होगी
जिसे ये एक नजर देख लेती होगी वो पागल हो जाता होगा
कितने ही हसीन ख्वाबों में खो जाता होगा
देख कर इस की मधुर मधुर मुस्कान
कितने ही हो जाया करते होंगे इस पर कुर्बान और जब यह हंसती होगी फूल बरसते होंगे इसकी एक झलक पाने को लोग तरसते होंगे इसकी अदाएं हुआ करती होगी कितनी कातिल
मोह लिया करती होगी कितनों का ही दिल
इसे भी अपने रूप पर नाज होता होगा
बड़ा ही मोहक इसका अंदाज होता होगा
जिस गुलशन का पतझड़ में भी ऐसा अच्छा हाल
तो जब बसंत रहा होगा तो होगा कितना कमाल
खंडहर देखकर इमारत की बुलंदी की कल्पना करता हूं
और आजकल इसी तरह वक्त गुजारा करता हूं
कभी सोचता हूं काश मिल जाती ये जवानी में
तो कितना ट्विस्ट आ जाता मेरी कहानी में
जाने कहां कहां भटकता रहता है मन पल पल
वक्त गुजारने के लिए यह है एक अच्छा शगल
फिर मन को सांत्वना देता हूं कि काहे का गम है
तेरी अपनी बुढ़िया भी तो क्या किसी से कम है
मदन मोहन बाहेती घोटू
सुंदर रचना
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