हम ,घड़ी के दो कांटे
मैं और मेरी पत्नी
मैं घड़ी के छोटे कांटे जैसा,
और वह घड़ी के बड़े कांटे जितनी
वह जब चलती है
बात का बतंगड़ बना देती है
घड़ी के बड़े कांटे जैसी,
एक घंटे में पूरी घड़ी का चक्कर लगा लेती है और मैं बड़े आराम से चलता हूं
वही बात में पांच मिनट की दूरी में
कह दिया करता हूं
वह कभी चुप नहीं रह सकती
और दिन भर टिक टिक है करती
मैं एक आदर्श पति की तरह मौन रहता हूं
और दिन रात उसकी किच किच सहता हूं
फिर भी हम दोनों में है बहुत प्यार
हम एक घंटे में मिल ही लेते हैं एक बार
कभी झगड़ा होता है तो हो जाते हैं आमने सामने
पर हम दोनों एक दूसरे के लिए ही है बने
बारह राशियों में बंटे हुए हैं
फिर भी एक धुरी पर टिके हुए हैं
और यह बात भी सही है
एक दूसरे के बिना हमारा अस्तित्व ही नहीं है
मदन मोहन बाहेती घोटू
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