बढ़ती उम्र
बढ़ने लगती है उमर ,बुढ़ापा जब पीछे पड़ जाता है
तन में तनाव जब घट जाता,मन में तनाव बढ़ जाता है
जब पूंजी जमा जवानी की , हाथों से खिसकने लगती है
मंदिम होती मन की सरगम और सांस सिसकने लगती है
हरदम उछाल लेने वाला ,दिल ठंडी सांसे भरता है
इंसान परेशान हो जाता ,घुट घुट कर जीता मरता है
रह रह कर उसे सताता है, ऐसा बुखार चढ़ जाता है
बढ़ने लगती है उमर ,बुढ़ापा जब पीछे पड़ जाता है
कृषकाय आदमी हो जाता, धीरज भी देता साथ नहीं
जो कभी जवानी में होती ,रह जाती है वह बात नहीं
महसूस किया करता अक्सर है वह अपने को ठगा ठगा
विचलित रहता, ना रख सकता, वह किसी काम में ध्यान लगा
बढ़ जाती शकर रक्त में है, ब्लड प्रेशर भी चढ़ जाता है
बढ़ने लगती है उमर बुढ़ापा जब पीछे पड़ जाता है
मदन मोहन बाहेती घोटू
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