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मंगलवार, 31 जनवरी 2012

जिन्दगी को, एक हसीं अब, मोड़ देने जा रहा

आज अपने, सुप्त सपने, फिर जगाने जा रहा,
जिन्दगी को, एक हसीं, अब मोड़ देने जा रहा ।

चाहता हूँ, पतझड़ों में, चंद हरियाली भरुँ,
बंजरों में, आज फिर एक,बीज बोने जा रहा ।

देख लेंगे, तेज कितना, टिमटिमाते "दीप" में है,
सख्त दरख्तों, में भी कोंपल, फिर फुटाने जा रहा ।

आए हैं वो, आज फिर से,बनके एक हमदर्द-सा,
जब मैं सारे, दर्द को,दिल से भुलाने जा रहा ।

पत्थरों को, घिस कर अब, आग जलती है नहीं,
आग जो, दिल में लगी, उसे अब बुझाने जा रहा ।

देखा है खुद, गैरों को, अपनो के साये में ढले,
फूलों से अब, काँटों को चुन-चुन हटाने जा रहा ।

हो गया अब, आँसुओं से, मुँह धोने का रसम,
जिंदगी को, जीतकर अब, जश्न मनाने जा रहा ।

बस हुआ, सपनों में गिरना, गिरते-गिरते दौड़ना,
अपने साये, पे अब अपना, हक जमाने जा रहा ।

सोच में हैं, वो कि हमसे, क्या कहे क्या न कहे,
मैं हूँ कि, उनकी हरेक, बातें भुलाने जा रहा ।

आँहे भरते, जीने का अब,वक्त पूरा हो चुका,
जिन्दगी को, एक हसीं अब, मोड़ देने जा रहा ।

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