जवानी में,
हसीनो को,
कमसिनो को
पड़ोसिनो को,
ताकते, झांकते,
मेरी दूर की नज़र कमजोर हो गयी,
और मेरी आँखों पर,
दूर की नज़र का चश्मा चढ़ गया
बुढ़ापे तक,
अपनी बीबी को,
रंगीन टी वी को
कुछ करीबी को
पास से देखते देखते ,
मेरी पास की नज़र कमजोर हो गयी,
और मेरी आँखों पर,
पास की नज़र का चश्मा चढ़ गया
जवानी के शौक,
और बुढ़ापे की आदतें,
ये उम्र का करिश्मा है
आजकल मेरी आँखों पर ,
बाईफोकल चश्मा है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
हसीनो को,
कमसिनो को
पड़ोसिनो को,
ताकते, झांकते,
मेरी दूर की नज़र कमजोर हो गयी,
और मेरी आँखों पर,
दूर की नज़र का चश्मा चढ़ गया
बुढ़ापे तक,
अपनी बीबी को,
रंगीन टी वी को
कुछ करीबी को
पास से देखते देखते ,
मेरी पास की नज़र कमजोर हो गयी,
और मेरी आँखों पर,
पास की नज़र का चश्मा चढ़ गया
जवानी के शौक,
और बुढ़ापे की आदतें,
ये उम्र का करिश्मा है
आजकल मेरी आँखों पर ,
बाईफोकल चश्मा है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
बहुत खूबसूरत प्रस्तुति ||
जवाब देंहटाएंआपको हार्दिक बधाई ||
बुढापे में भी बाज नहीं आये, वाह क्या लिखा है।
जवाब देंहटाएंkaun kahta hai ki ham boodhe hue hai
जवाब देंहटाएंaaj bhi ham jawaano ke baap hai
ghotoo