रविकर की टिप्पणियां-इस सप्ताह
(१)
घनाक्षरी --
खनन उपक्रम का, बेबस राजधर्म का लूट-तंत्र बेशर्म का, सुवाद अंगूरी है |
राजपाट पाय-जात, धरती का खोद-खाद
लूट-लूट खूब खात, यही तो जरुरी है |
कहीं कांगरेस राज, भाजप का वही काज
छोट न आवत बाज, भेड़-चाल पूरी है |
चट्टे-बट्टे थैली केर, सारे साले एक मेर,
है देर न अंधेर है, आम मजबूरी है ||
(२)
देख सकने की,
जरा बकने की,
हंसीं सपने की,
तन्हा तपने की,
आदत है |
बुरी लत है ||
(३)
कुण्डली-
जब तक दुनिया है सखे, तब तक पत्थर राज |
पत्थर से टकराय के, लौटे हर आवाज ||
लौटे हर आवाज, लिखाये किस्मत लोढ़े,
कर्मों पर विश्वास, करे क्या किन्तु निगोड़े ?
कोई नहीं हबीब, मिला जो उसको अबतक,
जिए पत्थरों बीच, रहेगा जीवन जब तक ||
(४)
कुण्डली-
बड़ा प्रफुल्लित हो रहा, मिला शरद सा बाप |
मौज करे वो ठाठ से, न कोई संताप ||
न कोई संताप , उडाये आसमान में,
मन के घोड़े ख़ास, रहता ख़ूब गुमान में ||
अब क्रिकेट का राज, जभी रैना को पकड़ा,
सौंपेगा साम्राज्य, जोड़-जोड़ करता बड़ा ||
(५)
हिंदी की जय बोल |
मन की गांठे खोल ||
विश्व-हाट में शीघ्र-
बाजे बम-बम ढोल |
सरस-सरलतम-मधुरिम
जैसे चाहे तोल |
जो भी सीखे हिंदी-
घूमे वो भू-गोल |
उन्नति गर चाहे बन्दा-
ले जाये बिन मोल ||
हिंदी की जय बोल |
हिंदी की जय बोल |
(६)
सच्चाई की बात अजीब,
धूप - चांदनी पर खीज |
तक़दीर फांके धूल-
उनको फूल सी चीज ||
भ्रूण में मारी हीर
है बड़ा बदतमीज |
खुशियाँ दी बेच
आँखे रही भीज ||
समझ की लाली
जिलाए रक्तबीज |
सहकर जुल्म हुआ
धूप - चांदनी पर खीज |
तक़दीर फांके धूल-
उनको फूल सी चीज ||
भ्रूण में मारी हीर
है बड़ा बदतमीज |
खुशियाँ दी बेच
आँखे रही भीज ||
समझ की लाली
जिलाए रक्तबीज |
सहकर जुल्म हुआ
मुजरिम नाचीज ||
बहुत बढ़िया रविकर जी |
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