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शुक्रवार, 9 सितंबर 2011

यहाँ करे यस मैम वहाँ क्यूँ बोला मोहन ?



मोहन करता  दंडवत, सम्मुख  पिद्दी  देश,

देकर एकड़  चार  सौलौटा  आज  स्वदेश |

लौटा आज स्वदेश
, पाक को कितना हिस्सा, 

काश्मीर   का   देत,  बता  दे  पूरा  किस्सा | 

   रही  सोनिया  डांट,  करे  न  मेरा  *जोहन,    
      *(इन्तजार)
यहाँ करे यस-मैम, वहाँ  क्यूँ  बोला मोहन ??
(२) 

 बड़ी अदालत  था  गया, खुदा का बंदा एक,  
 कातिल को फांसी मिले,  मारा   बेटा  नेक |  

मारा  बेटा  नेक, हुआ  आतंकी  हमला ,
कातिल मरणासन्न, भूलते अब्बू बदला |

जज्बा तुझे सलाम, जतन से शत्रु  संभालत,
     मानो  करते  माफ़, खुदा की बड़ी अदालत |               
                                        
(जनता आतंकी हमलों की आदी हो चुकी है)
 -सुबोधकांत सहाय
(३)

संसद की अवमानना, मचती खुब चिल्ल-पों, 
 जनता  की  अवमानना, करते  रहते  क्यों ?

करते  रहते  क्यो, हमेशा  मंत्रि-कबीना |
 जीने का अधिकार, आम-जनता से छीना ?

सत्ता-मद  में  चूर,  बढ़ी  बेशरमी  बेहद,
आतंकी फिर कहीं,  उड़ा  न  जाएँ  संसद |

(४)

कायर  की  चेतावनी, बढ़िया  मिली  मिसाल,
कड़ी  सजा  दूंगा  उन्हें, करे  जमीं जो लाल |

करे  जमीं  जो लाल,  मिटायेंगे  हम  जड़ से,
संघी  पर  फिर  दोष,  लगा  देते हैं  तड़  से | 

रटे - रटाये  शेर,  रखो  इक काबिल-शायर,
कम से कम हर बार, नयापन होगा कायर || 

1 टिप्पणी:

  1. ये बहुत ही अच्छा ब्लॉग लगा...जिसमे बहुत ही अच्छी स्वरचित रचनाएं पढने को मिली....मैं प्रदीप जी को साधुवाद करता हूँ .ईश्वर उन्हें सफलता की और सीढियां चढ़ाए ...

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