मोहन करता दंडवत, सम्मुख पिद्दी देश,
देकर एकड़ चार सौ, लौटा आज स्वदेश |
लौटा आज स्वदेश
, पाक को कितना हिस्सा,
काश्मीर का देत, बता दे पूरा किस्सा |
रही सोनिया डांट, करे न मेरा *जोहन,
*(इन्तजार)
यहाँ करे यस-मैम, वहाँ क्यूँ बोला मोहन ??
(२)
बड़ी अदालत था गया, खुदा का बंदा एक,
कातिल को फांसी मिले, मारा बेटा नेक |
कातिल को फांसी मिले, मारा बेटा नेक |
मारा बेटा नेक, हुआ आतंकी हमला ,
कातिल मरणासन्न, भूलते अब्बू बदला |
जज्बा तुझे सलाम, जतन से शत्रु संभालत,
मानो करते माफ़, खुदा की बड़ी अदालत |
(जनता आतंकी हमलों की आदी हो चुकी है)
-सुबोधकांत सहाय
(३)
संसद की अवमानना, मचती खुब चिल्ल-पों,
जनता की अवमानना, करते रहते क्यों ?
करते रहते क्यो, हमेशा मंत्रि-कबीना |
जीने का अधिकार, आम-जनता से छीना ?
सत्ता-मद में चूर, बढ़ी बेशरमी बेहद,
आतंकी फिर कहीं, उड़ा न जाएँ संसद |
(४)
कायर की चेतावनी, बढ़िया मिली मिसाल,
कड़ी सजा दूंगा उन्हें, करे जमीं जो लाल |
करे जमीं जो लाल, मिटायेंगे हम जड़ से,
संघी पर फिर दोष, लगा देते हैं तड़ से |
रटे - रटाये शेर, रखो इक काबिल-शायर,
कम से कम हर बार, नयापन होगा कायर ||
ये बहुत ही अच्छा ब्लॉग लगा...जिसमे बहुत ही अच्छी स्वरचित रचनाएं पढने को मिली....मैं प्रदीप जी को साधुवाद करता हूँ .ईश्वर उन्हें सफलता की और सीढियां चढ़ाए ...
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