बत्तीसी दिखलाय के, पच्चीस कमवाय के
आयोग आगे आय के, खूब हलफाते हैं |
दवा दारु नेचर से, कपडे फटीचर से
मुफ्तखोर टीचर से, बच्चा पढवाते हैं |
सेहत शिक्षा मिलगै , कपडा लत्ता सिलगै
तनिक छत हिलगै, काहे घबराते हैं ?
गरीबी हटाओ बोल, इंदिरा भी गईं डोल,
सरकारी झाल-झोल, गरीब घटाते हैं ||
आयोग आगे आय के, खूब हलफाते हैं |
दवा दारु नेचर से, कपडे फटीचर से
मुफ्तखोर टीचर से, बच्चा पढवाते हैं |
सेहत शिक्षा मिलगै , कपडा लत्ता सिलगै
तनिक छत हिलगै, काहे घबराते हैं ?
गरीबी हटाओ बोल, इंदिरा भी गईं डोल,
सरकारी झाल-झोल, गरीब घटाते हैं ||
बेहतरीन ।
जवाब देंहटाएंबढ़िया और सार्थक रचना |
जवाब देंहटाएं♥
जवाब देंहटाएंआदरणीय रविकर जी
सादर सस्नेहाभिवादन !
क्या बात है … मस्त लिखा है -
मुफ़्तखोर टीचर से बच्चा पढ़वाते हैं …
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
बहुत सही कहा है |बधाई |
जवाब देंहटाएंआशा