बढ़ती कीमत देख के मच गया हाहाकार,
जनता की जेबें काटे ये जेबकतरी सरकार |
मोटरसाईकिल को सँभालना हो गया अब दुश्वार
कीमतें पेट्रोल की चली आसमान के पार |
बीस कमाके खरच पचासा होने के आसार,
महँगाई करती जाती है यहाँ वार पे वार |
त्राहिमाम कर जनता रोती दिल में जले अंगार,
सपने देखे बंद होने के महँगाई के द्वार |
महंगाई के रोध में सब मांगेंगे अधिकार,
दो-चार दिन चीख के मानेंगे फिर हार |
तेल पिलाये पानी अब कुछ कहना निराधार,
मन मसोस के रह जाना ही शायद जीवन सार |
लुटे हुए से लोग और धुँधला दिखता ये संसार,
त्योहारों के मौसम में अब मिले हैं ये उपहार |
देख न पाती दु:ख जनता के उल्टे देती मार,
जेबकतरी सरकार है ये तो जेबकतरी सरकार |
वर्तमान दशा का सटीक आकलन करती कविता....
जवाब देंहटाएंवाह भई वाह
जवाब देंहटाएंआपने कितने प्यारे ढंग से समझााया है
आभार
♥
जवाब देंहटाएंप्रिय बंधुवर प्रदीप कुमार साहनी जी
सादर सस्नेहाभिवादन !
जेबकतरी सरकार रचना के माध्यम से आपने आम भारतीय के मन की बात कही है … साधुवाद ! आभार !!
तेल पिलाए पानी अब कुछ कहना निराधार
…और हमारे यहां तो पीने का पानी तक पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं है …
तमाम छंद प्रभावशाली हैं , पुनः बधाई और आभार !
आ पके लिए दो लिंक दे रहा हूं
ऐ दिल्ली वाली सरकार ! सौ धिक्कार !!
मेरी ग़लती का नतीज़ा ये मेरी सरकार है !
समय मिलने पर रचनाएं अवश्य देखें
♥ हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !♥
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शरद जी आपका धन्यवाद |
जवाब देंहटाएंशुक्ला जी आपका हार्दिक आभार |
जवाब देंहटाएंराजेन्द्र जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद | आपके दिये लिंक पर मैं जरुर आऊँगा |
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