बदचलन से दोस्ती, खुशियाँ मनाती रीतियाँ
नेकनीयत से अदावत कर चुकी हैं नीतियाँ |
आज आंटे की पड़ी किल्लत, सडा गेहूं बहुत-
भुखमरों को तो पिलाते, किंग बीयर-शीशियाँ ||
देख -गन्ने सी सड़ी, पेरी गयी इंसानियत,
ठीक चीनी सी बनावट ढो रही हैं चीटियाँ ||
हो रही बंजर धरा, गौवंश का अवसान है-
सब्जियों पर छिड़क दारु, दूध दुहती यूरिया ||
भ्रूण में मरती हुई वो मारती इक वंश पूरा-
दोष दाहिज का मरोड़े कांच की नव चूड़ियाँ |
हो चुके इंसान गाफिल जब सृजन-सद्कर्म से,
पीढियां दर पीढियां, बढती रहीं दुश्वारियां ||
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