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गुरुवार, 20 मार्च 2025

दिव्यन की शादी 

1
इधर देखूं ,उधर देखूं , है रौनक मैं जिधर देखूं 
झील सुंदर में रैफल है,थाम कर मैं जिगर देखूं 
सजावट शादी मंडप की,महकते फूल खुशबू से 
बहारें ही बहारें हैं ,मैं जो मन चाहे उधर देखूं 

2
 बताएं क्या तुम्हें रौनक, वो शादी के नजारों की
 सजे सब फूल गुलशन के, ओढ़नी ओढ़ तारों की 
सभी सजधज के हंसते नाचते और चुस्कियांलेते 
 बड़ा ही खुशनुमा माहौल था,महफिल बहारों की
3
बड़ा ही जोश है उत्साह है और चाव है मन में 
अनुष्का और दिव्यन बंध रहे हैं प्यार बंधन में दिव्यांग की शादी 

1

इधर देखूं ,उधर देखूं , है रौनक मैं जिधर देखूं झील सुंदर में रैफल है,थाम कर मैं जिगर देखूं सजावट शादी मंडप की,महकते फूल खुशबू से बहारें ही बहारें हैं ,मैं जो मन चाहे उधर देखूं 


2

 बताएं क्या तुम्हें रौनक, वो शादी के नजारों की सजे सब फूल गुलशन के, ओढ़नी ओढ़ तारों की सभी सजधज के हंसते नाचते और चुस्कियांलेते  बड़ा ही खुशनुमा माहौल था,महफिल बहारों की

3

बड़ा ही जोश है उत्साह है और चाव है मन में अनुष्का और दिव्यन बंध रहे हैं प्यार बंधन में बनाई ब्रह्मा जी ने अपने हाथों उनकी यह जोड़ी,

 दुआ है लहलहाएं,मुस्कुराए, सदा जीवन में


मदन मोहन बाहेती घोटू

बनाई ब्रह्मा जी ने अपने हाथों उनकी यह जोड़ी,
 दुआ है लहलहाएं,मुस्कुराए, सदा जीवन में

मदन मोहन बाहेती घोटू 
बुढ़ापे की झलकियां 

1
उम्र बढ़ती, बुढ़ापे का ,बड़ा दुखदाई है रस्ता 
है मेरे हाल भी खस्ता ,है उसके हाल भी खस्ता 
मगर बासंती मौसम सा, हमारा प्यार का आलम 
फूल मुरझाए, खुशबू से ,महकता फिर भी गुलदस्ता
रहा ना जोश यौवन का, नहीं पहले सी मस्ती है
 मैं 84 का लगता हूं ,वह भी 80 की लगती है 
बुढ़ापे में मोहब्बत का ,हमारा यह तरीका है 
मैं उसका ख्याल रखता हूं, वो मेरा ख्याल रखती है 
3
जगाती है सुबह पत्नी, पिलाकर चाय का प्याला
कभी चुंबन भी दे देती, तो कर देती है मतवाला 
उसे जब धुंधलीआंखों से प्यार से देखता हूं मैं, 
भले झुर्री भरा तन हो, मगर लगती है मधुबाला
4
ढल गए सब जवानी के, रहे नाम हौसले बाकी 
उड़े बच्चे,जो पर निकले,है खाली घोंसले बाकी 
उम्र बढ़ती के संग सीखा, है हमने मन को बहलाना ,
मोहब्बत हो गई फुर्र है,बचे अब चोंचले बाकी
5
उचटती नींद रहती है ,कभी सोता कभी जगता 
सुने बिन उसके खर्राटे, ठीक से सो नहीं सकता 
बन गए एक दूजे की जरूरत इस कदर से हम, 
वह मुझ बिन जी नहीं सकती, मैं उस बिन जी नहीं सकता 
6
हमारी जिंदगानी का, ये अंतिम छोर होता है
वक्त मुश्किल से कटता है, ये ऐसा दौर होता है
सहारा एक दूजे का , हैं होते बूढ़े और बुढ़िया,
बुढ़ापे की मोहब्बत का मजा कुछ और होता है

 मदन मोहन बाहेती घोटू 

शुक्रवार, 14 मार्च 2025

कभी-कभी मेरे दिल में ख्याल आता है 
*एक विकसित होती हुई कन्या की मनोदशा*

उछलते कूदते कट रहा था बचपन 
पर बढ़ती हुई उम्र ले आई परिवर्तन 
तन-बदन में आने लगी बदलाव की आहट 
मन में होने लगी थोड़ी सी घबराहट 
आईने में खुद को निहारने का शौक बढ़ गया धीरे-धीरे मुझ पर जवानी का रंग चढ़ गया 
मन की गतिविधि जाने कहां भटकाने लगी बिना मतलब के ही कभी-कभी हंसी आने लगी अल्हड़ बचपन अब कुछ शर्मिला होने लगा 
मैं बड़ी हो गई हूं मन में यह एहसास जगा 
लोगों की निगाहें बदन को बेंधने लगी 
आ गया थोड़ा चुलबुलापन और दिल्लगी 
तो क्या अब मेरे उड़ जाने के दिन आ रहे हैं 
एक नया संसार बसाने के दिन आ रहे हैं 
जिस घर में मैं पली ,बड़ी, उसे छोड़ना होगा एक अनजान परिवार से नाता जोड़ना होगा अपने मां-बाप के लिए में पराई हो जाऊंगी अपने पति की प्रीत में इतना खो जाऊंगी 
ना पिताजी की डांट ना मम्मी का अनुशासन अब एक नए घर में चलेगा मेरा शासन 
मेरा एक पति होगा ,नया घर बार होगा 
मैं घर की रानी बनूगी ,नया संसार होगा
मेरा जीवन साथी मेरी हर बात मानेगा
मुझे अपने मां-बाप से भी बढ़कर जानेगा 
मेरे भी बच्चे होंगे जिन्हें मैं पालूंगी प्यार से 
और जुड़ जाऊंगी एक नए परिवार से 
मगर अगर सास खडूस और हुई तानेबाज छोटी-छोटी बातों पर अगर हुई नाराज 
अगर जुल्म करेगी तो सह ना पाऊंगी 
पति के साथअपना अलग घर बढ़ाऊंगी
अरे मैं पगली कहां से कहां भटक गई 
जीवन के आने वाले दौर में अटक गई 
अभी तो मुझे पढ़ना लिखना है, बड़ा होना है काबिल बनना है अपने पैरों खड़ा होना है 
पहले एक स्वावलंबी नारी बनूंगी 
फिर किसी की दुल्हन दुलारी बनूंगी 
हम औरतों की भी अजब जिंदगानी है 
बचपन किसी का और किसी की जवानी है शादी के बाद जीवन में बड़ा मोड़ आता है 
अपने मां-बाप भाई बहन को छोड़ आता है एकदम बदले वातावरण में निभाना पड़ता है सास ससुर और पति का प्यार पाना पड़ता है जिसको मुश्किल होताअपने कपड़े संभालना 
उसे पड़ता है पूरी गृहस्थी संभालना
किस्मत में क्या है ,कौन और कैसा लिखा है संघर्ष लिखा है गरीबी या पैसा लिखा है 
जो भी हो जैसा होगा देखा जाएगा 
पर अभी तो पढूं क्योंकि जीवन में यही काम आएगा

मदन मोहन बाहेती घोटू 
सोना या पीतल 

मैं यही जानने बेकल हूं 
मैं सोना हूं या पीतल हूं 

दोनों एक जैसे रंगत में 
पर फर्क बहुत है कीमत में 
एक से बनते हैं आभूषण 
एक से बनते घर के बर्तन 
एक से गौरी का तन सजता 
एक जीवन की आवश्यकता 
बर्तन में पकता है भोजन 
और खाना खाते हैं सब जन 
पीतल के ही लोटा गिलास 
जिनसे पानी पी, मिटे प्यास 
अग्नि पर नित्य चढ़ा करते 
होते हैं शुद्ध रोज मँझते 
अति आवश्यक है जीवन में 
है बहुत मधुरता खनखन में 
सोना पीतल सा रंगीला 
यह भी पीला वह भी पीला 
लेकिन सोना आभूषण बन 
करता सज्जित नारी का तन
गौरी सोलह सिंगार करे
हर कोई स्वर्ण से प्यार करें 
पर जब होता कोई उत्सव 
तब दिखता सोने का वैभव 
वरना अक्सर चोरी डर से 
वह नहीं निकलता लॉकर से 
श्रृंगार प्रिया का सजवाता 
जब होता मिलन ,उतर जाता 
बहुमूल्य न ,बन बहुउपयोगी 
जीना मेरी किस्मत होगी 
काम आता सबके संग पल-पल 
मैं स्वर्ण न, अच्छा हूं पीतल

मदन मोहन बाहेती घोटू 

रविवार, 9 मार्च 2025

कोई उलाहना नहीं चाहिए 

चाह थी कुछ करूं, मैंने कोशिश की,
 कर न पाया तो बहाना नहीं चाहिए 
मैं क्यों क्या किया और क्या ना किया ,
यह किसी को दिखाना नहीं चाहिए
 मैंने यह न किया, मैंने वह ना किया
 मुझको कोई उलाहना नहीं चाहिए 
मैंने जो भी किया, सच्चे दिल से किया
 मुझको कोई सराहना नहीं चाहिए
 काम आऊं सभी के यह कोशिश थी 
मुझसे जो बन सका मैंने वह सब किया 
चाहे अच्छा लगा या बुरा आपको 
तुमने जैसे लिया ,आपका शुक्रिया

मदन मोहन बाहेती घोटू 

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