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शुक्रवार, 27 फ़रवरी 2015

आंटी का दर्द

          आंटी का दर्द

जब मैं थी छोटी ,
नन्ही मुन्नी सी गुड़िया ,
लोग मुझे कहते थे 'क्यूटी '
जब मैं बड़ी हुई,
जवानी और निखार आया,
लोग मुझे कहने लगे' ब्यूटी'
शादी के बाद ,
पति ने दिया ढेर सा प्यार,
 और कहते थे मुझे 'स्वीटी'
बाद में जब गृहस्थी में जुटी,
तो बच्चों और परिवार की सेवा में ,
लग गयी मेरी 'ड्यूटी'
और अब जब जवानी रूठी,
हो रही हूँ मोटी ,
और खो जाया करती है मेरी ' शांती'
जब अच्छे खासे ,
बड़े बड़े लोग भी,
मुझे बुलाते है कह कर 'आंटी'
ये लोगो का आंटी कहना
मेरे मन को चुभता है,
बन कर के नश्तर
इंग्लिश में 'आंट 'याने चींटी,
तो क्या मेरी हालत ,
हो गयी है चींटी से भी बदतर

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


राहुल बाबा का चिंतन

        राहुल बाबा का  चिंतन

मम्मी  ने ये बोला था तू पी एम बनेगा,
     सब सर झुका के रहेंगे तेरे हुज़ूर में
किस्मत ने मगर खेल कुछ दिखलाया इस तरह,
      टपका जो आसमान से ,लटका खजूर में
जब तक छपरपलंग था ,बंदा मलंग था,
      लेकिन गए है इस कदर ,हालात अब बदल
करवट को बदलने की भी अब तो जगह नहीं,
      स्लीपर की साइड बर्थ है ,सोने को आजकल
बेहतर विदेश जाऊं मैं ,चिंतन के नाम पर ,
       मेरे  उबलते खून को ठंडक  तो  मिलेगी
मम्मा ,मुझे कांग्रेस का अध्यक्ष बनादो,
      आहत मेरे  इस दिल को कुछ राहत तो मिलेगी

घोंटू  

सोमवार, 23 फ़रवरी 2015

यूं बीत गया बस जन्मदिवस

         यूं  बीत गया बस जन्मदिवस

 हम ख़ुशी मनाते भूल गए ,घट गयी उमर है एक बरस
                                     यूं बीत गया बस जन्मदिवस
कुछ मित्र ,सगे और सम्बन्धी ,जतलाने आये हमें प्यार
कुछ पुष्पगुच्छ लेकर आये ,कुछ लेकर आये उपहार
कुछ 'व्हाटस एप 'सन्देश मिले ,मेसेज मिले  मोबाईल पर
लम्बी हो उम्र ,सुखी जीवन ,और खुशियां बरसे जीवन भर
फिर' केक' कटी,गाने गाये,और हुयी पार्टी,खान पान
यह चला सिलसिला बहुत देर,तन अलसाया ,आयी थकान
उपहार प्यार का हमें दिया ,पत्नी ने खुश हो  विहंस ,विहंस
सारा दिन गुजरा  मस्ती में ,अगले दिन से फिर जस के तस
                                       यूं बीत गया बस जन्म  दिवस

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रविवार, 22 फ़रवरी 2015

चौहत्तरवें जन्मदिन पर -जीवन संगिनी से

      चौहत्तरवें जन्मदिन पर -जीवन संगिनी से

उमर बढ़ रही ,पलपल,झटझट
 हुआ तिहत्तर मैं   ,तुम अड़सठ 
एक दूसरे पर अवलम्बित ,
एक सिक्के के हम दोनों पट
      सीधे सादे ,मन के सच्चे    
      पर दुनियादारी में कच्चे
     बंधे भावना के बंधन में,
    पर दुनिया कहती हमको षठ
कोई मिलता ,पुलकित होते 
याद कोई आ जाता ,रोते
तुम भी पागल,हम भी पागल,
 नहीं किसी से है कोई घट
       पलपल जीवन ,घटता जाता
      भावी कल ,गत कल बन जाता
       कभी चांदनी है पूनम की,
      कभी  अमावस का श्यामल पट
इस जीवन के  महासमर में
हरदम हार जीत के डर  में
हमने हंस हंस कर झेले है,
पग पग पर कितने ही संकट
      मन में क्रन्दन ,पीड़ा  ,चिंतन
      क्षरण हो रहा,तन का हर क्षण
      अब तो ऐसे लगता जैसे ,
      देने लगा  बुढ़ापा   आहट

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शनिवार, 14 फ़रवरी 2015

          हम मुफ्तखोर है
                       १
सूरज की धूप हमें ,मुफ्त मिले दिनभर ही ,
          और रात मुफ्त मिले ,चांदनी  सुहानी है
मुफ्त हवा के झोंको की ठंडक मिलती है ,
           मुफ्त में ही बादल भी ,बरसाते पानी है
मज़ा स्वाद खुशबू का ,मुफ्त लिया करते हम ,
              पकती पड़ोसी के घर जब बिरयानी है  
मुफ्त खुशबुएँ लेते,खिले पुष्प,कलियों की,
               हमें मुफ्तखोरी की ,आदत पुरानी है
                                २
 मुफ्त हुस्न सड़कों पर ,खुला खुला  दिखता है,
                 और मुफ्त में ही हम ,आँख सेक लेते है   
नए नए फैशन का ,मुफ्त ज्ञान हो जाता ,
                 जहाँ मिले परसादी ,माथ टेक  लेते है
मुफ्त रोटी लंगर की ,बड़ी स्वाद लगती है,
                  मुफ्त मिले दारू तो ,छक कर पी लेते है
मुफ्त में कंप्यूटर , बिजली और पानी का ,
                   वादा जो करता , हम वोट  उसे  देते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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