एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

गुरुवार, 3 जून 2021

घोटू के पद

 घोटू ,दुनिया बड़ी सयानी 
 सभी बात पर केवल देखें अपनी लाभ और हानी
 हमें खिलाये खिचड़ी ,हमसे, पर चाहे बिरयानी छोटा-मोटा काम बता दो, मांगे खर्चा पानी 
कर्जा ले, बातें कर चिकनी, चुपड़ी और सुहानी 
वक्त चुकाने का जब आये, तो फिर आनाकानी 
छुरी बगल में छुपी, मुंह पर कोरी प्रीत दिखानी 
नहीं काठ की हांडी चूल्हे,बार-बार चढ़ जानी  
ये मरजानी समझ न आनी, हाथी दांत दिखानी 
घोटू सारी उम्र काट दी, अब तक ना पहचानी

मंगलवार, 1 जून 2021

 भैया हम जो भी जैसे हैं, वही रहेंगे ना बदलेंगे 
 तुम हमको चाहो ना चाहो लेकिन प्यार तुम्हें हम देंगे
 
 देख हमारे रूप रंग को, तुम भ्रम में पड़ जाते भारी
 हम कौवा हैं या कोकिल हैं काम न करती अक्ल तुम्हारी
जरा हमारे बोल सुनो तुम, कूहू कूहू या कांव कांव है
 ठौर हमारा नीम डाल है या अंबुवा की घनी छांव है
 तुम झटसे पहचान जाओगे,जब कोकिल से हम कूकेंगे
   भैया हम जो भी जैसे हैं ,वही रहेंगे ना बदलेंगे 
   
चिंताओं के फंसे जाल में ,नींद नहीं आती डनलप पर
मेरी मानो कभी खरहरी, खटिया पर भी देखो सोकर 
ऊपर हवा, हवा नीचे भी, गहरी नींद करेगी पुलकित सुबह उठोगे, भरे ताजगी , अंगअंग होगा आनंदित
झोंके पीपल नीम हवा के ,नवजीवन तुममें भर देंगे 
भैया हम जो भी जैसे हैं, वहीं रहेंगे ना बदलेंगे

कच्ची केरी हमें समझ कर ,काट नहीं यूं अचार बनाओ 
करो प्रतीक्षा और पकने दो, मीठा स्वाद आम का पाओ
 जल्दबाजियों में अक्सर ही ,पड़ता है नुकसान उठाना 
अपनी खुद की करनी का ही, पड़ता है भरना जुर्माना 
नहीं सामने कुछ बोलेंगे ,पीठ के पीछे लोग हसेंगे 
भैया हम जो हैं जैसे भी वही रहेंगे, ना बदलेंगे 

ना तो पोत सफेदी तन पर, कोशिश करी हंस बन जाए 
 नौ सौ चूहे मार नहीं हम ,बिल्ली जैसे हज को जाएं 
 ना बगुले सी हममें भगती है और ना हम रंगे सियार हैं 
जो बाहर,वो ही हैं अंदर, हम मतलब के नहीं यार है लोगों का तो काम है कहना ,कुछ ना कुछ तो लोग कहेंगे 
भैया हम जो भी जैसे हैं ,वही रहेंगे, ना बदलेंगे

मदन मोहन बाहेती घोटू
मैं बिकाऊ हूं 
जो भी लगाता ऊंची बोली 
बनता में उसका हमजोली 
समय संग ,रुख बदला करता 
यह न समझना में टिकाऊ हूं
मैं बिकाऊ हूं ,मैं बिकाऊ हूं

 मेरी निष्ठा उसके प्रति है ,
 जो है ऊंचे भाव लगाता 
 जिसकी गुड्डी ऊंची उड़ती 
 मैं उस पर ही दांव लगाता
 सोच समझ मौका पाते ही,
 मैं बदला करता हूं पाली
 तारीफ़ जिसकी आज कर रहा 
 कल उसको दे सकता गाली 
 अंदर से मेरा मन काला,
 बाहर से उजला दिखाऊं हूं
 मैं बिकाऊ हूं ,मैं बिकाऊ हूं
 
 सही चुका दो मेरी कीमत ,
 दूंगा तुमको चढ़ा अर्श पर 
 थोड़ी सी भी मक्कारी की 
 तुमको दूंगा पटक फर्श पर 
 कहने को सिपाही कलम का,
  पर मैं हूं सत्ता का दल्ला 
  अच्छे अच्छों को उखाड़ मैं 
   सकता हूं ,कर कर के हल्ला
   और कभी नारद बनकर के ,
   आपस में सब को लड़ाऊं हूं
   मैं बिकाऊ हूं ,मैं बिकाऊ हूं
   
   जो दिखता है वह बिकता है,
    दांत मेरे हाथी से सुंदर 
    खाने वाले दांत मेरे पर,
    छुपे हुऐ है मुंह के अंदर 
   न तो पराये, ना अपनो का,
   हुआ नहीं में कभी किसी का
   स्वार्थ सिद्धि करना पहले है,
   वफा निभाना मैं ना सीखा 
   मंदिर में पूजा मजार पर,
    मखमल की चादर चढ़ाऊं हूं
    मैं बिकाऊ हूं ,मैं बिकाऊ हूं

मदन मोहन बाहेती घोटू

शनिवार, 29 मई 2021

चार यार 

चार यार मिल बता रहे थे हाल-चाल अपना अपना उनकी परम प्यारी पत्नी उनका ख्याल रखे कितना

 पहला बोला मैं बेसब्रा हर एक काम की जल्दी थी
 मैं जो चाहू, झट हो जाए ,पर यह मेरी गलती थी 
 समझाया पत्नी ने,धीरे-धीरे, अच्छा होता सब 
 सींचो लाख,मगर फल देता तरु भी सही समय हो जब 
मैं उसकी हर बात मान कर अब रहता अनुशासन में  
यारों मैं खुश रहता हरदम, बंध कर उसके बंधन में
 
दूजा बोला कच्चा पक्का ,जो भी देता उसे पका
 बिना शिकायत, बड़े प्यार से ,वह सब कुछ लेती गटका
 मेरी बीवी है संतोषी ,जो मिलता उससे ही खुश है 
 मेरे क्रियाकलापों पर वह ,नहीं लगातीअंकुश है    
 वह कितनी भी शॉपिंग कर ले मैंने उससे कुछ ना कहा 
इतने बरस हुये पर कायम ,प्यार हमारा सदा रहा 
 
 तीजा बोला, मेरी बीवी, मेरी हेल्थ का ख्याल रखें
 पांच मील चलवा लेती है, बिना रुके और बिना थके 
 रोज दंडवत ,उठक बैठक ,प्यार प्रदर्शन करवाती
 सांस फूलती, नये ढंग से, प्राणायाम जब करवाती
 वह फिट मैं फिट, आपस में, हम दोनो ही रहते फिट है 
मैं वह करता ,जो वह कहती तो ना होती किटकिट है
 
चौथा बोला ,मेरी बीवी तो साक्षात लक्ष्मी है 
मुझे मानती वह परमेश्वर मेरे खातिर ,जन्मी है 
आधा किलो मिठाई लाकर, वह प्रसाद चढ़ाती है
एक बर्फी मुझको अर्पित कर ,सारी खुद खा जातीहै 
कहती डायबिटीज है तुमको ,मीठे की पाबंदी है
मैं जीवूं, वह रहे सुहागन, मेरे प्यार में  अंधी है 

सब बोले घर घर मिट्टी के चूल्हे , यही हकीकत है 
जैसे चलता वैसे जीने की पड़ जाती आदत है 
संतोषी बन, रहना हमको ,खुशी खुशी यूं ही जीकर
आओ, अपना गलत करे गम,थोड़ी सी दारू पीकर

मदन मोहन बाहेती घोटू

शुक्रवार, 28 मई 2021

तब और अब

जितना प्यार कभी होता था उतने झगड़े तब होते थे अब तो मतलब से होते हैं ,पहले बेमतलब होते थे 
 
एक जमाना था तू और मैं ,मिल करके हम होते थे 
सर्दी गर्मी हो या बारिश, रंगीले मौसम होते थे 
 तेरी छुअन सिहरन देती ,तेरी सांसे देती धड़कन 
 तेरी बातें मीठा अमृत ,तेरी खुशबू चंदन चंदन 
 बादल से लहराते गेसू, तेरे बड़े गजब होते थे
जितना प्यार कभी होता था उतने झगड़े तब होते थे
 
भले जवान हो गई थी तू,मगर बचपना नहीं गया था पियामिलन चाव और वह आकर्षणभी नयानया था
बात बात पर तू तू मैं मैं ,हां थी कभी तो कभी ना थी नखरेनाज दिखाती रहती,मुझे सताती तू कितना थी
 तू बारिश में भीग नाचती, तेरे शोक अजब होते थे जितना प्यार कभी होता था उतने झगड़े तब होते थे
 
 धीरे-धीरे समझदार तू और थोड़ा परिपक्व हो गई 
 बच्चों और घर की चिंता ही तेरे लिए महत्व हो गई तेरा प्यार ध्यान पाने में ,पहले होता मैं नंबर वन 
 अब मेरा चौथा नंबर है, सूखे सूखे ,भादौ, सावन 
 याद आते चुंबन बरसाते, तेरे प्यार लब होतेथे
जितना प्यार कभी होता था उतने झगड़े तब होतेथे 

मदन मोहन बाहेती घोटू

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-