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शनिवार, 30 अप्रैल 2016

विवाह की वर्षग्रन्थी पर

विवाह की वर्षग्रन्थी पर

मिलन का पर्व है ये ,आज बंधा था बंधन ,
ऐसा लगता है जैसे बात कोई हो कल की
बड़ी शर्माती तुम सिमटी थी मेरी बांहों में,
भुलाई जाती नहीं ,यादें सुहाने पल  की
तुम्हारे आने से ,गुलजार हुआ ये गुलशन,
बहारें छा गई,रंगीन  हुआ हर मौसम ,
बड़ा खुशहाल  हुआ,खुशनुमा मेरा जीवन,
मिली है जब से मुझे ,छाँव  तेरे आंचल की  

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

गुरुवार, 28 अप्रैल 2016

   'जस्य नारी पूज्यन्ते '

मेरा एक यार है
जो अपनी पत्नी से करता तो बहुत प्यार है
पर कभी भी ,अपने प्यार का प्रदर्शन नहीं करता
बीबी को है टाइट रखता
हमेशा रौब दिखलाता है
बेचारी का दिल जलाता है
एक दिन मैंने पूछ लिया यार
तू  भाभीजी से करता है इतना प्यार
तो सबके सामने ,
क्यों करता है एसा कटु व्यवहार
क्यों इस तरह से उसे रहा है सता
क्या तुझे नहीं पता
'जस्य नारी पूजयन्ते ,रमन्ते तत्र देवता '
पत्नी की पूजा कर , देवता आएंगे
तेरे घर को स्वर्ग बनाएंगे
मित्र बोला,बस बस ,ये ही तो कारण है
जिसकी वजह से ,
तुम्हारी भाभी को पूजने का ,
नहीं होता मेरा मन है
मै चाहता देवता आएं
मेरे घर के आसपास मंडराएं
क्योंकि स्वर्ग की अप्सराओं ने ,
उन्हें इतना दिया है बिगाड़
हमेशा मौके की तलाश में ,
ढूंढते  रहते है जुगाड़
और उनका राज इंद्र तो ख़ास
है एक नंबर का बदमाश
गौतम ऋषि का रूप धर ,
अहिल्या को भरमाया
बेचारी को श्राप से ,पत्थर की शिला बनाया
मै ,पत्नी को पूजूँगा तो ये,
 मेरे घर के आसपास करेंगे विचरण
मै ऐसे मनचलों को,क्यों दूँ  निमंत्रण
बड़े आशिक़ मिज़ाज़ है ये सारे के सारे
और मै  नहीं चाहता ,
मेरी बीबी पर कोई लाइन मारे

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

पत्नीजी का ब्यूटी ट्रीटमेंट

        पत्नीजी का ब्यूटी ट्रीटमेंट
                      १
 मैंने पत्नी से कहा  ,तुम हो यार  गुलाब
पर रहती हो चिड़चिड़ी ,लगता बड़ा खराब
लगता बड़ा खराब ,पलट कर बोली   पत्नी
हंसमुख ,खुश जो रहती,हो जाती है हथिनी
मेरा चिडचिड करना ,तुमको लगता तीखा
पर स्लिम रहने का मेरा है यही  तरीका

पत्नी  अपनी  थी तनी ,उसे मनाने यार
हमने उनसे कह दिया ,गलती से एक बार
गलती से एक बार ,लगे है हमको प्यारा
गुस्से में दूना निखरे  है रूप   तुम्हारा  
कह तो दिया मगर अब घोटू कवि रोवे है
बात बात पर वो जालिम , गुस्सा होवे  है

घोटू
 

बुधवार, 27 अप्रैल 2016

सुबह सुबह -ऑरेंज काउंटी

सुबह सुबह -ऑरेंज काउंटी

कुछ अलसाए से चेहरे
कुछ मुरझाए से  चेहरे
कुछ चेहरे थके थके से
कुछ चेहरे पके पके  से
कुछ फर्राटे सी भरती
कुछ हंसती,बातें करती
कुछ कुत्तों को टहलाती
मोबाइल पर बतियाती
कुछ योगा कुछ जिम जाती
कुछ दूध ब्रेड, हित  आती
कुछ बालों की लट ,बिखरी
कुछ मेकअप करके निखरी
कुछ चलती गाने सुनती
कुछ टहले  ,सपने बुनती
कुछ  स्कूल बेग उठाए
बच्चों संग  दौड़ी  जाए
स्कूल बस में बैठाने
रस्ते में दे कुछ खाने
प्रातः के कई नज़ारे
लगते है मन को प्यारे
फुर्ती है तन में भरती
सेहत भी सुधरा करती
कुछ सेहत के दीवाने
कुछ बूढ़े और सयाने
मिल कर है कसरत करते
और लगा ठहाका हँसते
और कभी बजाते  ताली
ओ सी की सुबह निराली

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

खीज

खीज

मेरे घर की बालकनी में ,
एक कबूतर आता जाता
 और हर दिन ही अपने संग में,
कोई  कबूतरनी भी लाता
दोनों संग संग दाना चुगते ,
चोंच लड़ाते ,उड़ जाते थे
कभी एक दूजे के संग मिल ,
अपने पंख फड़फड़ाते  थे
बड़ा मनचला ,रोमांटिक था ,
वह कपोत ,एसी करनी थी
हर चौथे दिन ,संग में उसके ,
होती नयी कबूतरनी थी
उसका यह रोमांस देख कर ,
मुझ को मज़ा लगा था आने
उसकी रोज प्रेमलीलायें ,
मुझे बाद में लगी खिजाने
क्योंकि मुझे चिढ़ाने लगता ,
मेरे अंदर ,छुपा कबूतर
ताने देता ,कहता देखो ,
उसमे,तुममे ,कितना अंतर
बंधे हुए इतने वर्षों से ,
तुम हो एक कबूतरनी संग
एक उसका जीने का ढंग है ,
एक तुम्हारे जीने का ढंग
क्या मन ना करता तुम्हारा ,
कभी,कहीं भी,किसी बहाने
मिले कबूतरनी भी तुमको ,
कोई नयी सी ,चोंच लड़ाने
तुम डरपोक और कायर हो,
संकोची हो ,घबराते हो
सद्चरित्र की बातें करके ,
अपने मन को समझाते हो
इसीलिए वो जब भी आता ,
ऐसा लगता ,मुझे चिढ़ाता 
मेरी मजबूरी ,कमजोरी ,
की रह रह कर याद दिलाता
अपने मन की खीज मिटाने ,
और छुपाने को बदहाली
कोई कबूतर ना आ पाये ,
इसीलिये ,जाली लगवाली

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

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