उतरायणी है पर्व हमारा,
समता को दर्शाता है।
कहीं मनाते लोहड़ी इस दिन,
कोई बिहू मनाता है।
महास्नान गंगासागर में,
जो उतरायणी को करता।
जप,तप,दान और तर्पण कर,
मानस मन उज्जवल होता।
देवालय में लगते मेले,
तिल, गुड़ के पकवान बनाते।
इसी तरह हो मीठा जीवन,
आपस में सब मिलजुल गाते।
आटे में गुड़ मिला गूंथकर,
घुघुते और खजूर बनाते।
इन्हें पिरोकर माला में फिर,
बच्चे काले कौवा गाते।
त्यौहारों का देश हमारा,
सदा यहां खुशहाली है।
मिलजुल कर त्यौहार मनाते,
भारत की शान निराली है।
हेमलता सुयाल
स॰अ॰
रा॰प्रा॰वि॰जयपुर खीमा
क्षेत्र-हल्दवानी
जिला-नैनीताल
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।