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मंगलवार, 26 अप्रैल 2016

स्वाद

                स्वाद

हंसी ख़ुशी का स्वाद उठा कर,हमने जीवन जीना सीखा 
सभी चीज का रस ले लेकर ,घूँट घूँट कर , पीना  सीखा
वो ही दाल ,वो ही है चावल ,किन्तु दस  जगह यदि खाओगे
तो हर बार,हरेक खाने में,स्वाद अलग ही तुम  पाओगे
खाने में कम,स्वाद पकाने वाले  हाथों में  होता है
स्वाद भावना में होता है और जज्बातों में होता  है
मंदिर में चरणामृत का जल,लंगर,भंडारे का खाना
होता इनका स्वाद अनूठा,मुश्किल कहीं और है पाना
पांच सितारा होटल में तुम,कितने ही व्यंजन चखते हो
माँ के हाथों के खाने  का, स्वाद भुला क्या तुम सकते  हो
परिस्तिथियों पर भी अक्सर,स्वाद हुआ करता है निर्भर
कहते है कि भूख लगी हो,तो किवांड भी लगते  पापड़
अगर भरा हो पेट आपका,रखे सामने  लाखों व्यंजन
किन्तु एक दाना भी खाना ,नहीं चाहेगा ,तुम्हारा मन
है भगवान भाव के भूखे ,तुलसी में तृप्ती  पा लेते
भक्ति भाव से ,विदुर प्रिया के,केले के छिलके खा लेते
चखे हुए ,शबरी के जूंठे ,बैरों को भी खा सकते है
और सुदामा के चावल भी ,कच्चे यूं ही चबा सकते है
स्वाद समय के साथ बदलता ,स्वाद उम्र के साथ बदलता
जब कच्चा तो खट्टा होता ,मीठा आम वही पक बनता
चावल अगर पुराने होते ,तो दाना दाना खिलते है
पौधा लगा ,प्रतीक्षा करिये,तब ही मीठे फल मिलते है
रोटी जली और सब्जी में ,नमक नहीं या मिर्ची ज्यादा
लेकिन बीबी खिला रही तो ,बन्दा तारिफ ,कर कर खाता
माल अगर फ़ोकट का खाओ ,उसमे बड़ा स्वाद आता है
सुन कर दाम ,कई  चीजों के ,मुंह का स्वाद बिगड़ जाता है
जिसको देख ,भरे मुंह पानी ,चीज समझलो ,स्वाद भरी है
और बीबी यदि खट्टा मांगे ,तो समझो कुछ खुशखबरी है
लज्जतदार जवानी होती ,स्वाद बुढ़ापे का है तीखा 
हंसी ख़ुशी का स्वाद उठा कर ,हमने जीवन जीना सीखा   

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बुधवार, 20 अप्रैल 2016

पत्नी को खुश रखना -मुसीबत

पत्नी को खुश रखना -मुसीबत

पत्नी को खुश रखो ,मुसीबत ऐसी आती है
तुम्हे ज्वेलरी शॉप,पटा कर ,वो ले जाती है
होती ढीली जेब ,बजट का भट्टा बिठता है,
तुम तो लुटते रहते हो और वो मुस्काती  है

पत्नी को खुश रखो ,मुसीबत ऐसी आती है
तरह तरह के बना तुम्हे पकवान खिलाती है
तारीफ़ करके ,ठूंस ठूंस कर ,खाना पड़ता है ,
मगर खून की 'शुगर' दूसरे दिन बढ़ जाती है

पत्नी को खुश रखो,मुसीबत ऐसी आती है
नए नए वो वस्त्र पहन कर तुम्हे रिझाती है
'ब्यूटी पार्लर 'मेकअप का खर्चा बढ़ जाता है,
तारीफ़ नहीं करो तो भी मुश्किल हो जाती है

पत्नी को खुश रखो ,मुसीबत ऐसी  आती है
पर कट जाते ,पति की आजादी छिन जाती है
पत्नी को परमेश्वर मान ,पूजना  पड़ता  है ,
ताक झाँक करने पर पाबंदी लग जाती  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सब अपने में मस्त यहां

         सब अपने में मस्त यहां

नहीं किसी को,पड़ी किसी की ,सब अपने में मस्त यहां
अपने अपने मोबाइल पर ,चिपके ,रहते  व्यस्त   यहां
कई  रोजमर्रा की चीजें  ,रोज न मिलती मुश्किल से ,
बढ़ी हुई  मंहगाई  इतनी  ,हर कोई है   त्रस्त  यहां
सुबह उठे ,दफ्तर को भागे ,थके ,शाम को घर लौटे,
रोज रोज इस दिनचर्या का ,हर कोई  अभ्यस्त यहां
नकली हँसी ओढ़ कर सबको ,हमने जीते देखा है ,
पर अपनी अपनी चिंता से ,सब के सब है ग्रस्त यहां
काम धाम चाहे कम आये ,चमचागिरी में माहिर हो,
रहता उनके सर, साहब का ,सदा कृपा का हस्त यहां
बिगड़ी है क़ानून व्यवस्था ,अस्मत लुटती सड़कों पर ,
चौकीदार कर रहे चोरी ,चोर दे रहे  गश्त   यहां
युग बदला ,हम भी  बदलेंगे ,एक किरण आशा की है,
अच्छे दिन आने वाले है,यही सोच , आश्वस्त  यहां

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शादी के बाद-चार चित्र

  शादी के बाद-चार चित्र 

शादी के बाद ,
प्यार का आहार  पाकर
जब काया छरहरी
होती है हरी भरी
फूलती फलती है
तो ,तब बड़ी अखरती है
जब सगाई की अंगूठी ,
ऊँगली में आने से ,इंकार करती है

शादी के पहले ,
स्वच्छ्न्द उड़ने वाले पंछी,
शादी के बाद ,जब बनाते है घोंसले
तो जिम्मेदारी के बोझ से ,
पस्त  हो जाते है  उनके होंसले
वो भूल जाते है सारे चोंचले

एक नाजुक सी दुल्हन
जब अपने फूलों से कोमल हाथों से ,
 सानती  है आटा ,
या मांजती है बरतन
अपना सारा हुस्न और नज़ाकत भूल ,
बन जाती है पूरी गृहस्थन

गरम गरम तवे पर  ,
 रोटी सेकते सेकते,
जब गलती से ,नाजुक उँगलियाँ,
तवे से चिपक जाती है
तो मम्मीजी की ,बड़ी याद आती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रविवार, 17 अप्रैल 2016

पकोड़ी पुराण

                      पकोड़ी पुराण               

सीधासादा बेसन घोलो ,डाल मसाला,झट से तल लो
बारिश के भीगे मौसम में ,इसका स्वाद,आप जी भर लो
दादी,नानी पड़नानी का ,वह युग एक पकोड़ी युग था  
गरम गरम सबके मनभाती ,खाने का अपना ही सुख था
कालांतर में वही पकोड़ी ,पकी कढ़ी संग,स्वाद बढ़ाया
और दही में ,जब वो डूबी ,दहीबड़ा बन कर  ललचाया
पालक,गोभी ,आलू ,बेंगन ,सब संग मिलजुल स्वाद निखारा
हुआ समय संग,युग परिवर्तन,अब बर्गर का युग है प्यारा 
वडापाव बन यही पकोड़ी ,बड़ी हुई,पहुंची घर घर में
मेदुवडा रूप धारण कर ,डूबी रही ,स्वाद सांभर में
भजिया कहीं,बड़ा या पेटिस ,नाम अलग पर स्वाद प्रमुख था
दादी,नानी,पड़नानी का ,वह युग एक पकोड़ी  युग था
युग बदला तो नव पीढ़ी ने इसको नए रूप में ढाला
दिया तिकोना रूप ,मसाला भर कर,बना समोसा प्यारा
चली पश्चिमी हवा ,पकोड़ी ,बन 'कटलेट'बड़ी इतराई
  दुनिया भर में ,नए रूप धर ,इसने थी पहचान बनाई
दिल्ली में थी आलू टिक्की ,अमेरिका में बन कर 'बर्गर'
'स्प्रिंगरोल' चीन में है तो,अरब देश में बनी 'फलाफल'   
जिसने देखा,वो ललचाया ,खाने इसे हुआ उन्मुख था
दादी,नानी,पड़नानी का ,वह युग एक पकोड़ी युग था

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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