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सोमवार, 26 जनवरी 2015

ये औरतें कैसी होती है ?

          ये औरतें कैसी होती है ?

यूं तो सुबहो शाम ,
अपने पति से झगड़ती रहती है
पर पति कुछ दिनों भी ,
किसी काम से बाहर जाते है ,
तो उनके बिना ,
वो समय नहीं काट पाती ,बोअर होती है
ये औरतें कैसी होती है ?
सुबह पति से कहती है ,
घर में कपडे हो गए बहुत है
उन्हें रखने के लिए ,
एक नयी अलमारी की जरुरत है
और शाम को जब पार्टी में,
जाने को तैयार होने लगती है
तो क्या पहनू,मेरे पास तो कपडे ही नहीं है,
ये शिकायत करती है
सभी की ये आदत,एक जैसी होती है
ये औरतें भी कैसी होती है ?
यूं तो पतिजी की 'डाइबिटीज'पर
पूरा कंट्रोल दिखाती  है
पर जब गाजर का हलवा बनाती है ,
तो बड़े चम्मच से पति को चखाती है
मीठी मीठी बातों की चाशनी से ,
पति के दिल को भिगोती है
ये औरते कैसी होती है?

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

यू टर्न

               यू टर्न

हुआ करता था कुछ ऐसा ,हमारी नींद का आलम,
      ख्वाब भी पास आने पर ,जरा सा हिचकिचाते थे
यूं ही बस बैठे बैठे ही ,झपकियाँ हमको आती थी,
       कभी हम आँख मलते थे,कभी गर्दन झुलाते थे
खराटोँ  की ही धुन से नींद का आगाज़ होता था,
      और अंजाम ये था ,पास वाला सो न पाता था,
पड़े रहते थे बेसुध ,नहीं कुछ भी होश रहता था ,
     हमें रावण का भैया ,कह के ,घरवाले बुलाते थे
लड़ी है आँख तुमसे जबसे है आँखे नहीं लगती ,
    मुई उल्फत ने जबसे दिल में आ के डेरा डाला है
तुम्हारी याद आती ,ख्वाब आते ,नींद ना आती ,
        हमारी आदतों ने इस तरह 'यू टर्न'   मारा  है  

घोटू

चाय पर चर्चा

                    चाय पर चर्चा

मोदी जी ने ओबामा जी को भारत बुलाया
आत्मीयता दिखा कर ,अपना दोस्त बनाया
देश के हित  में ,अमेरिका से कई करार किये
चाय पर चर्चा कर ,आपसी सम्बन्ध सुधार लिये
ये चाय पर चर्चा का मुद्दा तो,
 अब लोगों को नज़र आया है
पर मैंने तो इसी चाय की चर्चा के सहारे ,
हंसी खुशी से अब तक अपना  जीवन बिताया है
हम मिया बीबी ,सुबह की चाय पर ,
दिनभर क्या करना है,इसकी चर्चा करते है
और शाम की चाय की चर्चा में,
दिन भर क्या क्या किया,
एक दूसरे को बतलाया करते है
इस चाय की चुस्की के साथ हमें बहुत कुछ मिला है
हमें एक दूजे से ,न कोई शिकवा है ,न  ग़िला है
इसी सामंजस्य के कारण हमारी केमेस्ट्री ठीक है ,
और हम मिया बीबी में अच्छी पटती है
चैन से नींद आती है और रात मज़े से कटती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

शनिवार, 24 जनवरी 2015

केजरीवाल-४ विपरीत परिस्तिथियाँ

    केजरीवाल-४
विपरीत परिस्तिथियाँ
           
अरविन्द  याने की कमल ,
दोनों समानार्थी ,
याने कि भाई,भाई
पर दिल्ली की राजनीति में,
दोनों की लड़ाई
सुबह सुबह ,
सूरज की किरणों के पड़ने से,
'अरविन्द'  खिलता है
पर प्रकृति  का यह नियम,
दिल्ली की राजनीतिमें ,
उल्टा ही  दिखता है
यहाँ पर ,दो किरणे ,
एक किरण वालिया और
एक किरण बेदी  ,
जब से मैदान में उतरी है ,
अरविंद थोड़ा घबराने लगा है
सर पर टोपी और गले में मफलर बाँध,
खुद को किरणों से बचाने लगा है
थोड़ा   कुम्हलाने लगा है
कमल जब तक कीचड़ में है ,
 झुग्गी झोंपड़ियों में है ,
अपनी सुन्दर छवि से ,
सबको लुभाता है
पर कमल ,लक्ष्मीजी का प्रिय है,
 उस पर लक्ष्मीजी  विराजती है,
और उनकी पूजा में,
उन पर चढ़ाया जाता है
लक्ष्मी और कमल का भी ,
ऐसा ही नाता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सोमवार, 19 जनवरी 2015

उचटी नींद

        उचटी नींद

जब नींद कभी उड़  जाती है
तो कितनी ही भूली बिसरी ,यादें आकर जुड़ जाती है
फिरने लगते है एक एक कर, मन की माला के मनके
तो सबसे पहले याद हमें ,आने लगते दिन बचपन के
गोबर माटी से पुता हुआ ,वह घर छोटा सा, गाँव का
गर्मी की दोपहरी में भी वो सुख पीपल की छाँव का 
वह बैलगाड़ियों पर चलना,वो रामू तैली की घानी
मंदिर की कुइया पर जाकर ,वो हंडों  में भरना पानी
करना इन्तजार आरती का,लेने  प्रसाद की एक चिटकी
रौबीली डाट पिताजी की ,माताजी की मीठी झिड़की
वो गिल्ली ,डंडे ,वो लट्टू,वो कंचे ,वो पतंग बाज़ी
भागू हलवाई की दूकान  की गरम जलेबी वो ताज़ी
निश्चिन्त और उन्मुक्त सुहाना ,प्यारा  बचपन मस्ती का
बस पलक झपकते बीत गया,जब आया बोझ गृहस्थी का
रह गया उलझ कर यह जीवन,फिर दुनिया के जंजालों में
कुछ दफ्तर में ,कुछ बच्चों में,कुछ घरवाली,घरवालों में
कुछ नमक तैल के चक्कर में ,कुछ दुःख ,पीड़ा ,बिमारी में
प्रतिस्पर्धा आगे  बढ़ने की ,कुछ झंझट ,जिम्मेदारी मे
पग पग पर नित संघर्ष किया ,तब जाकर कुछ उत्कर्ष हुआ
मन चाही मिली सफलता तो ,इस  जीवन में कुछ हर्ष हुआ
सुख तो आया ,उपभोग मगर ,कर पाऊं ,नहीं रही क्षमता
हो गया बदन था जीर्ण क्षीर्ण ,कठिनाई से लड़ता लड़ता
कुछ घेर लिया बिमारी ने ,आ गया बुढ़ापा कुछ ऐसा
कुछ बेगानी संतान हुई ,जब सर पर चढ़ ,बोला पैसा
कुछ यादें शूलों सी चुभती ,तो कुछ यादें सहलाती है
जब नींद कभी उड़ जाती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


 

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